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आरोपों में घिरे लालू लेकिन इन 4 कारणों से अभी RJD से नाता नहीं तोड़ेंगे नीतीश

आरजेडी सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव के परिवार पर लगे भ्रष्टाचार के आरोपों के बीच इस बात की भी सुगबुगाहट तेज हो गई है कि नीतीश कुमार उनसे गठबंधन तोड़ लेंगे. हालांकि इन कुछ वजहों पर गौर करें तो नीतीश-लालू के संबंध-विच्छेद की संभावना नहीं दिखती.

लालू के साथ नीतीश(फाइल फोटो) लालू के साथ नीतीश(फाइल फोटो)
साद बिन उमर
  • पटना,
  • 08 जुलाई 2017,
  • अपडेटेड 12:30 PM IST

बिहार की सत्ता में साझेदार राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव के दामन पर एक बार फिर भ्रष्टाचार के दाग पड़ते दिख रहे हैं. इस बार लालू के परिवार पर भी जांच की आंच पड़ती दिख रही है. शुक्रवार को सीबीआई तो शनिवार ईडी ने यादव परिवार की संपत्तियों पर छापेमारी की. इसके बाद बीजेपी ने लालू पर हमला तेज करते हुए नीतीश से लालू के बेटों के मंत्रिमंडल से हटाने की मांग तेज कर दी. हालांकि, सियासी गणित पर अगर डालें तो नीतीश के लिए अभी आरजेडी से नाता तोड़ना आसान नहीं दिखता.

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आरजेडी सुप्रीमो के परिवार पर लगे भ्रष्टाचार के आरोपों के बीच इस बात की भी सुगबुगाहट तेज हो गई है कि नीतीश कुमार लालू यादव से गठबंधन तोड़ लेंगे. हालांकि इन कुछ वजहों पर गौर करें तो नीतीश-लालू के संबंध-विच्छेद की संभावना नहीं दिखती.

1. बिहार की सत्ता पर पकड़ बढ़ी

बिहार के सत्ता समीकरण पर नजर डालें, तो 224 सदस्यीय विधानसभा में आरजेडी 80 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी है. वहीं जेडीयू के पास 71 सीटें, तो बीजेपी के खाते में 58 सीटें हैं. ऐसे में कांग्रेस की 27 सीटों को मिला दें, तो बिहार की सत्ताधारी महागठबंधन की 178 सीटें बनती हैं. यहां सीटों के मामले में दूसरे नंबर पर रहने के बावजूद नीतीश कुमार बिहार के सीएम बने. ऐसे में नीतीश अगर आरजेडी ने नाता तोड़ बीजेपी से हाथ मिलाते हैं, तब भी वह 129 सीटों (71+58) के साथ बहुमत का आंकड़ा पार कर सत्ता में बने रहेंगे. आरोपों में घिरने के बाद बिहार की सत्ता पर नीतीश की पकड़ मजबूत हो गई है. ऐसे में नीतीश शायद ही लालू से गठबंधन तोड़ बीजेपी के पाले में जाएं.

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2. 2019 तक वेट एंड वॉच

नीतीश ऐलान कर चुके हैं कि 2019 में वे पीएम पद के दावेदार नहीं हैं और कांग्रेस को 2019 के लिए अपनी रणनीति साफ करनी चाहिए. हालांकि, उनके समर्थक उन्हें विपक्ष का सबसे विश्वसनीय चेहरा मानते हैं. यहां गौर करने वाली बात यह है कि नीतीश अभी जहां विपक्षी गठबंधन के अहम चेहरा हैं और कई जानकार उन्हें पीएम पद के चेहरे के रूप में देखते हैं, वहीं बीजेपी से जुड़ने पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आगे उनकी हैसियत काफी बौनी बनकर रह जाएगी. विपक्ष के चेहरे के तौर पर  भी नीतीश 2019 में मोदी के सामने ज्यादा संभावनाएं नहीं देखते. इसलिए 2019 की रेस से हटने का फैसला नीतीश का अच्छा फैसला ही कहा जाएगा.

3. मोदी-शाह राज में बीजेपी से समीकरण मुश्किल

2014 के चुनाव से पहले मोदी को चेहरा बनाए जाने का नीतीश ने जिस तरह से विरोध करते हुए एनडीए से नाता तोड़ा था, ऐसे में उनके लिए वापस उसी गठबंधन से जुड़ना आसान नहीं दिखता. विपक्ष में कांग्रेस भी कमजोर हुई है और राहुल गांधी को आगे करने के बाद नीतीश के लिए विपक्ष में काफी संभावनाएं बनती हैं. नीतीश इसके लिए अभी इंतजार करेंगे.

4. बिहार में वोट का समीकरण

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केंद्र में किसी बड़ी भूमिका पर नजर गड़ाए नीतीश कुमार के लिए आगामी लोकसभा चुनाव में बिहार में शानदार प्रदर्शन करना होगा. ऐसे में नीतीश के लिए वोट समीकरण को भी साधना होगा. विधानसभा चुनावों के दौरान लालू यादव के साथ की वजह से उन्हें यादवों और मुस्लिमों ने बढ़चढ़कर वोट दिया. बिहार में जहां 16.8% मुस्लिम वोटर हैं, वहीं यादव वोटरों की संख्या 14% के करीब बैठती है. लालू यादव ने इसी मुस्लिम-यादव समिकरण के बल पर बिहार की सत्ता पर 15 वर्षों तक राज किया. ऐसे में नीतीश भी जानते हैं कि बीजेपी से हाथ मिलाने का मतलब इस वोट से हाथ धोने जैसा होगा.

 

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