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इनोवेटिव ग्रोथ रेट में चीन से आगे निकलने में भारत को लगेगा 10 साल: ब्रिक्स

दुनिया के प्रमुख पांच विकासशील देशों के समूह ब्रिक्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत की नवोन्मेष वृद्धि दर अगले एक दशक में चीन को पीछे को छोड़ सकती है. ब्रिक्स समूह में भारत के अलावा ब्राजील,रूस, चीन और दक्षिण अफ्रीका देश शामिल हैं.

अभी सबसे पीछे है लेकिन अगले 10 साल ट्रांस्फॉर्मेशन के और टॉप पर होगा भारत अभी सबसे पीछे है लेकिन अगले 10 साल ट्रांस्फॉर्मेशन के और टॉप पर होगा भारत
राहुल मिश्र
  • नई दिल्ली,
  • 30 अगस्त 2017,
  • अपडेटेड 2:23 PM IST

दुनिया के प्रमुख पांच विकासशील देशों के समूह ब्रिक्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत की नवोन्मेष वृद्धि दर अगले एक दशक में चीन को पीछे को छोड़ सकती है. ब्रिक्स समूह में भारत के अलावा ब्राजील,रूस, चीन और दक्षिण अफ्रीका देश शामिल हैं.

मंगलवार को जारी ब्रिक्स नवोन्मेष प्रतिस्पर्धात्मकता रिपोर्ट-2017 में वर्ष 2016 के लिए राष्ट्रीय समग्र नवोन्मेष प्रतिस्पर्धात्मकता में चीन टॉप पर रहा है. चीन के बाद रूस, दक्षिण अफ्रीका, ब्राजील और अंत में भारत मौजूद है.

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इस रिपोर्ट को को चीन के साइंस एंड टेक्नोलॉजी एक्सचेंज सेंटर ने जारी किया है. चीन के सरकारी अखबार ग्लोबल टाइम्स की खबर के अनुसार रिपोर्ट में अंदेशा जताया गया है कि 2025-2030 के बीच में इस मामले में भारत चीन को पीछे छोड़ देगा.

क्या है ब्रिक्स बैंक

ब्रिक्स बैंक का गठन 100 अरब डालर की अधिकृत पूंजी से किया गया है. ब्रिक्स देशों ने इस बैंक की स्थापना का निर्णय पिछले साल लिया था. भारत को इसका पहला अध्यक्ष नियुक्त करने का अधिकार मिला जिसके बाजद केवी कामत को इसकी जिम्मेदारी दी गई. इसका मुख्यालय चीन में है और कामत को पांच साल के लिए एनडीबी का अध्यक्ष बनाया गया है.

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गौरतलब है कि इस हफ्ते प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी चीन में आयोजित ब्रिक्स की महत्वपूर्ण सम्मेलन में हिस्सा लेंगे. इस दौरान रूस के राष्ट्रीपति ब्लादिमीर पुतिन और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग से उनकी मुलाकात होगी.

क्यों अहम है ब्रिक्स

उभरती अर्थव्यवस्था वाले विकासशील देशों के संगठन ‘ब्रिक्स’ ने अपना एक नया विकास बैंक गठित कर वैश्विक वित्तीय संचालन व्यवस्था में तहलका मचा दिया है. हालांकि ब्रिक्स की यह पहल दूसरे विश्वयुद्ध के बाद ब्रेटन वुड समझौते के तहत गठित पश्चिम के वर्चस्व वाले विश्वबैंक, अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष पर केंद्रित व्यवस्था को खत्म करने से अभी कोसों दूर है. अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष तथा विश्वबैंक पिछले 70 साल से वैश्विक वित्तीय प्रणाली के केंद्र में रहे हैं. देशों को आर्थिक समस्याओं से उबारने तथा विकास परियोजनाओं की मदद करने में इन संस्थानों ने बड़ी भूमिका निभाई है.

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विश्वबैंक और अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष जैसे संगठनों की आलोचना हो रही है. कहा जा रहा है कि ये संगठन वैश्विक अर्थव्यवस्था में नए उभरते प्रमुख विकासशील देशों की बढ़ती अहमियत तथा योगदान को प्रतिबिंबित नहीं कर पा रहे हैं. दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था चीन के पास मुद्राकोष के संचालन में इटली के मुकाबले थोड़ा ही ज्यादा वोटिंग अधिकार हैं, जबकि यह यूरोपीय देश चीन के पांचवें हिस्से के बराबर है. 1944 में गठित होने के बाद से मुद्राकोष और विश्वबैंक की अगुवाई सामान्यत: यूरोप और अमेरिका के हाथ में ही रही है.

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