
अभी प्राकृतिक आपदा (ओलावृष्टि) का शिकार बने झांसी जिले के किसानों को दो सप्ताह भी पूरे नहीं हुए थे, कि कुछ किसानों के लिए दूसरी आपदा ने आकर कहर बरपा दिया. कुम्हरार गांव के इन किसानों के खेतों में इस बार आपदा प्रशासनिक अमले पर सवार होकर आई.
अफसरों और पुलिस की अगुवाई में किसानों की तैयार हो चुकी फसल पर ट्रैक्टर चलवाकर पूरी तरह जमीन में मिला दिया गया. किसान महिलाएं हाथ जोड़े अपने बच्चों की खातिर रहम की भीख मांगती रहीं, लेकिन मौके पर मौजूद एसडीएम उनकी सुनने को तैयार थीं और न रुकने को तैयार थीं. देखते ही देखते पूरी सरसों और गेहूं की फसल उजाड़ दी गई.
दरअसल, मामला झांसी की मोंठ तहसील के कुम्हरार गांव का है. यहां करीब 20 साल से कई किसान परिवार एक जमीन पर खेती करते आ रहे थे. आरोप है कि यह सरकारी जमीन है. इसी जमीन पर कब्जे को लेकर एक बीजेपी नेता ने शिकायत कर दी.
शिकायत पर प्रशासनिक अमले ने इतनी सक्रियता दिखाई की नियमों को धत्ता बताते हुए खेतों में खड़ी फसलों को बर्बाद कर दिया। यहां किसानों ने गेहूं और सरसों की फसल बो रखी थी. शि कायत पर एसडीएम पूनम निगम ने मौके पर जाकर नियम विरुद्ध तरीके से फसल बर्बाद करा दी. जबकि इस फसल को काटने के बाद किसानों को जमीन खाली करने का मौका दिया जा सकता था, या फिर फसल को सरकारी कब्जे में भी लिया जा सकता था.
डीएम के आदेश पर हुई कार्रवाई को प्रमुख सचिव ने बताया गलत
पिछले दिनों डीएम शिवसहाय अवस्थी ने तत्काल जमीन को कब्जा मुक्त कराने के आदेश उपजिलाधिकारी को दिए थे। इस मामले में प्रशासनिक अमले ने सक्रियता दिखाते हुए नियमों की अनदेखी करते हुए तत्काल उसी दिन उपजिलाधिकारी पूनम निगम और थाना प्रभारी कामता प्रसाद की मौजूदगी में ट्रैक्टर से खेत में खड़ी फसल को रौंद कर बर्बाद कर दिया.
जिन किसानों की फसलें बर्बाद की गई उनमें से ज्यादातार दलित हैं और उनके पास गुजारे का साधन भी नहीं है. इस मामले के सामने आने के बाद जनपद के दौरे पर पहुंचे प्रमुख सचिव सुरेश चंद्रा से पत्रकारों ने सवाल पूछा तो उन्होंने जमीन मुक्त कराने के इस तरीके को गलत बताते हुए मामले की जांच कराने और कार्रवाई की बात कही है.
क्या कहते हैं किसान
प्रशासन की इस कार्रवाई को सभी ने गलत बताया है. किसान सुनीता, कुसुम लता और आनन्द कुमार ने इसे प्रशासनिक तानाशाही बताया है. उन्होंने कहा की वह कई साल से इस जमीन पर फसल बोते आए हैं. इसके सिवा कुछ और साधन नहीं है.
किसान नेता गौरी शंकर विदुआ ने इस कार्रवाई की निंदा करते हुए कहा है, ये प्रशासन की ताना शाही है. बिना नोटिस किसान की फसल नहीं हटाई जा सकती. इस पर वार्ता की जाती तो किसानों का नुक्सान नहीं होता. फसल पर किसान का ही अधिकार था, जिसने उसे तैयार किया. इस पर कार्रवाई होनी चाहिए.
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