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Mahabharat May 12 Update: बड़े हुए पांडव और कौरव, अब कौन बनेगा हस्तिनापुर का युवराज?

मंगलवार के एपिसोड में पांडवों और कौरव के बीच मतभेद भी देखने को मिले और श्रीकृष्ण की द्वारिका नगरी के दर्शन भी हुए. जानिए क्या हुआ मंगलवार के एपिसोड में.

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aajtak.in
  • मुंबई,
  • 13 मई 2020,
  • अपडेटेड 12:01 PM IST

बी आर चोपड़ा की महाभारत हर किसी को अपनी तरफ आकर्षित कर रही है. जैसे-जैसे कहानी आगे बढ़ रही है, लोगों का जुड़ाव भी मजबूत होता जा रहा है. मंगलवार के एपिसोड में पांडवों और कौरव के बीच मतभेद भी देखने को मिले और श्रीकृष्ण की द्वारका नगरी के दर्शन भी हुए. जानिए क्या हुआ मंगलवार को-

कौरवों और पांडवो के बीच प्रतियोगिता

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कौरवों और पांडवो की शिक्षा समाप्त हो गई है. इसी को देखते हुए शिक्षा समापन समारोह का आयोजन किया गया है. इस समारोह में सभी को अपनी शस्त्र विद्या दिखानी होगी और ये सिद्ध

करना होगा कि वो कितने निपुण हो गए हैं. समारोह में धृतराष्ट्र, भीष्म, विदुर, गांधारी, कुंती, कुलगुरु कृपाचार्य और द्रोणाचार्य अपने पुत्र अश्वत्थामा के साथ आए हैं. फिर उसी रंगभूमि में एक-एक कर सभी राजकुमारों का आगमन होता है जो अब बड़े हो गए हैं.

दुर्योधन-भीम में गदा युद्ध

सभी राजकुमारों ने अपने-अपने शस्त्र के जरिए अपनी निपुणता दिखाई. एक तरफ राजकुमार युधिष्टर का शत्र भाला है जिसका उन्होंने बखूबी अंदाज में इस्तेमाल किया और विजय भी प्राप्त की. वहीं दुर्योधन और भीम गदा से लड़ते हैं. उस गदे के जरिेए भीम और दुर्योधन एक दूसरे से टकराते हैं और एक कांटे का मुकाबला देखने को मिलता है. लेकिन जिस मुकाबले का हर कोई लुत्फ उठा रहा होता है, अचानक ही वो हिंसक रूप ले लेता है और एक युद्ध में तब्दील हो जाता है. ये देख दोनों के युद्ध को वही रोक दिया जाता है.

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अर्जुन की धनुष विद्या देख हर कोई हैरान

इसके बाद अर्जुन अपने धनुष के जरिए सभी को अपनी कला से परिचित करवाते हैं. वो एक बाण के जरिए सबसे पहले भीष्म, धृतराष्ट्र, कृपाचार्य और द्रोणाचार्य को प्रणाम करते हैं. उसके बाद दूसरे बाण से अर्जुन तेज आंधी तूफान ले आते हैं. फिर तीसने बाण से वो अग्नि प्रजुलित कर देते हैं. चौथे बाण से वो बिजलियां कड़का देते हैं. पांचवे बाण से वर्षा का भी अनुभव करवा देते हैं. आखिर में छठे बाण के जरिए अर्जुन पर्वत उखाड़कर सीधा रंगभूमि में ले आते हैं. ये देख हर कोई हैरान रह जाता है और उनके गुरु द्रोणाचार्य उनकी सभी के सामने खूब तारीफ करते हैं.

कर्ण की अर्जुन को चुनौती

बीच प्रतियोगिता में कर्ण अर्जुन को युद्ध की चुनौती दे देते हैं. वो अर्जुन से धनुष के जरिए युद्ध करने की बात कहते हैं. लेकिन ये युद्ध हो पाता इससे पहले कृपाचार्य कर्ण से उनका परियर मांग लेते हैं. अब कण तो अपना परिचय देने में असमर्थ साबित होते हैं लेकिन कुंती अपने पहले पुत्र को देख पहचान जाती हैं. कर्ण ने जो कवच और कुण्डल पहन रखा है उसे देख कुंती को इस बात का अहसास हो जाता है लेकिन वो शांत रहती हैं. लेकिन बाद में दुर्योंधन बीच में दखल देता है और कर्ण को अपना मित्र बताता है. वो कहता है- अंग देश का राज्य मेरे अधिकार में है कुलगुरु, और मैं आज अपने मित्र कर्ण को अंग देश का राजा बनाता हूँ. दुर्योधन इतना बोल सभी के सामने कर्ण का राज्याभिषेक कर देता है. लेकिन तभी वहां कर्ण के पिता सारथी अधिरध पहुंच जाते हैं. उन्हें देख भीम कर्ण का मजाक बनाता है और उसे सूत पुत्र बता देता है. इससे क्रोधित दुर्योधन ने पांडवो को ललकार लेकिन तभी सूर्यास्त हो गया और भीष्म ने शंख बजा आयोजन को खत्म कर दिया.

