
छत्तीसगढ़ में सीडी राजनैतिक दावपेंच ही नहीं बल्कि अपने दुश्मन को मुंहतोड़ जवाब देने के लिए भी कारगर हथियार साबित हो रही है. ये और बात है कि यहां के राजनेता इसे डर्टी पॉलिटिक्स कहते हैं. बीजेपी हो या कांग्रेस अवसर पड़ने पर दोनों ही दलों ने सीडी जारी कर अपने दुश्मनों पर वार किया.
छत्तीसगढ़ में राज्य के PWD मंत्री राजेश मूणत की कथित डर्टी सीडी ने रमन सिंह सरकार साख दाव पर लगा दी है. ये सीडी उस वक्त आई जब गुजरात और हिमाचल प्रदेश में चुनाव की सरगर्मियां तेज हैं. दोनों ही राज्यों में बीजेपी जनता के प्रति खुद को जिम्मेदार साबित करते हुए अपनी चाल चेहरा और चरित्र को चमकाने में जुटी है. ऐसे समय में बीजेपी शासित राज्य छत्तीसगढ़ के एक सीनियर मंत्री की कथित अश्लील सीडी ने पार्टी को सकते में डाल दिया है.
इससे पहले की इस सीडी की कालिख सरकार की छवि पर बदनुमा दाग बन जाए उससे पहले मामले को सीबीआई को सौंप दिया गया. मुख्यमंत्री रमन सिंह ने कहा कि प्रदेश की राजनीति के गिरते स्तर ने उन्हें सोचने पर मजबूर कर दिया है. इस सीडी ने सिर्फ बीजेपी ही नहीं बल्कि पूरे राजनैतिक गलियारे में ऐसी खलबली मचा दी है कि सिर्फ राजनेता ही नहीं पुलिस और आम जनता भी इस बात को जानने के लिए बेचैन हैं कि सीडी कहां बनी, किसने बनाई और किस मकसद से बनी.
चरित्र हत्या का जरिया बन गई है सीडी
राज्य के मुख्यमंत्री रमन सिंह के मुताबिक सीडी ने राजनीति को घिनौना बना दिया है. उनका कहना है कि बाजार में आए दिन कभी किसी नौकरशाह तो कभी किसी राजनेता की सीडी की चर्चा रहती है. लेकिन वैधानिक रूप से इसकी पुष्टि कम ही हो पाती है. हाल ही में डर्टी सीडी को लेकर घिरे राज्य के PWD मिनिस्टर राजेश मूणत का कहना है कि सीडी अब चरित्र ह्त्या का जरिया बन गई है. राजनैतिक षडियंत्र में यह एक ऐसा हथियार है जो किसी की भी छवि को मिट्टी में मिला सकता है. हालांकि वो उस सीडी की हकीकत को लेकर जद्दोजहद कर रहे हैं, जिसने पूरे प्रदेश में खलबली मचाई हुई है.
सीडी ने राजनीति में ब्लैकमेलिंग को दिया बढ़ावा
उधर कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष भूपेश बघेल की दलील है कि कई मामलों में सीडी ने सत्ताधारी दल की असलियत खोली है. उनके मुताबिक राजनैतिक व प्रशासनिक दबाव का इस्तेमाल बीजेपी 2003 से करती चली आ रही है. इसके कारण उसकी असलियत उजागर करने के लिए लोगों को सीडी कारगर नजर आती है. उनका कहना है कि यदि कोई भी सत्ताधारी दल कानून के मुताबिक काम करे तो किसी को सीडी बनाने की आवश्यकता ना पड़े.
वहीं साइबर क्राइम और सीडी की परख कर उससे होने वाले अपराधों पर पकड़ रखने वाले पत्रकार गोपाल दास का कहना है कि मौजूदा दौर की राजनीति में सब कुछ जायज हो गया है. जबसे राजनीति का अपराधीकरण हुआ है, तब से तो केंद्रीय राजनीति हो या फिर प्रादेशिक हर जगह इस बात का खतरा होता है कि कहीं कोई ख़ुफ़िया कैमरे से आपकी गतिविधियां ही नहीं बल्कि आपकी बातचीत को रिकॉर्ड तो नहीं कर रहा. उनके मुताबिक सीडी ने राजनीति में ब्लैकमेलिंग को खूब बढ़ावा दिया है.
राज्य में आधा दर्जन से ज्यादा बड़े सीडी कांड हुए हैं. इसमें केंद्र सरकार से लेकर राज्य सरकार तक लपेटे में आई है.
