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हरियाणा और महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के साथ ही सबकी नज़रें उत्तर प्रदेश में उपचुनाव वाली 11 विधानसभा सीटों पर भी है जहां सोमवार को मतदान हो रहा है. लोकसभा चुनाव के बाद ये पहला मौका है जब उत्तर प्रदेश की राजनीतिक नब्ज़ जानने का मौका मिलेगा. विपक्षी पार्टियों के लिए ये खास तौर पर लिटमेस टेस्ट की तरह है जिनको लोकसभा चुनाव में बीजेपी के हाथों करारी मात खानी पड़ी थी.
प्रदेश की जिन 11 सीटों पर मतदान हो रहा है उनके नाम हैं गंगोह, रामपुर, इगलास, लखनऊ कैंट, गोविंद नगर, मानिकपुर, जैदपुर, जलालपुर, बाल्हा, घोसी और प्रतापगढ़. इन ग्यारह सीटों में से 8 पर पिछले विधानसभा चुनाव में बीजेपी का कब्जा रहा. एक सीट पर उसके सहयोगी अपना दल को जीत मिली. एक-एक सीट समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी के खाते में गई थी.
प्रदेश की उपचुनाव वाली सीटों पर सबसे दिलचस्प मुकाबला रामपुर सीट पर माना जा रहा है. यहां समाजवादी पार्टी ने राज्यसभा सांसद आजम खान की पत्नी डॉ तनज़ीन फातिमा को मैदान में उतारा है. 2017 विधानसभा चुनाव में रामपुर विधानसभा सीट से आजम खान को जीत मिली थी. बाद में लोकसभा चुनाव में जीत हासिल करने के बाद आजम खान ने रामपुर विधानसभा सीट छोड़ दी, जिसकी वजह से यहां उपचुनाव कराना पड़ा.
भारत भूषण हैं बीजेपी उम्मीदवार
बीजेपी ने रामपुर विधानसभा सीट से भारत भूषण गुप्ता को अपना उम्मीदवार बनाया है. गुप्ता पहले इसी सीट से बीएसपी के टिकट पर चुनाव लड़ चुके हैं. गुप्ता दो बार जिला पंचायत के सदस्य रह चुके हैं. कांग्रेस ने रामपुर सीट से अरशद अली खान और बहुजन समाज पार्टी ने ज़ुबेर मसूद खान को उम्मीदवार बनाया है.
घोसी विधानसभा सीट से बीजेपी ने विजय राजभर को टिकट दिया है. उनके पिता सब्जी विक्रेता हैं. इस सीट पर पिछले विधानसभा चुनाव में विजेता रहे फागू चौहान अब बिहार के राज्यपाल बन चुके हैं. उपचुनाव में लखनऊ कैंट की सीट को भी अहम माना जा रहा है. ये सीट रीता बहुगुणा जोशी के इस्तीफे से खाली हुई थी. रीता बहुगुणा जोशी को लोकसभा चुनाव में इलाहाबाद सीट से जीत मिली थी.
अपर्णा को नहीं दिया था टिकट
बीजेपी ने यहां से सुरेश तिवारी को अपना उम्मीदवार बनाया है जो पहले इसी सीट से तीन बार चुनाव जीत चुके हैं. समाजवादी पार्टी ने यहां से मेजर आशीष चतुर्वेदी, कांग्रेस ने दिलप्रीत सिंह और बीएसपी ने अरुण द्विवेदी को उम्मीदवार बनाया है. बता दें कि समाजवादी पार्टी ने यहां से मुलायम सिंह के बेटे प्रतीक यादव की पत्नी अपर्णा को दरकिनार कर मेजर आशीष चतुर्वेदी को टिकट दिया. अपर्णा इसी सीट से 2012 में चुनाव लड़ चुकी हैं.
उपचुनाव वाली सारी 11 सीटों पर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने पहुंच कर बीजेपी उम्मीदवारों के पक्ष में प्रचार किया. समाजवादी पार्टी प्रमुख सिर्फ रामपुर में आज़म ख़ान की पत्नी के प्रचार के लिए पहुंचे. बीएसपी सुप्रीमो मायावती उपचुनाव में किसी भी सीट के लिए प्रचार करने नहीं गईं.
कांग्रेस की तरफ से पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष अजय लल्लू ने राज्य में पार्टी के अन्य अहम नेताओं के साथ उपचुनाव वाली सीटों पर प्रचार किया. 2019 लोकसभा चुनाव में कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने उत्तर प्रदेश में गहन प्रचार किया था लेकिन पार्टी को जीत पूरे प्रदेश में सिर्फ रायबरेली सीट से मिली, जहां सोनिया गांधी उम्मीदवार थीं. कांग्रेस के लिए सबसे बड़ा झटका पार्टी के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी का अमेठी लोकसभा सीट से हार जाना रहा.
बीएसपी के लिए भी इस उपचुनाव के बहुत मायने हैं. समाजवादी पार्टी से नाता तोड़ने के बाद बीएसपी अकेले बूते ये चुनाव लड़ रही है. बीएसपी के लिए फ़िक्र की बात पिछले कुछ चुनावों में उसके गैर जाटव दलित वोटों पर सेंध लगना रहा है. विपक्षी पार्टियों में समाजवादी पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव के लिए भी ये उपचुनाव अग्निपरीक्षा है. अखिलेश के सामने अपने पार्टी कैडर को जहां एकजुट रखने की चुनौती हैं, वहीं अंदरूनी खींचतान का भी सामना है जो 2019 लोकसभा चुनाव के बाद बढ़ गई है.
लोकसभा चुनाव में किया था गठबंधन
लोकसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी ने अपने कुछ वरिष्ठों की सलाह के विपरीत जाकर मायावती के साथ गठबंधन किया था. लेकिन ये दांव पार्टी के लिए कारगर नहीं रहा. समाजवादी पार्टी को सिर्फ 5 लोकसभा सीटों पर ही जीत मिल सकी. लोकसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी को अपनी मज़बूत समझी जाने वाली कई सीटों पर भी मात खानी पड़ी. उपचुनाव में विपक्षी पार्टियों ने कोई खास प्रदर्शन नहीं किया तो 2022 विधानसभा चुनाव में उनकी डगर मुश्किल होगी और जिसका फायदा बीजेपी को मिलेगा.