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बोडोलैंड में वोट के बदले मिली गोली

असम सरकार को हिंसा की आशंका से बार-बार आगाह किया गया था, पर उसने नरसंहार को रोकने के लिए कोई पुख्ता व्यवस्था नहीं की और अब दोषियों को पकडऩे में टाल-मटोल कर रही है.

कौशिक डेका
  • नई दिल्ली,
  • 13 मई 2014,
  • अपडेटेड 1:21 PM IST

असम के बक्सा जिले में बेकी नदी के किनारे मुस्लिम बहुल खगराबाड़ी गांव में 3 मई को आधी रात करीब 20 हथियारबंद उग्रवादी घुस आए और अंधाधुंध गोलीबारी शुरू कर दी. गोलियों की आवाज से जागे गांववाले बगल के मानस राष्ट्रीय उद्यान के जंगलों की ओर भाग गए. वे सुबह लौटे तो नौ शव मिले, जिनमें दो महिलाओं और दो से सात साल उम्र के चार बच्चों के थे. पहली मई से शुरू हुए इस खून-खराबे में अब तक कोकराझर और बक्सा जिलों के गांवों से गोलियों से छलनी 41 शव बरामद किए जा चुके हैं.

एके-47 राइफलों से लैस उग्रवादियों ने जुलाई 2012 के बाद सबसे भयावह खून-खराबे को अंजाम दिया है. उस समय असम के बोडोलैंड टेरीटोरियल एरिया डिस्ट्रिक्ट्स (बीटीएडी) में 92 लोग मारे गए थे और 4,00,000 बेघर हो गए थे. बीटीएडी के चार जिलों में दो कोकराझार और बक्सा हैं. 2001 में असम में तरुण गोगोई सरकार के आने के बाद मई का यह खून-खराबा तीसरी बड़ी घटना है. बीटीएडी में 2008 के बाद समुदायों के झ्गड़ों में 182 लोग मारे गए और 338 अन्य लोग भी मारे गए जिनमें सामान्य लोग, आतंकी और सुरक्षाबलों के लोग भी शामिल थे.

लगातार तीसरी बार मुख्यमंत्री बने गोगोई ने पीडि़तों को सुरक्षा न मुहैया करा पाने की जिम्मेदारी तो ली लेकिन इस्तीफा देने से मुकर गए. उन्होंने बीजेपी के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी पर दोष मढ़ दिया. मोदी ने असम की रैलियों में कहा था कि राज्य में गैंडों का शिकार इसलिए बढ़ रहा है क्योंकि कांग्रेस सरकार काजीरंगा नेशनल पार्क के आसपास गैर-कानूनी बांग्लादेशी बाशिंदों को बसाना चाहती है.
5 मई को गोगोई ने ट्वीट किया कि 'मोदी के बेतुके आरोप’ बीटीएडी में खून-खराबे की वजह बने. उन्हें इस बारे में जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला से समर्थन हासिल हुआ. उमर ने कहा कि असम में हिंसा बीजेपी के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के यह कहने से भड़की कि वे 16 मई के बाद सभी बांग्लादेशी मुसलमानों को भारत से खदेड़ देंगे.

असम की विपक्षी पार्टियों का आरोप है कि गोगोई ने बार-बार हो रहे इन नरसंहारों पर इसलिए आंखें मूंद रखी हैं क्योंकि उनकी सरकार में शामिल बोडोलैंड पीपल्स फ्रंट (बीपीएफ) का इन हत्याकांड में हाथ है. असम में सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी ऑल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (एआइयूडीएफ) के नेता अमीनुल इस्लाम का आरोप है, ''यह बीपीएफ के नेताओं के बदले की कार्रवाई है जिनका मानना है कि मुसलमानों ने कोकराझर लोकसभा क्षेत्र से उनके उम्मीदवार को वोट नहीं दिया.”

नरसंहार से एक दिन पहले 30 अप्रैल को बीपीएफ की प्रमिला रानी ब्रह्म ने टीवी पर कहा कि उनकी पार्टी के उम्मीदवार चुनाव हार सकते हैं क्योंकि 80 फीसदी मुसलमानों ने 13 गैर-बोडो दबाव समूहों के उम्मीदवार को वोट दिया है. इस्लाम कहते हैं, ''चुनाव के पहले चंदन ब्रह्म ने कहा था कि अगर लोग बीपीएफ को वोट नहीं देंगे तो हाहाकार मच जाएगा. फिर भी राज्य की तरुण गोगोई सरकार ने कार्रवाई करने से इनकार कर दिया.” विपक्ष ही नहीं, असम के सीमावर्ती क्षेत्र विकास राज्यमंत्री सिद्दीक अहमद ने भी हत्याकांड के लिए बीपीएफ के उग्रवादी तत्वों को दोषी बताया.

बीपीएफ उग्रवादी संगठन बोडो लिबरेशन टाइगर्स (बीएलटी) का नया राजनैतिक अवतार है और वह हिंसा में हाथ होने से इनकार कर रहा है. अलग बोडो राज्य के लिए हिंसक संग्राम चलाने वाले बीएलटी ने 2003 में केंद्र और राज्य सरकार से एक समझौते पर दस्तखत किए थे. इससे बीटीएडी और स्वायत्त बोडोलैंड टेरीटोरियल काउंसिल (बीटीसी) का गठन हुआ और इलाके का प्रशासन उसे सौंपा गया था.

बीएलटी के सदस्यों ने बीपीएफ नामक राजनैतिक पार्टी का गठन किया और 13 मई, 2005 को पहली बार बीटीसी के चुनाव हुए तो वह सत्ता में आई. फिर बीपीएफ 2006 से राज्य में कांग्रेस सरकार में शामिल हो गई. चंदन ब्रह्म असम सरकार में परिवहन मंत्री हैं. वे कहते हैं, ''हिंसा के आरोप निराधार हैं. हमें अपनी जीत का पूरा यकीन है.” दूसरी ओर गोगोई कहते हैं, ''अगर बीपीएफ हिंसा में शामिल पाई गई तो मैं सारे संबंध तोड़ लूंगा.”

