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पोस्टमार्टम के लिए नहीं मिली एंबुलेंस, रिक्शे में शव लादे घूमते रहे परिजन

घटना की जानकारी स्थानीय लोगों ने थाने में दर्ज कराई. लेकिन शव को पोस्टमार्टम के लिए अस्पताल भेजने की जब बार आई तो न ही एंबुलेंस मुहैया हुई और न ही कोई दूसरा वाहन.

कोई दूसरा वाहन भी नहीं मिला कोई दूसरा वाहन भी नहीं मिला
सुनील नामदेव
  • रायगढ़,
  • 16 सितंबर 2016,
  • अपडेटेड 4:23 AM IST

छत्तीसगढ़ के रायगढ़ जिले में एक शर्मनाक घटना ने लोक कल्याणकारी राज्य की परिकल्पना पर करारी चोट की है. यही नहीं आम जनता के प्रति प्रशासन कितना सवेंदनशील है, इस घटना ने इसकी भी पोल खोलकर रख दी है. मामला घरघोड़ा इलाके का है, यहां तेज बारिश के दौरान अचानक आकाशीय बिजली गिरने से 40 साल के रामलाल नामक शख्स की मौत हो गई.

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घटना की जानकारी स्थानीय लोगों ने थाने में दर्ज कराई. लेकिन शव को पोस्टमार्टम के लिए अस्पताल भेजने की जब बार आई तो न ही एंबुलेंस मुहैया हुई और न ही कोई दूसरा वाहन. मृतक के परिजन पुलिस और प्रशासन के लोगों से गुहार लगाते रहे, लेकिन अधिकारियों ने कभी ईद का तो कभी गणेश उत्सव का हवाला देकर अपना पल्ला झाड़ लिया. घंटों इंतजार करने के बाद जब कोई गाड़ी नहीं मिली, तब रामलाल के परिजनों ने उसके शव को एक रिक्शे में लादकर नौ किलोमीटर दूर घरघोड़ा के सरकारी अस्पताल का रुख किया.

खाट पर रख वापस लाए शव
पोस्टमार्टम के बाद भी रामलाल के परिजनों की मुसीबत कम नही हुई. यहां भी एंबुलेंस के लिए उन्हें दिनभर इंतजार करना पड़ा. पुलिस ने यह कहकर अपनी औपचारिकता पूरी कर ली कि पोस्टमार्टम के बाद शव को डॉक्टरों ने परिजनों को सौंप दिया है. लिहाजा उसे ठिकाने लगाने की जवाबदारी परिजनों की ही है. कोई सहायता नहीं मिलने पर रामलाल के परिजनों ने उसके शव को एक खटिया में डाला और अपने घर के लिए निकल पड़े. कुछ किलोमीटर का सफर तय करने के बाद यह खटिया भी बीच रास्ते में टूट गई. फिर एक रिक्शे का इंतजाम किया गया और शव को घर लाया गया.

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रिक्शे के लिए भी मारे हाथ-पांव
रामलाल की अचानक मौत के बाद उसका परिवार सदमे में आ गया है. जैसे-तैसे उन्होंने उसका अंतिम संस्कार किया. उसके परिजनों ने शव के साथ घटनास्थल से लेकर अस्पताल तक पूरा 9 किलोमीटर का सफर रिक्शे से तय किया. जबकि पोस्टमार्टम के बाद यही सफर फिर शुरू हुआ. रामलाल की लाश को पहले खटिया में रखकर अस्पताल के गेट तक लाया गया. फिर पैदल ही पांच किलोमीटर तक ले गए. इस बीच खाट टूट गई. करीब दो घंटे तक उसके परिजन रिक्शे के इंतजाम के लिए हाथ पांव मारते रहे. हालांकि उन्हें काफी जद्दोजहद के बाद रिक्शा मिला. फिर बचा आठ किलोमीटर का सफर उन्होंने रिक्शे में लाश रख तय किया.

फजीहत के बाद जागा प्रशासन
इस इलाके में अन्धविश्वास के चलते कोई भी अपने निजी वाहन शव को लाने ले जाने के लिए नहीं देता. इस अजीबोगरीब परंपरा के चलते रामलाल के परिजनों की मदद के लिए कोई भी वाहन मालिक सामने नही आया. घटना के बाद चौतरफा घिरे प्रशासन ने अपनी आलोचना होते देख सक्रियता दिखाना शुरू की. कलेक्टर श्रीमती अलरमेल मंगई डी ने एक तहसीलदार को रामलाल के परिजनों के पास भेजा और उन्हें दस हजार रुपये की आर्थिक सहायता दी. इसके आलावा चार लाख रुपये बतौर मुआवजा जल्द देने का आश्वासन दिया. यह रकम प्राकृतिक आपदा के दौरान पीड़ित परिवारों को सरकार राजस्व कानूनों के तहत मुहैया कराती है.

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अब प्रशासन सफाई देने में जूटा है. उसकी दलील है कि पीड़ितों ने उस तक सूचना ही नहीं पहुंचाई. लेकिन उनके पास इस बात को लेकर कोई ठोस जवाब नहीं है कि पूरे 22 घंटे तक रामलाल का शव कभी घटनास्थल पर तो कभी अस्पताल में एंबुलेंस की राह तकता रहा. लेकिन पुलिस से लेकर प्रशासन के लोग मदद के लिए आखिर क्यों तैयार नहीं हुए.

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