
सरहद पर ऊंचे पहाड़ों, बर्फीले इलाकों और दुर्गम क्षेत्रों में अग्रिम चौकियों पर जरूरी सामान भेजने के लिए सेना स्थानीय लोगों की मदद लेती है. जिसके चलते सेना उन्हें उनके काम के मुताबिक मेहनताना देती थी. लेकिन ना तो उन्हें कोई छुट्टी मिलती थी. ना ही चोट लगने या फिर काम के समय मौत हो जाने से किसी तरह का कोई मुआवजा मिलता था.
एलओसी के दुर्गम इलाकों में सेना को जल्दी पहुंचाने और आने वाले वक्त में इंफ्रास्ट्रक्चर को मजबूत करने के लिए अब भारतीय सेना पोर्टरों को मासिक वेतन पर रखेगी. इसके अलावा उनको मेडिकल, सर्दी के कपड़े और अवकाश जैसी दूसरी सुविधा भी मिलेगी. इनकी हर महीने 18 हजार सैलरी तय की गई है.
पोर्टर हफ्ते में 6 दिन करेंगे काम
जो पोर्टर सेना के साथ काम करेगा, उसे प्रधानमंत्री जीवन ज्योति बीमा योजना का फायदा मिल सकेगा. अभी तक उन्हें इस तरह की कोई सुविधा नहीं मिल पाती थी. जबकि वे बहुत ही मुश्किल परिस्थितियों में सेना के लिए काम करते थे. पोर्टर हफ्ते में छह दिन काम करेंगे और गजेटेड छुट्टियां भी मिलेंगी.
बता दें कि एक अनुमान के मुताबिक, हर साल अकेले सेना की उत्तरी कमान में 10-12 हजार पोर्टर की जरूरत पड़ती है. इसमें सबसे ज्यादा जम्मू- कश्मीर के करगिल, लेह लद्दाख में इस्तेमाल होते हैं. इसके अलावा उत्तर पूर्व में अरुणाचल में भी बड़ी संख्या में पोर्टर का इस्तेमाल होता है. हर साल करीब- करीब 200- 250 करोड़ रुपए खर्च आता है. अभी तक पोर्टर को दैनिक मजदूरी पर रखा जाता था.