असम पुलिस ताजा हिंसा के लिए सोंगबिजित गुट को दोषी मानती है. यह नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट ऑफ बोडोलैंड (एनडीएफबी) के तीन में से एक गुट है. एनडीएफबी 1998 से स्वतंत्र बोडोलैंड की लड़ाई लड़ रहा है. गोगोई ने हिंसा की जांच राष्ट्रीय जांच एजेंसी को सौंपी है और न्यायिक जांच भी बैठाई है. वे छह दिन बाद 7 मई को हिंसाग्रस्त इलाकों का दौरा करने के लिए समय निकाल पाए. वे बक्सा जिलों के 18 पीडि़तों के रिश्तेदारों की मुख्यमंत्री के दौरे के बाद ही शव दफनाने की मांग पर भी नहीं झुके थे.

बीटीएडी के इलाके में 1993 से जातीय झ्गड़ों में करीब 400 लोग मारे गए हैं.  इस मई में हिंसा का शिकार मुस्लिम हुए, लेकिन बोडो उग्रवादियों के निशाने पर सिर्फ वे ही नहीं हैं. 1993 से करीब 150 गैर-मुस्लिम भी मारे गए हैं. इनमें असमी और संथाली लोग भी शामिल हैं. 11 जनवरी को एनडीएफबी (सोंगबिजित) के कार्यकर्ताओं ने कोकराझर में एक बस में यात्रा कर रहे पांच हिंदीभाषी लोगों को भी मार दिया था. राजनैतिक टिप्पणीकार अतनु भुइयां कहते हैं, ''इन्हें दंगा कहना गलत है. यह एनडीएफबी के एके-47 से लैस उग्रवादियों का हमला है.”

बीटीएडी के इलाके में सात बार हो चुकी ये हिंसक घटनाएं स्थानीय बोडो और गैर-बोडो लोगों के बीच वर्चस्व की हिंसक लड़ाई का हिस्सा हैं. इस इलाके में बोडो आबादी 30 फीसदी है. बीटीएडी इलाके समेत पूरे असम में यह आम धारणा है कि गैर-कानूनी बांग्लादेशी आप्रवासी स्थानीय लोगों को उनके ही इलाके में अल्पसंख्यक बनाते जा रहे हैं. आदिवासियों की जमीन की बिक्री गैर-आदिवासियों को करने पर पाबंदी लगाने वाले कानून की लगातार धज्जियां उड़ाई जाती हैं.

राजनैतिक टिप्पणीकार प्रशांत राजगुरु कहते हैं कि बीटीएडी में गैर-बोडो आबादी कृत्रिम रूप से बढ़ाई जा रही है क्योंकि कई आदिवासी ब्लॉकों और जंगल की जमीन पर गैर-कानूनी आप्रवासी घुस आए हैं और राज्य सरकार आदिवासियों के अधिकारों की रक्षा करने में नाकाम रही है.

बीटीएडी और असम के बाकी हिस्सों में खून-खराबा उस आम धारणा की वजह से है कि बांग्लादेश से लगातार बड़े पैमाने पर लोगों के आकर बसने से यहां मुसलमान बहुसंख्या में आ जाएंगे. हालांकि, ओमेव कुमार दास सामाजिक बदलाव और विकास संस्था के निदेशक भूपेन सरमा कहते हैं, ''गैर-कानूनी घुसपैठ हो रही है लेकिन आम धारणा से काफी कम संख्या में.” 1991 और 2001 के बीच असम में जनसंख्या वृद्धि 18.9 फीसदी की दर से हुई है जो 21.5 फीसदी के राष्ट्रीय औसत से कम है.

उसके अगले दशक में जनसंख्या वृद्धि 16.9 फीसदी की दर से हुई और यह भी 17.6 फीसदी की राष्ट्रीय औसत से कम है. बीटीएडी के चार जिलों में तो यह और भी कम है. चिरांग में सबसे ज्यादा 11.34 फीसदी की वृद्धि और कोकराझार सबसे कम 5.21 फीसदी की दर दर्ज की गई.

बीटीएडी के इलाकों में तनाव 2005 में एआइयूडीएफ के उभार के साथ बढ़ा. विपक्षी दल बीटीसी को भंग करने की मांग कर रहा है क्योंकि उसका आरोप है कि इसमें कई गैर-बोडो आबादी वाले गांवों को शामिल कर लिया गया है. 2006 में जब तरुण गोगोई को सरकार बनाने के लिए बीपीएफ और एआइयूडीएफ में से किसी एक को चुनना था तो उन्होंने बोडो पार्टी को सत्ता में अपना भागीदार बनाया.

पांच साल बाद गोगोई जब 126 सदस्यीय विधानसभा में 78 सीटों के साथ सत्ता में लौटे तो उन्हें बीपीएफ के समर्थन की दरकार नहीं थी. उन्होंने उसे सिर्फ एक मंत्री पद देने की पेशकश की. लेकिन बोडोलैंड राज्य की मांग को दूर रखने के लिए सत्ता में साझ्ेदारी की रणनीति फिलहाल उलटी पड़ रही है. बातें चाहे जो भी की जाएं लेकिन इस सचाई से मुंह नहीं मोड़ा जा सकता कि स्वायत्त जिलों के लोगों को यह पता ही नहीं है कि कब गोलियां चलने लग जाएंगी और इस तरह की घटनाएं दहशत पैदा करने के लिए काफी हैं.   

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