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पंजाब में कांग्रेस की हार के लिए सोनिया गांधी ने पीपल्स पार्टी ऑफ पंजाब (पीपीपी) को जिम्मेदार ठहराया है. लेकिन राज्य के कांग्रेसी अपनी खुद की पार्टी को दोषी ठहराते हैं. और शिरोमणि अकाली दल नेता प्रकाशसिंह बादल उनसे सहमत नजर आते हैं. पांचवीं बार मुख्यमंत्री बने बादल शिरोमणि अकाली दल-भाजपा गठबंधन की भारी-भरकम जीत को दिल्ली में यूपीए की विफलताओं से जोड़ते हैं. उन्होंने 9 मार्च को आनंदपुर साहिब में होला मोहल्ला समारोह में ऐलान किया, 'महंगाई, भ्रष्टाचार, बेरोजगारी और अपने नागरिकों की रक्षा कर सकने में विफलता कांग्रेस को भारी पड़ी.'
नतीजों के फौरन बाद, कांग्रेस प्रवक्ता मनीष तिवारी ने भी इस पराजय को 'देश भर में चिढ़ से भरे कांग्रेस विरोधी मूड' का नतीजा बताया था. पंजाब कांग्रेस के अध्यक्ष अमरिंदर सिंह को इन लोगों की बातें जायज लगी होंगी. अमरिंदर ने हार के कारणों पर एक रिपोर्ट सोनिया को सौंपी है. अमरिंदर संन्यास लेने के मूड में जरा भी नहीं हैं. वे कहते हैं, 'यह निश्चित तौर पर एक झटका है, लेकिन मैं लड़ाई हारने के बाद भागूंगा नहीं.' उन्हें यह आशंका है कि अकाली दल-भाजपा गठबंधन की जीत के बाद कांग्रेस के समर्थकों को सताया जा सकता है. वे कहते हैं, 'मैं उन लोगों के साथ खड़ा रहना चाहता हूं.'
सोनिया ने अभी तक अमरिंदर की रिपोर्ट पर प्रतिक्रिया नहीं दी है, जिसमें भ्रष्टाचार, साथ ही महंगाई का भी जिक्र है और पोलिंग बूथ के स्तर पर कुप्रबंधन को दोषी ठहराया गया है. रिपोर्ट में दलित वोटों के बहुजन समाज पार्टी के पक्ष में जाने, नासमझी से किए गए टिकट वितरण, जिसका नतीजा विद्रोही उम्मीदवारों के रूप में निकला और सत्ता विरोधी मतों का बंटवारा मनप्रीत बादल के नेतृत्व वाली पीपीपी के साथ होने की चर्चा है. 30 जनवरी को हुए मतदान में बसपा, पीपीपी और कांग्रेस के विद्रोहियों को कुल मिलाकर 23.47 लाख या 17.21 फीसदी वोट मिले. बसपा ने अपने वोटों की संख्या 2007 के विधानसभा चुनावों में मिले 1.88 लाख वोटों से दोगुनी करके 3.1 लाख कर ली, जिससे दोआबा में कांग्रेस का सफाया हो गया.
अमरिंदर की रिपोर्ट में शहरी वोटों की हिस्सेदारी में खासी गिरावट आने पर जोर दिया गया है. रिपोर्ट में कहा गया है, 'ऐसा लगता है कि उच्च और मध्य वर्ग पर अण्णा हजारे के जनलोकपाल आंदोलन और तमाम घोटालों पर जनता की नाराजगी का असर पड़ा है.' अमरिंदर के विरोधियों, खासतौर पर गुरदासपुर के सांसद प्रताप बाजवा, पूर्व मुख्यमंत्री राजिंदर कौर भट्टल, विधायक सुखपाल खैरा और राहुल गांधी के नजदीकी और आनंदपुर साहिब के सांसद रवनीत बिट्टू के साथ दिवंगत मुख्यमंत्री बेअंत सिंह के परिवार ने अमरिंदर के नेतृत्व की आलोचना की है.
दूसरी ओर अमरिंदर के समर्थक यह जताते हैं कि बाजवा और भट्ठल दोनों उन निर्वाचन क्षेत्रों में जीत सुनिश्चित करने में विफल रहीं, जहां के उम्मीदवारों की सिफारिश उन्होंने की थी. पार्टी के एक वरिष्ठ नेता कहते हैं, 'भट्टल के नौ उम्मीदवारों में से सिर्फ एक जीता, और बाजवा सारा समय कादियान में डटे रहे, जहां से उनकी पत्नी चरणजीत कौर उम्मीदवार थीं.' चरणजीत कौर 16,156 वोटों के अंतर से जीतीं.
इस बात से शायद ही कोई इनकार करता हो कि 2014 के लोकसभा चुनाव के लिए कांग्रेस का एकमात्र विश्वसनीय चेहरा अमरिंदर सिंह ही हैं. चुनाव नतीजे आने के दो दिन बाद सोनिया ने अमरिंदर को फोन करके संक्षिप्त बातचीत की थी. 10 जनपथ से मिले शुरुआती संकेतों से आभास होता है कि पार्टी ऐसा कोई कदम शायद ही उठाए, जिससे आम चुनाव के बाद उसका अपना अस्तित्व खतरे में पड़ सकता हो.