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सेंसर बोर्ड की चिट्ठी- हनुमान जी का अश्लील चित्रण, कैसे पास करें 'का बॉडीस्केप्स'

'लिपिस्टिक अंडर माय बुर्का' के बाद अब मलयाली फिल्मकार जयन चेरियन की फिल्म 'का बॉडीस्केप्स' को सेंसर बोर्ड की ओर से सर्टिफेकेट देने से इनकार करने के मामले ने तूल पकड़ लिया है.

तीन युवाओं पर आधारित है फिल्म की कहानी तीन युवाओं पर आधारित है फिल्म की कहानी
अमित कुमार दुबे/विद्या
  • मुंबई,
  • 03 मार्च 2017,
  • अपडेटेड 12:13 AM IST

'लिपिस्टिक अंडर माय बुर्का' के बाद अब मलयाली फिल्मकार जयन चेरियन की फिल्म 'का बॉडीस्केप्स' को सेंसर बोर्ड की ओर से सर्टिफेकेट देने से इनकार करने के मामले ने तूल पकड़ लिया है. दूसरी रिवाइजिंग कमेटी ने फिल्म में गे और होमोसेक्सुअल संबंधों का 'महिमा-मंडन' किए जाने की वजह से फिल्म को सर्टिफिकेट ना दिए जाने की सिफारिश की है.

'का बॉडीस्केप्स' के निर्देशक जयन चेरियन न्यूयॉर्क में रहते हैं. केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड (CBFC) की ओर से तिरुवनंतपुरम स्थित क्षेत्रीय अधिकारी डॉ प्रतिभा ए. ने जयन चेरियन को चिट्ठी भेजकर फिल्म को सर्टिफिकेट नहीं दिए जाने की जानकारी दी.

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क्या कहा सेंसर बोर्ड ने?
इस चिट्ठी में लिखा गया है कि 'दूसरी रिवाइजिंग कमेटी ने सर्वसम्मति से फिल्म को सर्टिफिकेट नहीं देने की सिफारिश की है. उनका मानना है कि फिल्म में समलैंगिक संबंधों को महिमा मंडन वाले तरीके से दिखाया गया है. फिल्म में पेंटिंग्स के जरिए पुरुष के शरीर के अहम अंगों को निरूपित करने वाली नग्नता को क्लोज शाट्स में दिखाया गया है. फिल्म में हिंदू धर्म को अवमानना वाले ढंग से दिखाया गया है. खास तौर पर भगवान हनुमान का जिस तरह (अश्लील चित्रण) उल्लेख किया गया है उससे समाज में कानून और व्यवस्था की समस्या हो सकती है. फिल्म में समलैंगिकता को दिखाने वाले पोस्टर हैं और महिलाओं के खिलाफ भी अवमानना वाली टिप्पणियां हैं. फिल्म में हिंदू संगठनों को लेकर संदर्भ हैं जो कि अवांछित हैं.'

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तीन युवाओं पर आधारित है कहानी
'कॉ बॉडीस्केप्स' तीन युवाओं की कहानी है जो रूढिवादी शहर में रहते हुए अपने लिए जगह और खुशी ढूंढने की जद्दोजहद करते हैं.

पहले भी रिवाइजिंग कमेटी ने किया था खारिज
बता दें कि इस फिल्म को पहले भी एग्जामनिंग कमेटी और रिवाइजिंग कमेटी की ओर से पिछले साल भी सर्टिफिकेट देने से इनकार कर दिया गया था. तब फिल्मकार ने केरल हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था. 2 दिसंबर 2016 को केरल हाईकोर्ट ने सीबीएफसी से कहा था कि फिल्म में जिन दृश्यों को आपत्तिजनक माना गया है उन्हें फिल्मकार को संशोधित करने या फिल्म से हटाने का मौका दिया जाए. साथ ही हाईकोर्ट ने फिल्म को सर्टिफिकेट पर दोबारा विचार करने के लिए कहा.