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द्रोणाचार्य का द्रुपद ने किया अपमान

इसके बाद दिखया जाता है कि एक बार कैसे राजा द्रुपद ने द्रोणाचार्य का अपमान कर दिया था. जब कृपाचार्य ने द्रोणाचार्य से वापस उनकी पत्नी कृपी के पास जाने को कहा तब द्रोणाचार्य ने बताया कि वो ऐसा नहीं कर सकते क्योंकि उन्होंने एक वचन अभी तक पूरा नहीं किया है. वो बताते हैं कि उन्होंने अपनी पत्नी को वादा किया था कि वो एक गाय लेकर आएंगे. लेकिन उस मुश्किल समय में द्रुपद द्रोणाचार्य की कोई सहायता नहीं कि और उन्हें खूब अपमानित किया. ये बात द्रोणाचार्य को काफी अखरती है. लेकिन अब जब कौरवों और पांडवो की शिक्षा पूरी हो गई है ऐसे में द्रोणाचार्य अपने शिष्यों से गुरुदक्षिणा में राजा द्रुपद को बंदी बनाने की मांग करते हैं.

पांडवों ने द्रुपद को हराया

इस लक्ष्य को पूरा करने के लिए सबसे पहले कौरव जाते हैं. उनके साथ कर्ण और सेना भी जाती है. लेकिन फिर भी कौरव द्रुपद को पराजय नहीं कर पाते. इसके बाद पांडवो को ये मौका दिया जाता है. पांचों पांडव बिना सेना द्रुपद को हराने के लिए जाते हैं. वो ना सिर्फ द्रुपद की सेना को हरा देते हैं बल्कि राजा द्रुपद को भी बंदी बना द्रोणाचार्य के सामने पेश करते हैं.

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श्रीकृष्ण ने जरासंघ को हराया

अब एक तरफ पांडव और कौरवों के बीच नफरत की खाई गहरी होती जा रही थी तो वही दूसरी तरफ श्रीकृष्ण और बलराम का भी मथुरा जाने का समय आ गया था. कृष्ण को मथुरा जाते देख सुदामा काफी उदास हो जाते हैं. लेकिन कृष्ण सुदमा से मिलने का वादा करते हैं और कहते हैं कि अभी वो उनके चिवड़ा का ऋणी है. इसके बाद पशुराम भी कृष्ण के पास आते हैं और उन्हें सुदर्शन चक्र वापस लौट देते हैं और जरासंघ को हराने का आदेश देते हैं.

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द्वारका का निर्माण

उधर जरासंघ और उग्रेसन की सेना के बीच भीषण युद्ध देखने को मिल रहा है. लेकिन वहां फिर श्री कृष्ण का आगमन होता है और वो सुदर्शन चक्र का इस्तेमाल कर जरासंघ और उसकी सेना को हरा देते हैं. अब उस युद्ध के बाद मथुरा में कृष्ण और बलराम का जोरदार स्वागत होता है. लेकिन सभी को ये चिंता सताती है कि जरासंघ इस हार का बदला जरूर लेगा. लेकिन कृष्ण सभी को चिंतामुक्त होने को कहते हैं और द्वारका के निर्माण की बात कहते हैं. लेकिन उनसे इस सुझाव से वासुदेव सहमत नहीं दिखते. वो कहते हैं ऐसा करने से हर कोई उन्हें रणछोड़ कहा जाएगा. लेकिन कृष्ण इसे स्वीकार करते हुए विश्वकर्मा की मदद से द्वारका का निर्माण कर देते हैं. उसके बाद द्वारका में सूचना दी जाती है कि हस्तिनापुर के राज सिंघासन के लिए खींचतान शुरू हो गई है.

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