1- पहला सीडी कांड उस समय सुर्खियों में आया जब 2003 में तत्कालीन मुख्यमत्री अजित जोगी के कार्यकाल में NCP लीडर रामावतार जग्गी की किसी अज्ञात शख्स ने गोली मारकर हत्या कर दी थी. इस मामले में लगातार तीन सीडी आईं. इस सीडी के जरिए सीबीआई हत्यारों तक पहुंची. इस मामले में आई कई सीडियों से तत्कालीन मुख्यमंत्री अजित जोगी के बेटे अमित जोगी को भी जेल की हवा खानी पड़ी. हालांकि बाद में वह अदालत से बरी हो गए. लेकिन सीडी के जरिए मिले सुराग से कुल 31 आरोपियों को सजा हुई.
2- वर्ष 2003 के आखिरी माह में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी के मंत्री मंडल के सदस्य केंद्रीय मंत्री दिलीप सिंह जूदेव को रिश्वत देने का मामला सामने आया. इस सीडी में दिलीप सिंह जूदेव रिश्वत की रकम स्वीकारते हुए कह रहे थे कि 'पैसा खुदा तो नहीं पर उससे कम भी नहीं'. इसी साल राज्य में हुए विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने भी एक सीडी जारी की. उस सीडी में उसने निर्वतमान मुख्यमंत्री अजित जोगी के अरमानों पर पानी फेरा और बीजेपी विधायकों को उनके द्वारा दिए जा रहे प्रलोभन और खरीद फरोख्त का खुलासा किया. इस दौरान बीजेपी विधायकों को कांग्रेस द्वारा दी गई 45 लाख की रकम को भी उजागर किया गया. इसकी ऑडियो और वीडियो दोनों सीडी बनी.
3- वर्ष 2005 में बीजेपी के राजनादगांव से सांसद प्रदीप गांधी आज तक के स्टिंग ऑपरेशन दुर्योधन का शिकार बने. वह संसद में सवाल पूछने के एवज में घुस लेते हुए कैमरे में कैद हुए थे. इस मामले में उनकी लोकसभा से सदस्यता खत्म कर दी गई थी.
4- वर्ष 2016 में छत्तीसगढ़ के अंतागढ़ उपचुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी मंतूराम पवार ने नामंकन वापसी के आखिरी दिन अचानक अपना नाम वापिस लेकर अपनी ही कांग्रेस पार्टी को झटका दिया था. इससे बीजेपी प्रत्याशी को चुनौती नहीं मिली और वे एक तरफा जीत गए. चुनाव संपन्न होने के कुछ दिनों बाद कांग्रेस ने एक सीडी जारी की. जिसमें दिखाया गया कि किस तरह से बीजेपी के नेताओं ने कांग्रेस प्रत्याशी मंतूराम के साथ नाम वापसी का सौदा किया था. कांग्रेस प्रत्याशी की खरीद फरोख्त का पूरा हवाला इस सीडी में दर्ज था.
5- वर्ष 2016 में अजित जोगी के कांग्रेस छोड़ने के बाद उनके खेमे में मौजूदा प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष भूपेश बघेल की वो सीडी जारी की जिसमें वो अजित जोगी और उनके पुत्र अमित जोगी से जुड़ी सीडी की मांग एक शख्स से कर रहे थे. वो इस सीडी के एवज में उस शख्स को कांग्रेस कमेटी में पदाधिकारी बनाने की पेशकश भी कर रहे थे. कुल मिलाकर छत्तीसगढ़ में सीडी राजनैतिक हथियार के रूप में बड़ी कारगर नजर आ रही है.
छत्तीसगढ़ में सीडी की राजनीति ने राजनेताओं और आम लोगों के संबंधों को असहज बना दिया है. अफसर अपने अधीनस्त कर्मचारियों से तो राजनेता अपने कार्यकर्ताओं से बातचीत और मेल मिलाप करने को लेकर भी कतराते हैं. उन्हें इस बात का डर लगा रहा था है कि कही खुफिया कैमरों के जरिए उनकी सीडी तो नहीं बन रही है.
दिलचस्प बात यह है कि राज्य में सीडी से मचे बवाल को शांत करने के लिए सरकार सीबीआई जांच के निर्देश देती है. मसला चाहे डर्टी पिक्चर का हो या फिर रिश्वतखोरी का. सीबीआई मामले की गहराई तक जाती है. बावजूद अभी तक किसी भी मामले में सीडी में मौजूद शख्स की अधिकृत तौर पर पहचान कर पाई है. इसका कारण है कि वायरल हुई सीडी की मूल प्रति कभी भी जांच एजेंसियों के हाथ नहीं लगी. नतीजतन फॉरेंसिक लैबोरेटरी में सीडी की प्रमाणिकता सिद्ध नहीं हो पाती और जांच ढाक के तीन पात साबित होती है.