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तकनीक के क्षेत्र में विकास काफी तेजी से हो रहा है. यही वजह है कि आजकल रोबोट का इस्तेमाल तकरीबन हर फील्ड में होने लगा है. ज्यादातर रोबोट की संरचना मानव की तरह ही होती है. इसे बिल्कुल मानवीय अंगों के काम करने के तौर-तरीकों के आधार पर बनाया जाता है. रोबोट की बढ़ती उपयोगिता के कारण रोबोटिक्स के क्षेत्र में रोजगार की संभावनाएं काफी तेजी से बढ़ी हैं.
इस फील्ड में एंट्री कैसे होती है?
रोबोटिक्स के क्षेत्र में करियर बनाने के लिए इलेक्ट्रिकल, मैकेनिकल और कंप्यूटर साइंस की अच्छी नॉलेज या डिग्री जरूर होनी चाहिए. रोबोटिक एक तरह से लॉन्ग टर्म रिसर्च ओरिएंटेड कोर्स है. इस क्षेत्र से जुड़े कुछ स्पेशलाइजेशन कोर्स भी कर सकते हैं, जैसे ऑर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, रोबोटिक्स, एडवांसड रोबोटिक्स सिस्टम. इस तरह के कोर्स कई इंजीनियरिंग कॉलेज ऑफर कर रहे हैं.इसके अलावा, स्पेशलाइजेशन के लिए पोस्ट ग्रेजुएट लेवॅल कोर्स भी कर सकते हैं. आमतौर पर मैकेनिकल, इलेक्ट्रिकल, इंस्ट्रूमेंटेशन, कम्प्यूटर साइंस से ग्रेजुएट कर चुके स्टूडेंट्स इस कोर्स के लिए बेहतर हैं.
जॉब की क्या संभावनाएं हैं?
इस क्षेत्र में ट्रेंड प्रोफेशनल्स की मांग तेजी से बढ़ रही है. भेल, बीएआरसी और सीएसआईआर फ्रेश ग्रेजुएट की नियुक्ति बतौर वैज्ञानिक करता है. आप चाहें तो पोस्टग्रेजुएशन स्तर पर स्पेशलाइजेशन कर सकते हैं. माइक्रोचिप मैन्युफैक्चरिंग के लिए इंटेल जैसी कंपनी में बतौर रोबोटिक्स और आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस स्पेशलिस्ट के तौर पर नियुक्ति करती है.
इसके अलावा, इसरो और नासा में भी रोबोटिक्स के स्पेशलिस्ट की नियुक्तियां की जाती हैं. वैसे, इस फील्ड में इलेक्ट्रिक व इलेक्ट्रॉनिक्स, मैकेनिकल और कंप्यूटर एंड सॉफ्टवेयर फील्ड से जुड़े लोगों की जरूरत अधिक होती है.
रोबोट का इस्तेमाल
युद्ध क्षेत्र में रोबोट का इस्तेमाल तेजी से बढ़ा है. यूएवी (अनमैंड एरियल व्हीकल) रिमोट द्वारा नियंत्रित विमान है, जैसे अमेरिकन सेना का ड्रोन विमान
अंतरिक्ष में खोज करने के लिए नासा ने कई रोबोट विकसित किए हैं. इन रोबोट को विकसित करने के पीछे नासा का मुख्य मकसद है कि मनुष्यों को अंतरिक्ष की किसी भी खतरनाक स्थिति से बचाया जा सके.
ऑपरेशन करने के लिए बेहर स्किल के साथ बेहतर नियंत्रण की आवश्यकता होती है.
कई यूरोपियन कंपनियां सोलर पैनल बनाने में रोबोट का इस्तेमाल कर रही हैं.
प्रमुख संस्थान:
इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी, कानपुर
नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी, हैदराबाद
जादव यूनिवर्सिटी, कोलकाता