Advertisement

पुस्तक समीक्षाः चर्चा में किसान और चुनौतियां

लेखक ने अपनी पुस्तक में बहुत कुछ समेटने-कहने का प्रयास किया है चाहे वह लैंड बिल क्यों न हो. कविताएं एक जगह होतीं तो और अच्छा होता. और आंकड़ों की शायद आवश्यकता नहीं थी फिर भी यह जानकारियां तो हैं ही.

गांव किसान, अौर मैं गांव किसान, अौर मैं
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 09 दिसंबर 2019,
  • अपडेटेड 6:48 PM IST

किसान हमारा अन्नदाता है, उसके बिना अनाज की कल्पना व्यर्थ है. खेती-किसानी को गंभीरता से लिया जाना चाहिए. इसी विषय को ध्यान में रखकर गांव, किसान और मैं के लेखक कृषि वैज्ञानिक डॉ. राम कठिन सिंह ने कई पहलुओं का गंभीरता से विश्लेषण किया है.

किसान के सामने कई चुनौतियां हैं. वह पर्यावरण से जूझता है, बादल देखता और पानी को तरसता है. वह ठीक से जानता भी नहीं कि कौन-सा रसायन खेती के लिए प्रयोग करे जिससे हानि कम से कम हो या न हो.

Advertisement

जैविक खेती और ऐसे ही कुछ जमीनी प्रश्नों के हल खोजते हुए वे निजी अनुभवों और अपने शोध को साझा करते हैं. लेखक को यह भी चिंता है कि मनुष्य अपना जीवन कितना खो रहा है. अपनी प्रकृति में अपना उत्सव कितना छूटता जा रहा है! अब वे किस्से रहे, न वे कहावतें.

राम कठिन सिंह मोही व्यक्ति हैं, यह मोह गांव का हैं. यही भावुकता उन्हें जमीन से जोड़ती है. कई लेख संस्मरण की तरह हैं और संस्मरण भी कहीं-कहीं कथा की तरह. 'बंजर धरती' और 'बदलाव' के संस्मरण तो पूरी किताब की आत्मा जैसे प्रतीत होते हैं. यहीं निराला की कविता याद आती है तो उनके शंभू काका भी. घाघ की कहावतें क्यों झूठी साबित हो रही हैं, इस पर भी अध्याय है. अवश्य पर्यावरण में हो रहे बदलाव ही इसकी वजह हैं.

Advertisement

लेखक ने अपनी पुस्तक में बहुत कुछ समेटने-कहने का प्रयास किया है चाहे वह लैंड बिल क्यों न हो. कविताएं एक जगह होतीं तो और अच्छा होता. और आंकड़ों की शायद आवश्यकता नहीं थी फिर भी यह जानकारियां तो हैं ही.

***

Read more!
Advertisement

RECOMMENDED

Advertisement