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राजद का क्या होगा!

भाजपा और जद (यू) के हाथ मिला लेने से बिहार में चुनाव अब दो खेमों के बीच की सीधी लड़ाई में तब्दील हो जाएंगे. लालू अब भी आम लोगों के नेता हैं और यही वह वक्त था जब उनकी पार्टी को उनकी सबसे ज्यादा जरूरत थी.

आत्मघात दोषी साबित होने के बाद लालू प्रसाद यादव आत्मघात दोषी साबित होने के बाद लालू प्रसाद यादव
अमिताभ श्रीवास्तव
  • नई दिल्ली,
  • 03 जनवरी 2018,
  • अपडेटेड 7:51 PM IST

पहले तो गुजरात में नतीजे उम्मीद से कम रहने और फिर 2जी घोटाले में आरोपियों के बरी हो जाने से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ अभियान की हवा निकल गई. लेकिन लालू यादव को अदालत से दोषी ठहराए जाने से भाजपा को बिहार और अन्य राज्यों में विरोधियों को किनारे करने का अच्छा मौका मिल गया है. पर इसके राष्ट्रीय जनता दल के लिए क्या मायने हैं? क्या वक्त आ गया है कि राजद ब्रांड वंचितों की राजनीति का मर्सिया पढ़ दिया जाए?

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निजी तौर पर लालू का अपना संसदीय कॅरियर तो सितंबर 2013 में ही समाप्त हो गया था जब चारा घोटाले के पहले मामले में दोषी ठहराए जाने के बाद वे चुनाव लडऩे के अयोग्य करार दे दिए गए थे. उन्हें दूसरे मामले में ऐसे समय दोषी ठहराया गया है जब नीतीश कुमार के साथ छोडऩे के बाद उन्हें राजद का समर्थन आधार बढ़ाने की जरूरत थी.

नीतीश कुमार का जद (यू) बिहार में 16.5 फीसदी मुसलमानों को अपने साथ लाने में जी-जान से जुटा है तो उसकी साथी भाजपा यादवों को पटाने में लगी है जो राज्य की आबादी में 15 फीसदी हिस्सेदारी के साथ सबसे बड़ा जातीय समूह है. 69 वर्षीय राजद प्रमुख ने हाल ही में ओबीसी नेताओं को यह संकेत भेजने की शुरुआत ही की थी कि वे अपनी पार्टी के मुसलमान-यादव वोट बैंक का विस्तार करने और उसे मजबूत करने में लग जाएं.

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भाजपा और जद (यू) के हाथ मिला लेने से बिहार में चुनाव अब दो खेमों के बीच की सीधी लड़ाई में तब्दील हो जाएंगे. लालू अब भी आम लोगों के नेता हैं और यही वह वक्त था जब उनकी पार्टी को उनकी सबसे ज्यादा जरूरत थी. लालू की जेल की यह आठवीं यात्रा है और वह जानते हैं कि जितना ज्यादा समय वह जेल में रुकेंगे, चुनावी मुश्किलें उतनी ही ज्यादा बढ़ेंगी.

जब 23 दिसंबर को वे सीबीआइ के स्पेशल जज शिवपाल सिंह के कोर्ट रूम में प्रवेश कर रहे थे तो उन्होंने अपने छोटे बेटे और सियासी उत्तराधिकारी तेजस्वी का हाथ थामा और कहा, ''देखते रहना, ख्याल रखना.'' ऐसा लग रहा था कि बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री जगन्नाथ मिश्र समेत छह अन्य अभियुक्तों को बरी करने के कुछ ही देर बाद 4 खुद लालू को दोषी करार दिए जाने से पहले ही उन्होंने सारी उम्मीदें छोड़ दी थीं. फैसले के कुछ ही घंटों बाद औपचारिक रूप से उत्तराधिकार तेजस्वी के हाथ में सौंप दिया गया जब राजद नेता जगदानंद सिंह ने यह घोषणा की कि ''सामाजिक न्याय की लड़ाई तेजस्वी प्रसाद यादव के नेतृत्व में जारी रहेगी.''

फैसला आरसी 64ए/96 मामले में सुनाया गया था जो साल 1991 से 1994 के बीच देवघर जिला कोषागार से 250 वाउचरों और 17 फर्जी आवंटन पत्रों का इस्तेमाल करके 4.73 लाख रु. के आवंटन के बदले 89.27 लाख रु. की निकासी कर लेने के मामले से संबद्ध था. चारा घोटाला बिहार के पशुपालन विभाग की ओर से विभिन्न जिला कोषागारों से 900 करोड़ रु. फर्जी तरीके से निकाल लेने से संबद्ध है. यह नब्बे के दशक के उन वर्षों में हुआ था जब लालू यादव बिहार के मुख्यमंत्री थे. सीबीआइ ने उन पर पांच मामलों में आपराधिक साजिश का आरोप लगाया है.

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उत्तराधिकारी चुने गए पूर्व उपमुख्यमंत्री तेजस्वी को उनकी संतुलित और परिपक्व राजनीति के कारण थोड़ा बहुत सम्मान हासिल है. लेकिन उन्हें अभी पिता के सांचे में फिट होने में काफी वक्त लगेगा. दूसरी तरफ उनके बड़े भाई तेज प्रताप का रवैया टकराव वाला ज्यादा नजर आता है. लालू यादव के जेल की सलाखों के पीछे होने से इन दोनों को 80 विधायकों से निबटना होगा. पार्टी में दलबदल और फूट का भी खतरा रहेगा.

हालांकि लालू यादव अब भी पार्टी की रणनीति के केंद्र में रहेंगे. तेजस्वी ने पटना में कहा है कि, ''हम बिहार के लोगों की अदालत में जाएंगे और उन्हें बताएंगे कि कैसे मेरे पिता को गलत तरीके से फंसाया गया'' मकसद साफ है—लालू और उनके बेटों के पक्ष में लोगों की सहानुभूति जुटाना. अतीत में भी जेल की यात्रा लालू के राजनीतिक कॅरियर में तेजी लाने वाली ही रही है—जैसा कि आपातकाल के बाद हुआ था जब उन्होंने पहला लोकसभा चुनाव जीता था.

हालांकि आज उनकी कहानी थोड़ी अलग है. राज्य सरकार एक सप्ताह में केवल तीन लोगों को ही उनसे मिलने दे रही है. लालू को ऐसे में राजनीतिक हलके से दूर रहने के बावजूद भी पार्टी को एकजुट रखने की रणनीति तैयार करनी होगी. देखना यही है कि वंचित समुदायों की सहानुभूति पार्टी को बचा पाती है या नहीं.

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