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सहारनपुर जातीय हिंसा, संयोग या साजिश?

पश्चिमी उत्तर प्रदेश के सहारनपुर जिले में भड़की जातीय हिंसा क्या महज संयोग है या फिर साजिश. आजतक संवाददाता पड़ताल कर रहे हैं कि आखिर इसके पीछे क्या वजह है. नफरत के खूनी नाच के पीछे क्या वजह है.

सहारनपुर हिंसा सहारनपुर हिंसा
संजय बरागटा
  • नई दिल्ली,
  • 26 मई 2017,
  • अपडेटेड 3:30 PM IST

उत्तर प्रदेश में बीजेपी की भारी जीत. बसपा से दलित और पिछड़े वोटों के खिसकने वाले आंकड़े. 20 अप्रैल को अंबेडकर जयंती के जुलूस में शामिल बीजेपी कार्यकर्ताओं और दलितों के बीच मतभेद की कोशिशें. हिंसा फैलाने की शुरुआत. इसके बाद 22 सालों में पहली बार बसपा का स्थानीय शहरी निकाय चुनाव अपने चुनाव चिह्न पर लड़ने का ऐलान. इसके साथ ही यूपी में अनुसूचित जातियों की सबसे बड़ी आबादी वाले जिलों में अगुवा सहारनपुर के गांवों में यकायक लगी नफरत की आग. क्या ये संयोग सिर्फ सामाजिक है या फिर सियासी. इस पूरे हंगामे के पीछे कही जा रही भीम आर्मी को बसपा की गुप्त ताकत मिली हुई है या कोई और भी उसके पीछे है. ये सारा खूनखराबा और नफरत का नंगा नाच स्वत:स्फूर्त है या सुनियोजित. महज संयोग है या फिर सोची समझी साजिश. कई सवाल उठते हैं.

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आखिर क्या है इस उथलपुथल की वजह?
बहुजन समाज पार्टी ने 1995 के बाद से शहरी निकायों के चुनाव अपने चुनाव चिह्न पर नहीं लड़े. ना कोई उपचुनाव लड़ा ना ही पंचायतों के चुनावों में उम्मीदवार बनने की इजाजत अपने कार्यकर्ताओं को दी, लेकिन 2014 के लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश से एक भी सीट ना जीत पाने के झटके और 2017 में हुए विधान सभा चुनाव में 23 फीसदी वोट के साथ सिर्फ 19 सीटें ही पाने के अफसोस ने पार्टी को दूसरे विकल्पों पर भी विचार करने को मजबूर कर दिया है.
शहरी इलाकों में पार्टी की खस्ता हालत को देखते हुए 19 अप्रैल को पार्टी सुप्रीमो मायावती ने ऐलान किया कि अब पार्टी अगले महीनों में होने वाले शहरी निकायों के चुनाव अपने चुनाव चिह्न हाथी पर लड़ेगी. इसके लिए शहरी स्तर पर कमेटियां बनाकर कार्यकर्ताओं को सक्रिय होने को कह दिया गया. कार्यकर्ता भी सक्रिय हो गए.

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इसके तुरंत बाद से ही खून खराबा और माहौल बिगाड़ने का काम शुरू हो गया. 20 अप्रैल को दूधली में अंबेडकर यात्रा निकल रही थी. ऐसे में इस बात को जानना जरूरी हो जाता है कि मुसलमानों के साथ संघर्ष की साजिश किसने और क्यों रची. वहां आग बुझाने की कोशिश हुई तो 5 मई को फिर चिंगारी सुलगा दी गई. शब्बीरपुर में अंबेडकर की प्रतिमा लगाने को लेकर तनाव बढ़ा. समझौता तो हुआ लेकिन 19 मई को राणाप्रताप जयंती समारोह में डीजे को लेकर फिर पथराव शुरू हो गया. 21 मई को पास के ही घड़कौली गांव में उपद्रवी तत्वों ने गांव के नये नाम जातिसूचक गौरव वाले नाम के बोर्ड को आग लगा दी.
दो दिन बाद 23 मई को बसपा सुप्रीमो मायावती के जनसंपर्क की आड़ में जनसभा करने के बाद चिंगारी भड़क गई. इधर मायावती शब्बीरपुर में करीब पांच हजार समर्थकों की मीटिंग को संबोधित करके जैसे ही निकली आधे घंटे के भीतर ही गांव में आगजनी और हिंसा का दौर शुरू हो गया. इसके अगले ही दिन सुबह पांच बजे एक आदमी को गोली मार दी गई. अगले दिन भरी दुपहरी में आसनवाली गांव का एक युवक गोली का शिकार हो गया. ऐसे में आप अब खुद ही अंदाजा लगाएं कि क्या यह सब महज संयोग है या फिर सोची-समझी चाल.

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