क्या कहना है सीबीएफसी के सीईओ का?
सीबीएफसी के सीईओ अनुराग श्रीवास्तव के मुताबिक हाईकोर्ट के निर्देश के बाद मुंबई में दूसरी रिवाइजिंग कमेटी ने फिल्म को फरवरी में मुंबई में देखा. फिल्म मेंअश्लीलता, समलैंगिकता का महिमा मंडन, हिंदू धर्म को अवमाननापूर्ण तरीके से दिखाया गया है.

श्रीवास्तव ने कहा, 'मैंने फिल्म को नहीं देखा लेकिन रिवाइजिंग कमेटी पैनल के सदस्यों ने जो कारण दिए हैं उन पर उनका संतुष्ट होना जरूरी है. साफ है कि दिशानिर्देशों के कुछ प्रावधानों का उल्लंघन हुआ है. समलैंगिकता अकेला मुद्दा नहीं बल्कि कई और दिशानिर्देशों का भी उल्लंघन हुआ है.

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श्रीवास्तव के मुताबिक फिल्मकार के सामने कानूनी रास्ते खुले हैं. अगर वो पहले ही ट्रिब्यूनल के पास जाते तो वो सही रास्ता होता. अब भी वो ट्रिब्यूनल के पास जा सकते हैं. अगर वो फिर भी संतुष्ट नहीं हो तो कोर्ट जा सकते है. ये नहीं कहा जा सकता कि फिल्म कभी रिलीज नहीं होगी.

श्रीवास्तव ने, 'ये कहना गलत है कि अधिकतर फिल्मों को सर्टिफिकेट नहीं दिया जा रहा या फिल्मकारों को हाईकोर्ट जाना पड़ रहा है. हम साल में अगर 2000 फिल्मों को सर्टिफिकेट देते हैं. कुछ ही फिल्मों को ऐसी स्थिति का सामना करना पड़ता है, बाकी सब पास हो जाती है.

पहलाज निहलानी ने कहा, जो फिल्में पास होने लायक नहीं, पास नहीं होंगी
सीबीएफसी के अध्यक्ष पहलाज निहलानी ने 'का बॉडीस्केप्स' को लेकर कुछ कहने से इनकार कर दिया. निहलानी के मुताबिक मामला कोर्ट के विचाराधीन है, इसलिए वो इस पर कुछ नहीं कह सकते. हालांकि साधारण परिप्रेक्ष्य में निहलानी ने ये जरूर कहा कि जो फिल्में पास होने लायक नहीं है तो निश्चित तौर पर वो पास नहीं होंगी. किसी के कारण कैमरे पर नहीं बताए जा सकते.

दिशा-निर्देशों का पालन होना जरूरी
सीबीएफसी की सदस्य ममता काले का कहना है कि बोर्ड के सदस्य अलग-अलग क्षेत्रों से आते हैं. उनकी कोई पूर्व धारणा नहीं होती. अगर CBFC किसी फिल्म को सर्टिफिकेट देने से मना करता है तो जरूर उसके पीछे ठोस कारण होंगे. ममता काले ने कहा कि फिल्मों को लेकर कुछ विशिष्ट दिशानिर्देश हैं जिनका सम्मान किया जाना चाहिए. ये संवेदनशील मुद्दा है, धार्मिक चरित्रों को दिखाते हुए सतर्कता बरतनी चाहिए.

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फिल्मों में ऐसा कुछ ना दिखाएं जिससे किसी वर्ग की भावनाएं आहत हों: रजा मुराद
अभिनेता रजा मुराद की इस मुद्दे पर राय है कि सेंसर बोर्ड पर उंगली उठाने से पहले ये सोचा जाना चाहिए कि सेंसर बोर्ड को कुछ दिशानिर्देशों का पालन करना होता है. उन्हीं के अनुसार फिल्म को सर्टिफिकेट देना होता है. रजा मुराद ने कहा कि अगर वो फिल्मों में लेस्बियन्स, ट्रांसजेंडर या गे को दिखाते हैं तो ये ऐसा नहीं होना चाहिए जो समाज के किसी वर्ग को आहत करे.

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