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चाबहार बंदरगाह...कैसे भारत को चीन-पाकिस्तान के खिलाफ मिलेगी रणनीतिक बढ़त

इस बंगरगाह को पाकिस्तान में चीनी निवेश से बन रहे गवादर बंदरगाह का जवाब माना जा रहा है. विस्तार से इस बंदरगाह की क्षमता तीन गुना बढ़ जाएगी और यह पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान में निर्माणाधीन गवादर बंदरगाह के लिए एक बड़ी चुनौती होगा.

3 दिसंबर को ईरान के राष्ट्रपति ने किया उद्घाटन 3 दिसंबर को ईरान के राष्ट्रपति ने किया उद्घाटन
जावेद अख़्तर
  • नई दिल्ली,
  • 04 दिसंबर 2017,
  • अपडेटेड 10:29 AM IST

सामरिक और कूटनीतिक दृष्टि से भारत ने चीन और पाकिस्तान के मंसूबों को चुनौती देने की राह में एक बड़ा कीर्तिमान स्थापित किया है. रविवार को ईरान और अफगानिस्तान के साथ मिलकर बनाए गए चाबहार बंदरगाह के विस्तार क्षेत्र का उद्घाटन हो गया. जो चीन और पाकिस्तान को भारत का करारा जवाब माना जा रहा है.

ईरान के राष्ट्रपति हसन रूहानी ने देश के दक्षिणी तट पर स्थित रणनीतिक महत्व के चाबहार बंदरगाह पर नव निर्मित विस्तार क्षेत्र का उद्घाटन किया. बंदरगाह के विस्तार को बढ़ाने का ये कदम पाकिस्तान में चीनी निवेश से बन रहे गवादर बंदरगाह का जवाब माना जा रहा है.

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दरअसल, ये बंदरगाह भारत के लिए कारोबार से लेकर रणनीतिक तौर पर बेहद अहम माना जा रहा है. ओमान की खाड़ी के इस बंदरगाह की मदद से भारत अब पाकिस्तान का रास्ता बचा कर ईरान और अफगानिस्तान के साथ एक आसान और नया व्यापारिक मार्ग अपना सकता है.

चीन-पाकिस्तान को जवाब

इस बंगरगाह को पाकिस्तान में चीनी निवेश से बन रहे गवादर बंदरगाह का जवाब माना जा रहा है. विस्तार से इस बंदरगाह की क्षमता तीन गुना बढ़ जाएगी और यह पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान में निर्माणाधीन गवादर बंदरगाह के लिए एक बड़ी चुनौती होगा.

दरअसल, चीन-पाकिस्तान आर्थिक कॉरिडोर, पाकिस्तान के ग्वादर पोर्ट से चीन के शिनझियांग को जोड़ने वाले कॉरिडोर की योजना है. यह कॉरिडोर ग्वादर से शुरू होकर काशगर तक जाएगा. अरबों डॉलर के इस प्रोजेक्ट के लिए गिलगित-बाल्टिस्तान एंट्री गेट का काम करेगा. चीन इस क्षेत्र में औद्योगिक पार्क, हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट, रेलवे लाइन और सड़कें बना रहा है.

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इससे चीन और पाकिस्तान के बीच न सिर्फ आर्थिक जुड़ाव मजबूत होगा, जो सीमाई क्षेत्र में भी दोनों देश मिलकर भारत के लिए कड़ी चुनौती पेश कर सकते हैं.

वहीं, भारत के लिए चाबहार बंदरगाह इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि इससे भारत के लिए मध्य एशिया से जुड़ने का सीधा रास्ता उपलब्ध कराएगा और इसमें पाकिस्तान का कोई दखल नहीं होगा. खासकर अफगानिस्तान और रूस से भारत का जुड़ाव और बेहतर हो जाएगा.

चाबहार के खुलने से भारत, ईरान और अफगानिस्तान के बीच व्यापार को बड़ा सहारा मिलेगा. इस बंदरगाह के जरिए भारत अब बिना पाकिस्तान गए ही अफगानिस्तान और फिर उससे आगे रूस और यूरोप से जुड़ सकेगा. अभी तक भारत को अफगानिस्तान जाने के लिए पाकिस्तान होकर जाना पड़ता था.

चाबहार पोर्ट का एक महत्व यह भी है कि यह पाकिस्तान में चीन द्वारा चलने वाले ग्वादर पोर्ट से करीब 100 किलोमीटर ही दूर है. चीन अपने 46 अरब डॉलर के चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे कार्यक्रम के तहत ही इस पोर्ट को बनवा रहा है. चीन इस पोर्ट के जरिए एशिया में नए व्यापार और परिवहन मार्ग खोलना चाहता है.

आर्थिक मोर्चे पर रूस, ईरान और अफगानिस्तान जैसे महत्वपूर्ण देशों से जुड़कर भारत के कूटनीतिक रिश्तों को भी मजबूती मिलेगी. साथ ही भौगोलिक दृष्टि से भारत भविष्य में पाकिस्तान की किसी साजिश का मजबूती से जवाब देने की रणनीति पर भी काम कर सकता है.

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अफगानिस्तान को भेजा था गेंहू

क्षेत्रीय आर्थिक संपर्क के केंद्र के रूप में चाबहार के मतत्व के मद्देनजर भारत ने अफगानिस्तान को 1.10 लाख टन गेहूं से भरा पहला जहाज पिछले महीने इसी बंदरगाह के रास्ते भेजा था.

बंदरगाह की लागत

इस 34 करोड़ डॉलर की परियोजना का निर्माण ईरान की रीवॉल्यूशनरी गार्ड (सेना ) से संबद्ध कंपनी खातम अल-अनबिया कर रही है. यह सरकारी निर्माण परियोजना का ठेका पाने वाली ईरान की सबसे बड़ी कंपनी है. इस बंदरगाह की सालाना मालवहन क्षमता 85 लाख टन होगी जो अभी 25 लाख टन है. इस विस्तार में पांच नई गोदिया हैं जिनमें से दो पर कंटेनर वाले जहाजों के लिए सुविधा दी गई है.

पिछले साल मई में ईरान के साथ हुए एक करार के तहत भारत ने 10 साल के पट्टे पर इस बंदरगाह में 852.10 लाख डॉलर के निवेश एवं 229.5 लाख डॉलर के सालाना राजस्व खर्च के साथ प्रथम चरण में दोनों गोदियों को माल चढ़ाने उतारने के यंत्र उपकरणों एवं सुविधाओं से लैस करने तथा उनके परिचालन की जिम्मेदारी ली.

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