
छत्तीसगढ़ में कुछ महीने बाद विधानसभा चुनाव होने हैं और कांग्रेस व बीजेपी के बीच इसमें कांटे की लड़ाई है. कांग्रेस राज्य में 15 साल के अपने सत्ता के वनवास को खत्म करने की जद्दोजहद कर रही है, जबकि रमन सिंह चौथी बार राज्य की सियासी बाजी जीतने की कोशिशों में जुटे हैं. ऐसे में विधानसभा चुनाव से पहले राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद का छत्तीसगढ़ के बस्तर का दौरा भी सियासी आरोप-प्रत्यारोप की वजह बन गया है.
राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद छत्तीसगढ़ के दो दिवसीय दौरा किया है. देश के नक्सल प्रभावित राज्यों की सूची में पहले नंबर पर खड़े छत्तीसगढ़ के बस्तर इलाके में राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद बुधवार को पहुंचे थे. ये पहली बार है जब किसी राष्ट्रपति ने बस्तर के जगदलपुर स्थित चित्रकोट में रात गुजारी है. हालांकि राष्ट्रपति का छह महीने में राज्य का ये दूसरा दौरा था.
कोविंद के बस्तर दौरे पर छत्तीसगढ़ कांग्रेस के कार्यकारी प्रदेश अध्यक्ष शिव कुमार डहरिया ने aajtak.in से कहा कि छत्तीसगढ़ में रमन सरकार डरी हुई है. खासकर बस्तर इलाके में बीजेपी का सफाया होने जा रहा है. ऐसे में बीजेपी संवैधानिक पदों पर बैठे लोगों का भी इस्तेमाल करने में जुट गई है. लेकिन उसे इसका फायदा नहीं मिलेगा.
डहरिया ने कहा कि रमन सरकार ने15 साल में दलित-आदिवासियों की जिंदगी को सिर्फ बर्बाद करने का काम किया है. ऐसे में राष्ट्रपति पद पर बैठे सम्मानित शख्स को भी मैदान में उतार दिया गया है, लेकिन राज्य की जनता बीजेपी के कुशासन से छुटकारा चाहती है. वो उसके किसी भी हथकंडे में फंसने वाली नहीं है.
छत्तीसगढ़ में जल्द ही चुनाव होने हैं. राज्य की सत्ता की चाबी माने जाने वाले बस्तर में पिछले चुनाव में बीजेपी कमजोर नजर आई थी. जबकि बस्तर इलाका कांग्रेस का मजबूत दुर्ग माना जाता है. बस्तर में कुल 12 विधानसभा सीटें हैं, इनमें से राज्य की सत्ता पर असीन बीजेपी के पास महज 4 सीटें जबकि कांग्रेस के पास 8 सीटें है.
छत्तीसगढ़ में 31.8 फीसदी मतदाता आदिवासी समुदाय से हैं और 11.6 फीसदी वोटर दलित हैं. दोनों समुदाय के मिलकर करीब 43.4 फीसदी वोट होते हैं, जो किसी भी पार्टी को सत्ता में पहुंचाने के लिए काफी हैं. बीते कुछ महीनों में आदिवासी और दलित समुदाय ने अलग-अलग मंचों से रमन सरकार की नीतियों के खिलाफ विरोध करते हुए अपनी नाराजगी जाहिर की है.
कांग्रेस बसपा के साथ गठबंधन करके दलित और आदिवासी वोटरों को एकमुश्त साधने की कवायद कर रही है. हालांकि अभी तक गठबंधन का ठोस स्वरूप सामने नहीं आ सका है. कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष भूपेश बघेल ने बसपा के साथ मिलकर चुनाव लड़ने की इच्छा जाहिर की थी, जिससे प्रदेश प्रभारी पीएल पुनिया ने इनकार कर दिया था.
2013 के विधानसभा चुनाव को याद करें तो बीजेपी को दलित यानी सतनामी समाज के लिए आरक्षित 10 में से 9 सीटें मिली थीं. तब बीजेपी के लिए गुरु बालकदास की अगुवाई वाली पार्टी सतनाम सेना संजीवनी बनी थी. सतनाम सेना ने कई सीटों पर अपने प्रत्याशी खड़े किए थे, जिसका सीधा फायदा बीजेपी को मिला और कांग्रेस के परंपरागत वोट बैंक को बड़ा नुकसान हुआ.
राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने पिछले साल नवंबर में सतनाम पंथ के प्रवर्तक एवं महान समाज सुधारक संत गुरु बाबा घासीदास की तपोभूमि पर जाकर मत्था टेका था. 8 महीने के बाद वे अब राज्य की आदिवासी बेल्ट बस्तर पहुंचे हैं. कांग्रेस को राष्ट्रपति के इन दौरों में सियासत नजर आ रही है.