Advertisement

यूपी में शाह का गणित नहीं अब माया-अखिलेश की जोड़ी हिट, उपचुनाव नतीजों के 10 बड़े संदेश

उपचुनाव वाली 14 सीटों में एनडीए और महागठबंधन के बीच उपचुनाव का स्कोरकार्ड 3-11 का रहा.  2019 के आम चुनावों की ओर बढ़ रहे राजनीतिक दलों के लिए ये नतीजे काफी दूरगामी असर डालने वाले हैं. पढ़ें, इन नतीजों के 10 बड़े संदेश. 

मायावती-अखिलेश(फाइल फोटो) मायावती-अखिलेश(फाइल फोटो)
संदीप कुमार सिंह
  • नई दिल्ली,
  • 01 जून 2018,
  • अपडेटेड 10:45 AM IST

देश की 4 लोकसभा सीटों और 10 विधानसभा सीटों पर हुए उपचुनाव के नतीजे गुरुवार को आए. 14 सीटों में एनडीए और महागठबंधन के बीच उपचुनाव का स्कोरकार्ड 3-11 का रहा.  2019 के आम चुनावों की ओर बढ़ रहे राजनीतिक दलों के लिए ये नतीजे काफी दूरगामी असर डालने वाले हैं. पढ़ें, इन नतीजों के 10 बड़े संदेश:

1. जहां बीजेपी के लिए उपचुनाव के नतीजे बड़ा झटका माने जा रहे हैं वहीं विपक्षी महागठबंधन के प्रयोग की सफलता की कहानी भी बयान करने वाले रहे. खासकर यूपी में सपा-बसपा के बोल्ड सियासी फैसले ने साफ कर दिया कि बीजेपी के चाणक्य अमित शाह के लिए 2019 की जंग यूपी में 2014 जितनी आसान नहीं रहने वाली.

Advertisement

2. इस जीत का श्रेय दिया जाना चाहिए सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव और बसपा प्रमुख मायावती को. जिन्होंने अपनी साझी रणनीति से पहले गोरखपुर-फूलपुर और अब कैराना-नूरपुर में बीजेपी को मात देकर तमाम दलों को मोदी मैजिक को मात देने का अचूक फॉर्मूला दे दिया.

3. अब मोदी मैजिक की काट विपक्षी दलों के पास है और वो है महागठबंधन का फॉर्मूला. जो पहले बिहार में सफल रही थी और अब यूपी में हर उपचुनाव में कामयाब होती जा रही है.

ये भी पढ़ें..

4 लोकसभा, 10 विधानसभा सीटों के उपचुनावों का FINAL RESULT

4. ममता बनर्जी का वन-टू-वन फॉर्मूला विपक्ष के लिए ब्रह्मास्त्र है. यानी अगर बीजेपी के सियासी समीकरणों को मात देना है तो छोटे-बड़े सभी दलों को साथ आना पड़ेगा. इसमें सियासी अहम रुकावट नहीं बननी चाहिए. जहां जो जीत सकता है उसे जीतने का मौका और समर्थन देना ही होगा. जैसे गोरखपुर-फूलपुर में बसपा ने सपा को मौका दिया. कैराना में आरएलडी को और नूरपुर में सपा को सभी विपक्षी दलों ने समर्थन किया और 100 फीसदी जीत मुमकिन हो पाई.

Advertisement

5. ये भी कि बीजेपी के लिए चुनावी लड़ाई अब 2014 जैसी आसान नहीं है. केंद्र में बीजेपी की सरकार के 4 साल पूरे हो चुके हैं और रोजगार-किसानों के मुद्दों समेत तमाम मुद्दों पर एंटी-इंकमबेंसी का सामना अब बीजेपी को करना होगा. अब सिर्फ ब्रांड मोदी जीत दिलाने के लिए काफी नहीं है.

6. केंद्र की मोदी सरकार को जनता के बीच असर दिखाने वाले ठोस कदम उठाने होंगे. किसानों, युवाओं के रोजगार के मुद्दे, आर्थिक गड़बड़ियों को रोक पाने में विफलता आदि ऐसे तमाम मुद्दे हैं जो विपक्ष को सरकार को घेरने का मौका दे रहे हैं इनपे ठोस कदम उठाने होंगे. इसके अलावा राम मंदिर जैसे बीजेपी के कोर मुद्दों पर भी कोई ठोस पहल नहीं होना बीजेपी के लिए मुश्किल बढ़ा रही है.

7. सिर्फ केंद्र की मोदी सरकार ही नहीं बल्कि बीजेपी की राज्य सरकारों को भी प्रदर्शन करके दिखाना होगा. अभी देश के 20 से अधिक राज्यों में बीजेपी और सहयोगी दलों की सरकारें हैं. आने वाले वक्त में राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ जैसे अहम राज्यों में चुनाव होने हैं. जबकि देश के सबसे बड़े राज्य यूपी जहां प्रचंड बहुमत के साथ बीजेपी जीतकर आई थी वहां लगातार उपचुनावों में हार हुई है. पार्टी को सरकार के कामकाज की जमीनी हकीकत पर गंभीरता से गौर करना होगा.

Advertisement

8. महंगाई का मुद्दा बीजेपी के लिए बड़ा सिरदर्द बनता जा रहा है. पेट्रोल-डीजल कीमतों को लेकर खुद बीजेपी की सहयोगी दल जेडीयू ने सवाल खड़ा किया और चुनावी हार के लिए इसे जिम्मेदार ठहराया.

9. हालांकि, यूपी-बिहार जैसे राज्यों में बढ़ती चुनौतियों के बीच बीजेपी के लिए कुछ अच्छे संकेत भी हैं. जैसे पश्चिम बंगाल में बीजेपी की लगातार पैठ बढ़ती जा रही है. त्रिपुरा जैसे पूर्वोत्तर राज्य में जीत से नए इलाकों में पार्टी के लिए संभावनाएं बढ़ी हैं. तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश, ओडिशा जैसे राज्यों में बीजेपी सक्रिय हुई है और उसे इसका फायदा मिल सकता है.

10. बीजेपी के लिए सहयोगी दलों को साथ लेकर चलना भी 2019 में बड़ी चुनौती होगी. जेडीयू, शिवसेना, यूपी में ओपी राजभर की पार्टी असंतुष्ट हैं तो टीडीपी ने एनडीए से नाता ही तोड़ लिया है. असम में असम गण् परिषद विरोध में खड़ी होती दिख रही है. वहीं दूसरी ओर कांग्रेस और महागठबंधन के खेमे में लगातार दलों की तादाद बढ़ती जा रही है. ये सभी घटनाक्रम 2019 के चुनावों को रोचक बनाएंगे.

Read more!
Advertisement

RECOMMENDED

Advertisement