
एक फरवरी को उन चेहरों पर भी चमक भरी मुस्कान दिख रही थी जो बजट के दिन आमतौर पर बुझे-बुझे-से ही रहा करते हैं. जहां तक सामाजिक स्वास्थ्य के क्षेत्र में निवेश का सवाल है, भारत सबसे कंजूस देशों में रहा है. सरकार के एजेंडे में से स्वास्थ्य क्षेत्र के लगभग विलुप्त होने जैसी स्थिति पर डॉक्टर चिल्लाते, सिर पीटते रह जाते हैं और हर साल करीब साढ़े छह करोड़ लोग बीमारी पर होने वाले खर्चे के कारण गरीबी में धंसते जाते हैं.
वित्त मंत्री अरुण जेटली ने सामाजिक स्वास्थ्य क्षेत्र में कुछ शानदार कार्यक्रमों का ऐलान किया है. खासतौर पर राष्ट्रीय स्वास्थ्य संरक्षण योजना जिसमें 10 करोड़ परिवारों को 5 लाख तक का बीमा कवरेज देने की बात कही गई, तो चिकित्सा जगत खुशी से झूम उठा.
लेकिन आइए इसका कुछ हिसाब-किताब भी लगा लिया जाएरू यदि 30 वर्षीय किसी भारतीय के लिए 5 लाख रु. के स्वास्थ्य बीमा की खातिर 30 साल तक सालाना 6,000 रुपए का प्रीमियम भरना होगा तो 50 करोड़ भारतीयों के लिए यह रकम कितनी बैठेगी?
इसका उत्तर हैः 60,000 करोड़ रु. प्रतिवर्ष. पर यह राष्ट्र के स्वास्थ्य के लिए वित्त मंत्री की ओर से आवंटित 52,800 करोड़ रु. से कहीं ज्यादा है. यह पैसा कहां से आएगा?
पब्लिक हेल्थ फाउंडेशन के अध्यक्ष डॉ. के.एस. रेड्डी कहते हैं, ''यह एक बड़ी चुनौती साबित होगा. सरकार ने अपने वादे के अनुरूप पर्याप्त राशि का आवंटन नहीं किया है जिससे इसे पूरा करने में कठिनाई होगी."
डॉ रेड्डी बताते हैं कि जब तक सरकार की सभी बीमा योजनाओं को एकीकृत नहीं किया जाता तब तक इतनी रकम की व्यवस्था करना मुश्किल होगा. मेदांता-द मेडिसिटी के अध्यक्ष डॉ. नरेश त्रेहन बताते हैं कि सबसे बड़ी चुनौती होगी योग्य लाभार्थी की पहचान.
योजना के लाभार्थियों की पहचान के लिए सरकार आधार कार्ड पर आधारित कोई हेल्थ कार्ड जारी कर सकती है. उनके शब्दों में, ''यह तभी संभव हो सकेगा जब इसके सभी हितधारक—सार्वजनिक, निजी और एनजीओ—मिलकर कार्य करें."
नारायण हेल्थ के अध्यक्ष डॉ. देवी शेट्टी कहते हैं, ''देश के कई भागों में पर्याप्त अस्पताल ही नहीं हैं. यदि लोगों को बीमा कवरेज दे भी दें तो भी वे जरूरत पडऩे पर उसका लाभ लेंगे कैसे?"
फिर भी इतना तो स्पष्ट है कि 2018 का बजट यदि चुनाव का ब्लूप्रिंट नहीं है तो भी सामाजिक सेवा क्षेत्र में कई लोकलुभावन घोषणाओं का पिटारा तो है ही.
1,000 छात्रों को चिकित्सा क्षेत्र में शोध के लिए प्रोत्साहन देने वाली प्रधानमंत्री शोधार्थी योजना बहुत आकर्षक है. आधारभूत ढांचा और तकनीक क्षेत्र के सुधार के लिए करीब 1 लाख करोड़ रु. रखे गए हैं, हालांकि राष्ट्रीय शिक्षा मिशन के बजट में मात्र 3,000 करोड़ की बढ़ोतरी हुई है.
एकलव्य विद्यालयों में 50 प्रतिशत सीटें जनजातीय बच्चों के लिए रखना, सरकार के दलितों पर फोकस को दर्शाता है. फिर भी इस बजट का झुकाव उच्च शिक्षा की ओर दिखता है. सर्व शिक्षा अभियान के बजट में मामूली वृद्धि की गई है और यह 23,500 करोड़ रु. से बढ़कर 26,128 करोड़ रु. हो गया है. डॉ. त्रेहन की प्रतिक्रिया देखिए, ''मैं बहुत खुश हूं पर मैं चाहता हूं कि मेरी इस खुशी की उम्र लंबी हो."
''एक गरीब आदमी भी मोबाइल फोन पर हर महीने 250 रु. खर्च देता है. अगर आप उन्हें हर महीने 40 रु. के अंशदान को कहेंगे, तो वे ऐसा कर देंगे.
डॉ. देवी शेट्टी
सरकारी-निजी साझेदारी मॉडल के जरिए भारत की कुल जरूरत की 50 प्रतिशत से अधिक स्वास्थ्य सेवाएं तो प्रदान की ही जा सकती हैं.
डॉ. नरेश त्रेहन
जब तक राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के लिए उपलब्ध संसाधनों में वृद्धि नहीं की जाती, इसे पूरा करना बहुत चुनौतीपूर्ण होगा."
डॉ. के.एस. रेड्डी
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