
केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के सामने पिछले एक दशक का सबसे कठिन बजट पेश करने की चुनौती है. अर्थव्यवस्था की हालत खस्ता है और अब इसे रफ्तार देने के लिए सबकी नजरें बजट पर हैं. लोग यह उम्मीद कर रहे हैं कि अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए सरकार बजट में कुछ बड़ी घोषणाएं करेगी. हालांकि, सरकार के हाथ इतने तंग हैं कि यह समझ में नहीं आ रहा कि आखिर सरकार करे तो करे क्या.
क्या हैं वित्त मंत्री के सामने चुनौतियां
वित्त मंत्रालय के सामने कई बड़ी चुनौतियां हैं. राजकोषीय घाटा लक्ष्य से ज्यादा होने की आशंका है. इसी तरह, टैक्स कलेक्शन लक्ष्य से कम रहने की आशंका है. जीडीपी की रफ्तार घटने और महंगाई बढ़ने की वजह से एक स्टैगफ्लेशन जैसी स्थिति बन रही है, जिसमें बेरोजगारी और मांग में कमी बनी रहती है. इन चुनौतियों की वजह से वित्त मंत्री के सामने कुछ प्रमुख चुनौतियां इस प्रकार हैं:
1. आंकड़े बढ़ा रहे मुश्किल
तमाम सरकारी-गैर सरकारी एजेंसियों के अनुमानों के मुताबिक इस वित्त वर्ष में जीडीपी ग्रोथ करीब 5 फीसदी, निजी उपभोग में 5.8 फीसदी, मैन्युफैक्चरिंग में 2 फीसदी और कृषि में महज 2.8 फीसदी की बढ़त हो सकती है. अगर ऐसा हुआ तो जीडीपी 11 साल में सबसे कम, निजी उपभोग 7 साल में सबसे कम, मैन्युफैक्चरिंग 15 साल में सबसे कम और कृषि में 4 साल की सबसे कम बढ़त हो सकती है.
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2. महंगाई ने फिर हासिल की ऊंचाई
हाल में महंगाई काफी ऊंचाई पर चली गई है. दिसंबर 2019 में उपभोक्ता मूल्य आधारित यानी खुदरा महंगाई (CPI) 7.35 फीसदी पर पहुंच गई, जबकि एक साल पहले जनवरी 2019 में खुदरा महंगाई 1.97 फीसदी ही थी. महंगाई बढ़ने से यह रास्ता भी नहीं बचता कि रिजर्व बैंक ब्याज दरों में कटौती कर अर्थव्यवस्था को कुछ राहत दे.
3. राजकोषीय घाटे की चुनौती
इकोनॉमिक टाइम्स के अनुसार वित्त वर्ष 2019-20 के बजट में सरकार ने राजकोषीय घाटा जीडीपी के 3.3 फीसदी तक रखने का लक्ष्य रखा था, लेकिन इस लक्ष्य को हासिल करना अब काफी मुश्किल है. नवंबर 2019 तक राजकोषीय घाटा लक्ष्य से 14.8 फीसदी ज्यादा तक रहा है.
4. कर्ज प्रवाह की रफ्तार सुस्त
मांग की कमी और एनबीएफसी सेक्टर में परेशानी जैसी वजहों से बैंकों और वित्तीय संस्थाओं के कर्ज वितरण की रफ्तार बहुत कम हो गई है. इस वित्त वर्ष में अप्रैल से जनवरी तक के कर्ज प्रवाह में महज 7.6 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है, जबकि एक साल पहले की समान अवधि में इसमें 14.50 फीसदी की बढ़त हुई थी.
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5 . टैक्स कलेक्शन लक्ष्य से कम
इस वित्त वर्ष के लिए टैक्स कलेक्शन भी बजट में तय लक्ष्य से करीब 2 लाख करोड़ रुपये कम रह सकता है. वित्त वर्ष 2019-20 के बजट में 24.59 लाख करोड़ रुपये के टैक्स कलेक्शन का लक्ष्य रखा गया था, लेकिन नवंबर तक यह महज 20.8 लाख करोड़ रुपये हो पाया है. इसी वजह से सरकार इस वर्ष कोई बड़ा राहत पैकेज नहीं दे सकती. अगर वित्त मंत्री कॉरपोरेट या लोगों की व्यक्तिगत आयकर में कोई कमी करती हैं, तो इससे राजकोष पर दबाव और बढ़ेगा.
6. सरकारी खर्च बढ़ाना भी मुश्किल
अर्थव्यवस्था को सुधारने के लिए मांग को बढ़ाना एक प्रमुख उपाय है और इसके लिए निवेश जरूरी है. निजी क्षेत्र नकदी को दबाए हुए है, ऐसे में सरकारी खर्च पर ही मुख्य दारोमदार है. लेकिन कर संग्रह लक्ष्य से कम होने की वजह से सरकारी खर्च भी ज्यादा बढ़ाना संभव नहीं लग रहा. वित्त वर्ष 2019-20 के लिए बजट में 3.39 लाख करोड़ रुपये के पूंजीगत व्यय का लक्ष्य रखा गया था, लेकिन नवंबर 2019 तक सरकार सिर्फ 2.14 लाख करोड़ रुपये ही खर्च कर पाई है.