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बुक रिव्यू: संघर्ष की दास्तान, कलाम की कलम से

भारत के पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम के संघर्ष के किस्सों से रूबरू होना चाहते हैं तो उनकी यह किताब पढ़िए. किताब 'मेरी जीवन-यात्रा' 'माई जर्नी' का हिंदी अनुवाद में उन्होंने अपनी जिंदगी के तमाम पहलुओं को तफसील से बयान किया है.

किताब: मेरी जीवन यात्रा किताब: मेरी जीवन यात्रा
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 02 नवंबर 2014,
  • अपडेटेड 5:30 PM IST

किताब:  मेरी जीवन- यात्रा ('माय जर्नी' का हिंदी अनुवाद)
लेखक: डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम
प्रकाशक: प्रभात प्रकाशन
कीमत: 125 रुपये
बात उन दिनों की है, जब दुनिया विश्वयुद्ध से जूझ रही थी और इसकी आंच भारत के सुदूर दक्षिण रामेश्वरम तक पहुंच चुकी थी. ब्रिटिश सरकार ने रामेश्वरम स्टेशन पर ट्रेन रोकना बंद करवा दिया था, जिससे वहां के लोग बाकी दुनिया से कट गए थे. इससे उनका दुनिया से जुड़े रहने का एकमात्र माध्यम यानी अखबार भी बंद हो गया. तब किसी ने सलाह दी कि अखबारों के बंडल तैयार रखे जाएं और उन्हें चलती ट्रेन से स्टेशन पर फेंक दिया जाए. स्टेशन पर उन अखबारों के बंडल को एक बच्चा उठाता था और उसे शहर के लोगों में बांटता था. वो बच्चा कोई और नहीं बल्कि भारत के पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम थे. उनके संघर्ष के किस्सों से रूबरू होना चाहते हैं तो उनकी यह किताब पढ़िए. किताब 'मेरी जीवन-यात्रा''माई जर्नी' का हिंदी अनुवाद) में उन्होंने अपनी जिंदगी के तमाम पहलुओं को तफसील से बयान किया है. डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम की आत्मकथा 'मेरी जीवन-यात्रा उन किताबों में से है जिसे पढ़ने के बाद कोई भी निराश व्यक्ति जीवन से प्यार करने लगेगा. इस किताब को कलाम ने छोटे-छोटे खंडों में बांटा है. जिसमें जिंदगी के हर दौर को बयान किया गया है.

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किताब में कलाम ने अपनी जिंदगी के उतार-चढ़ाव को सहज भाषा में बखूबी लिखा है. कलाम की सफलता का हर कोई कायल है और हर कोई जीवन में उन्हीं की तरह सफल होना चाहता है. मगर कलाम की इस किताब को पढ़कर लगता है कि क्या उस सफलता को पाने के लिए हर कोई उनके जैसा धैर्यवान हो सकता है.

इस किताब में कलाम ने रामेश्वरम से लेकर अपने दिल्ली तक की यात्रा को लिखा है. इस यात्रा के दौरान उनकी जिंदगी में कई ऐसे मोड़ आए जब उन्हें लगा कि अब यह यात्रा आगे नहीं बढ़ पाएगी.

मगर कलाम एक ऐसे नाविक हैं जिनमें पानी की गहराई और हवा का रुख भांपने की जबर्दस्त क्षमता है. कलाम की सफलता के पीछे का सच उन युवाओं को जरूर जानना चाहिए जो अपनी हर असफलता का जिक्र करते हुए अपनी गरीबी और अपने हालात को ही नियति मान बैठते हैं.

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कलाम किताब के एक हिस्से 'जब मैं फेल हुआ था'में एम.आई.टी (मद्रास प्रोद्यौगिकी संस्थान) की एक घटना का जिक्र करते हुए बताते हैं कि उनके रात-दिन की मेहनत के बाद बनाए गए एक लड़ाकू विमान का डिजाइन प्रोफेसर को पसंद नहीं आया था. जिसके बाद उस प्रोफेसर ने कहा था आज शुक्रवार की दोपहर है और मैं सोमवार की शाम तक पूरे विन्यास का आरेख देखना चाहता हूं. अगर तुमने ऐसा नहीं किया तो तुम्हारी स्कॉलरशिप बंद कर दी जाएगी.जिसके बाद कलाम ने दिन-रात एक करके उस प्रोजेक्ट को तय समय सीमा में पूरा कर दिखाया था.

कलाम का रिश्ता जितना विज्ञान के साथ मजबूत है, उतना ही साहित्य और समाज के साथ भी है. इसी वजह से कलाम केवल वैज्ञानिक ही नहीं हैं बल्कि उनके पास आधुनिक भारत को लेकर एक विजन भी है, जो उन्हें अन्य भारतीय वैज्ञानिकों से अलग करता है.

क्यों पढ़ें
कलाम ने किताब में अपनी आत्मकथा बेहद ही ईमानदारी से लिखी है. किताब को पढ़ते हुए यह बिल्कुल महसूस नहीं होता कि यह सच्ची कहानी देश के राष्ट्रपति की है. बल्कि कलाम की जिंदगी के अनुभव हमें एक आम नागरिक के महसूस होते हैं. वह अपनी सफलता-असफलता का जिक्र अपने निजी जीवन के प्रसंगों से ज्यादा करते हैं. कलाम प्रेरित करते रहे हैं तो जरूर पढ़ें. उन छात्रों को भी यह किताब पसंद आएगी जो करियर के क्षेत्र में एक सकारात्मक 'पुश' की तलाश में है.

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क्यों न पढ़ें

अगर चटपटी कहानियों और चुटकुलों के सिवा आपको कुछ पढ़ना पसंद नहीं है तो यह किताब आपके लिए नहीं है. यह एक गंभीर किताब है, पढ़ते हुए सोचे जाने की मांग करती है. अगर जिंदगी की दौड़ में सफल होने के साथ ही कुछ जरूरी बुनियादी सबक सीखना चाहते हैं तो यह किताब आपकी इच्छा पूरी करेगी.

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