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उत्तराखंड: हरीश रावत ने की कैबिनेट बैठक

उत्तराखंड में राष्ट्रपति शासन हटाने के नैनीताल हाईकोर्ट के फैसले पर सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा दी है. इसके साथ ही उत्तराखंड से राष्ट्रपति शासन नहीं हटेगा. हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ केंद्र सरकार की सुप्रीम कोर्ट में याचिका देकर रोक लगाने की मांग की थी.

सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर
संदीप कुमार सिंह/अहमद अजीम
  • नई दिल्ली,
  • 22 अप्रैल 2016,
  • अपडेटेड 5:23 PM IST

उत्तराखंड में राष्ट्रपति शासन हटाने के नैनीताल हाईकोर्ट के फैसले पर सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा दी है. इसके साथ ही उत्तराखंड से राष्ट्रपति शासन नहीं हटेगा. हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ केंद्र सरकार की सुप्रीम कोर्ट में याचिका देकर रोक लगाने की मांग की थी. केंद्र की ओर से सुप्रीम कोर्ट की दो जजों की बेंच के सामने अपील दायर की गई थी. इस मामले पर जस्टिस दीपक मिश्रा और शिव कीर्ति सिंह की बेंच ने फैसले दिया है. केंद्र सरकार की ओर से अटॉर्नी जनरल ने दलील रखी कि अभी तक हाईकोर्ट के आदेश की कॉपी तक नहीं मिली है. इसलिए इस पर स्टे दिया जाए. इससे पहले गुरुवार को नैनीताल हाईकोर्ट ने केंद्र सरकार को फटकार लगाते हुए उत्तराखंड से राष्ट्रपति शासन हटाने का आदेश दिया था.

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याचिका में केंद्र ने उठाए सवाल
सुप्रीम कोर्ट में अपनी याचिका में केंद्र सरकार ने नैनीताल हाईकोर्ट के फैसले को लेकर कई सवाल खड़े किए हैं. याचिका में कहा गया है कि हाईकोर्ट का फैसला सही नहीं है क्योंकि उसे राष्ट्रपति के फैसलों की समीक्षा का अधिकार नहीं है. इसके साथ ही कहा गया है कि इस फैसले से रिश्वत देने और विधायकों की खरीद-फरोख्त के आरोपों का सामना करने वालों को भी राहत मिल गई. साथ ही यह भी कहा गया है कि बोम्मई केस में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के मुताबिक हाईकोर्ट इस मामले की एक सीमा में सुनवाई कर सकता था लेकिन इस मामले में सीमा से बाहर जाकर सुनवाई की गई. साथ ही हाईकोर्ट ने फैसला तो दिया लेकिन कोई लिखित आदेश पारित नहीं किया. साथ ही सुनवाई के दौरान स्टिंग ऑपरेशन और विधायकों की खरीद-फरोख्त के मामले पर तव्वजों नहीं दिया गया.

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बागी विधायक भी SC पहुंचे
अपनी सदस्यता खत्म करने के नैनीताल हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ कांग्रेस के 9 बागी विधायक भी शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट पहुंचे. इन विधायकों ने अपनी सदस्यता बहाल करने और विधानसभा में बहुमत परीक्षण के दौरान वोटिंग की अनुमति देने की अपील की है.

हरीश रावत ने की कैबिनेट बैठक
उत्तराखंड में राष्ट्रपति शासन हटाने और 18 मार्च से पहले की स्थिति बहाल करने के हाईकोर्ट के फैसले के बाद मुख्यमंत्री हरीश रावत ने कैबिनेट की बैठक की. बैठक में ताबड़तोड़ 11 फैसले ले लिए गए. बैठक के बाद हरीश रावत ने बताया कि इन फैसलों को तेजी से लागू करने के निर्देश दिए गए हैं. रावत ने बताया कि राज्य में जल संकट को लेकर मुख्य सचिव के नेतृत्व में कमेटी बनाई गई है.

 

29 अप्रैल को बहुमत परीक्षण
हाई कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि राज्य में 18 मार्च से पहले की स्थिति बनी रहेगी. ऐसे में हरीश रावत एक बार फिर राज्य के मुख्यमंत्री बन गए. 29 अप्रैल को विधानसभा में उनका बहुमत परीक्षण होगा. हाईकोर्ट के फैसले के बाद गुरुवार शाम बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह के घर बीजेपी के वरिष्ठ नेताओं की बैठक हुई.

न्याय का मजाक होगा
इससे पूर्व उत्तराखंड में राष्ट्रपति शासन पर सुनवाई के दौरान हाई कोर्ट ने गुरुवार को फिर सख्त टिप्पणी की. कोर्ट ने पूछा, 'क्या इस केस में सरकार प्राइवेट पार्टी है? जजों ने पूछा, 'यदि कल आप राष्ट्रपति शासन हटा लेते हैं और किसी को भी सरकार बनाने के लिए आमंत्रित कर देते हैं, तो यह न्याय का मजाक उड़ाना होगा. क्या केंद्र सरकार कोई प्राइवेट पार्टी है?'

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सुनवाई के दौरान केंद्र को फटकार
नैनीताल हाई कोर्ट की डबल बेंच में सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस के एम जोसेफ ने केंद्र के एडिशनल सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता का पक्ष सुनने के दौरान कई सवाल किए. इस मामले के साथ चल रहे 9 बागी विधायकों के मामले में उनके वकील दिनेश द्विवेदी ने कहा कि यह समस्या कांग्रेस से नहीं बल्कि हरीश रावत और स्पीकर के साथ जुड़ी है, क्योंकि सभी 9 विधायक सदस्यता खत्म करने के बावजूद आज भी कांग्रेस के सदस्य हैं.

उत्तराखंड विधानसभा की मौजूदा स्थिति
राष्ट्रपति शासन हटने पर अब कांग्रेस को 29 अप्रैल को बहुमत साबित करना होगा. विधानसभा की वर्तमान स्थिति इस प्रकार है-
कुल सीटें- 71
कांग्रेस- 36 (9 बागी विधायकों को मिलाकर)
बीजेपी- 27
उत्तराखंड क्रांति दल- 1
निर्दलीय- 3
बीएसपी- 2
बीजेपी निष्कासित- 1
मनोनीत- 1

शिवसेना का मोदी सरकार पर हमला
केंद्र की एनडीए सरकार में सहयोगी शिवसेना ने उत्तराखंड में राष्ट्रपति शासन को लेकर हुए विवाद में केंद्र सरकार पर निशाना साधा है. सामना में लिखे संपादकीय में शिवसेना ने लिखा है कि इस मामले में केंद्र सरकार का वस्त्रहरण तो हुआ ही राष्ट्रपति की प्रतिष्ठा भी धूमिल हुई. शिवसेना ने लेख में लिखा है कि उत्तराखंड मामले में कोर्ट का यह कहना है कि राष्ट्रपति से निर्णय में गलती हुई. इसका मतलब ये है कि मोदी सरकार से गलती हुई. सामना में लिखा है कि आखिरकार मोदी सरकार ने इस फैसले पर मुहर अपने राजनीतिक स्वार्थ के कारण ही लगाया था लेकिन अदालत ने ये कोशिश नाकाम कर दी.

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