
अंबेडकर जयंती के मौके पर आयोजित बहुजन समाज पार्टी के कार्यक्रम में मायावती ने अपने लिखित भाषण पढ़ने के पीछे का राज़ जगजाहिर किया. बसपा सुप्रीमो ने लिखे हुए भाषणों को पढ़ने के विरोधी दलों के आरोपों पर सफाई देते कहा कि गले की परेशानी की वजह से वह अपना लिखा हुआ भाषण पढ़ती हैं.
मायावती ने विपक्षियों पर निशाना साधते हुए कहा, मेरे भाषण के बारे में चर्चा करते रहते हैं कि बहनजी को बिना पढ़े ही अपना भाषण देना चाहिए तो उसका लोगों पर ज्यादा प्रभाव पड़ता है. ये बात सुनकर मेरे कान भी पक गए हैं.' उन्होंने कहा कि इस मामले में उनके गले की परेशानी को समझना चाहिए. इस संदर्भ में आज आपको बताना चाहती हूं कि 1996 में मेरे गले का बड़ा ऑपरेशन हुआ था. उन्होंने कहा, 'दो ग्लैण्ड होते हैं, जो शरीर के पूरे तंत्र को ठीक बनाए रखने में खासकर बोलने में काफी मदद करते हैं, लेकिन 1996 में कुछ कमियों की वजह से मेरा एक ग्लैण्ड पूरे तौर परे खराब हो गया था, जिसे डाक्टरों ने ऑपरेशन से निकाला.'
मायावती ने कहा, अब एक ग्लैण्ड बचा है, जिस पर डॉक्टर की सलाह के अनुसार ज्यादा बोलना या ऊंचा बोलना और जोर लगाकर भाषण देना ठीक नहीं है. जब भी मैं डॉक्टरों की सलाह ना मानकर बिना पढ़े काफी ऊंचा जोर लगाकर अपना भाषण देती हूं, तो गले पर ज्यादा बुरा प्रभाव पड़ता है और फिर गले की आवाज काफी दिन तक बैठ जाती है. फिर मुझे लगभग 10-12 दिन गले को ठीक करने के लिए अंग्रेजी दवाइयां खानी पड़ती हैं, जिनके साइड इफेक्ट हो सकते हैं.
बसपा सुप्रीमो ने कहा कि मजबूरी में गले के एक बचे ग्लैण्ड को सुरक्षित रखने और अंग्रेजी दवाइयां खाने से बचने के लिए पढ़कर ही ज्यादा बोलना पड़ता है. लेकिन उनके भाषण खुद के ही विचार होते हैं. इससे मुझे मौखिक भाषण देने से ज्यादा मेहनत करनी पड़ती है. खुद लिखना, पढ़ना और सोचना पड़ता है.... आप लोगों को पार्टी और आंदोलन के हित में मुझे समर्थन देना चाहिए और बहकावे में आकर अपने नेता का गला खराब नहीं करना चाहिए.