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जब हम कैंसर के इलाज की बात करते हैं तो इसमें पहला अहम पहलू बीमारी का समय पर पता लगना है. डायग्नोसिस के बाद ट्रीटमेंट आता है जिससे जुड़ी कई बातें हैं. इन सभी क्षेत्रों में नई टेक्नोलॉजी का प्रवेश, इस बीमारी से लडऩे में कारगर हथियार बनकर उभरा है. लेकिन हमें हमेशा अपनी सेहत को लेकर खुद जागरूक रहना चाहिए क्योंकि समय पर बीमारी का पता लगने पर खर्च भी कम आता है, साइड इफेक्ट्स भी कम होते हैं और सही होने की संभावनाएं भी ज्यादा रहती हैं.
अगर लिंग के हिसाब से कैंसर की बात करें तो महिलाओं में ब्रेस्ट कैंसर, यूटेराइन सर्विक्स कैंसर और ओवरी के कैंसर के मामले ज्यादा आते हैं जबकि पुरुषों में प्रोस्टेट और फेफड़ों का कैंसर काफी होता है. ब्रेस्ट कैंसर में डिजिटल मैमोग्राफी से बीमारी को जल्दी पकड़ा जा सकता है. इसके अलावा एमआरआइ भी एक टेक्नोलॉजी है और ब्रेस्ट के ट्यूमर के बारे में थर्मोइलेस्टोग्राफी भी कारगर रहती है. एक समय था जब ब्रेस्ट कैंसर में पूरी ब्रेस्ट को ही निकाल दिया जाता था. अगर समय पर बीमारी का पता चल जाए तो अब ब्रेस्ट को निकालने की जरूरत काफी कम हो गई है. इससे महिलाओं का आत्मविश्वास भी कम नहीं होता और एस्थेटिक पहलू भी बना रहता है.
कैंसर का पूरा इलाज कई स्तर पर टिका है जिसमें डायग्नोसिस, मेडिसिन, रेडियोथेरेपी, और सर्जरी शामिल हैं. सर्जरी के क्षेत्र में हुई नई तरक्की को समझने के लिए हम सिलसिलेवार ढंग से कदम बढ़ाते हैं:
सर्जरी से पहले
पैट (पोजिशन एनिसन टोमोग्राफी) स्कैनिंग यह टेक्नोलॉजी सभी प्रकार के कैंसर में मददगार होती है. इससे बीमारी और उसकी अवस्था का पता लगाना काफी आसान हो जाता है. यह ट्यूमर की ओर बखूबी इशारा कर देती है. इलाज किस राह पर चल रहा है और उससे कितना फायदा हो रहा है, इसका पता भी पैट स्कैन से लग जाता है.
कोल्पोस्कोपी इसका इस्तेमाल सर्विक्स कैंसर में होता है. इसमें वजाइना और सर्विक्स को विजुआलाइज किया जाता है और कैंसर कोशिशकाओं के बारे में विस्तार से जानकारी मिलती है.
अल्ट्रासाउंड और सीटी स्कैन इससे रेडिएशन नहीं जुड़ी है. अगर कैंसर शुरुआती स्टेज में है तो अल्ट्रासाउंड बखूबी इस्तेमाल हो सकता है. लेकिन इसकी खामी यही है कि यह पूरी तरह ऑपरेटर पर निर्भर करता है. इसमें एक्सपीरियंस काफी मायने रखता है. अल्ट्रासाउंड के बाद सीटी स्कैन की बारी आती है.
नई सर्जरी
गामा नाइव्ज रेडियोसर्जरी इसे रेडिएशन थेरेपी का इस्तेमाल मस्तिष्क में पैदा हुई असंगतियों और ट्यूमर के इलाज के लिए किया जाता है. इसमें विशेष उपकरणों के माध्यम से रेडिएशन की बीम सीधे ट्यूमर पर की जाती है, इलाज एकदम सटीक होता है और मस्तिष्क के बाकी हिस्से को भी नुकसान नहीं पहुंचता. यह टेक्नीक थोड़ी महंगी है पर बहुत कारगर है.
स्टीरियोटैक्टिक सर्जरी यह सर्जरी थोड़ी महंगी है लेकिन शरीर के किसी भी हिस्से को कम से कम नुकसान पहुंचाकर की जा सकती है. यह थ्री डाइमेंशनल कॉर्डिनेट सिस्टम का इस्तेमाल करते हुए शरीर के अंदर मौजूद छोटे-छोटे लक्ष्यों का पता लगाती है. फिर इसके जरिये उन पर बायप्सी, रेडियोसर्जरी, इंजेक्शन जैसी प्रक्रियाओं को अंजाम दिया जाता है.
ब्रैकी थेरेपी रेडियोऐक्टिव सीड्स या सोर्सेज को ट्यूमर के एकदम पास रखा जाता है. इससे ट्यूमर वाले हिस्से को टारगेट किया जाता है. बाकी हिस्से को कोई नुकसान नहीं पहुंचता है. इसे कैंसर के एडवांस ट्रीटमेंट के तौर पर लिया जाता है.
लेखक जेपीएन अपेक्स ट्रॉमा सेंटर (एम्स) के प्रमुख और डिपार्टमेंट ऑफ सर्जिकल डिसिप्लिंस में प्रोफेसर और हेड हैं.