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इस फैक्टर के चलते CM की रेस में नड्डा से आगे निकले जयराम ठाकुर

दरअसल हिमाचल के मुख्यमंत्री का नाम तय होने में एक बार फिर संघ का फैक्टर निर्णायक साबित हुआ है. मोदी-शाह के साथ-साथ संघ का भी करीबी होने के चलते जयराम ठाकुर मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुंचे हैं. अंतिम वक्त में जेपी नड्डा भी रेस में न सिर्फ बने हुए थे, बल्कि जयराम ठाकुर से आगे चल रहे थे. लेकिन जेपी नड्डा पर संघ फैक्टर भारी पड़ गया और ‘ताज’ जयराम के सिर सज गया.

जयराम ठाकुर जयराम ठाकुर
राहुल विश्वकर्मा
  • नई दिल्ली,
  • 24 दिसंबर 2017,
  • अपडेटेड 11:51 PM IST

गुजरात और हिमाचल में जीत दर्ज करने के बाद अब देश के 14 राज्यों में भाजपा के मुख्यमंत्री होंगे. उधर कांग्रेस सिमटती हुई चार राज्यों में कैद हो गई है. हिमाचल में जीत दर्ज करने के 6 दिन बाद तक पार्टी में मुख्यमंत्री के नाम पर सहमति बनाने की कोशिश होती रही. पांच बार से विधायक बनते आ रहे जयराम ठाकुर के साथ-साथ केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री जेपी नड्डा सीएम की रेस में बराबर बने हुए थे. लेकिन एक ‘खूबी’ जो जयराम में थी, उन्हें आगे ले गई और अंतत:  जयराम ठाकुर ‘सत्ता के सिकंदर’ बनकर उभरे.

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संघ का भरोसेमंद होना निर्णायक साबित हुआ

दरअसल हिमाचल के मुख्यमंत्री का नाम तय होने में एक बार फिर संघ का फैक्टर निर्णायक साबित हुआ है. मोदी-शाह के साथ-साथ संघ का भी करीबी होने के चलते जयराम ठाकुर मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुंचे हैं. अंतिम वक्त में जेपी नड्डा भी रेस में न सिर्फ बने हुए थे, बल्कि जयराम ठाकुर से आगे चल रहे थे. लेकिन जेपी नड्डा पर संघ फैक्टर भारी पड़ गया और ‘ताज’ जयराम के सिर सज गया.

1993 में लड़ा था पहला चुनाव

28 साल की उम्र में जयराम ठाकुर ने पहली बार 1993 में विधानसभा चुनाव लड़ा था. महज 800 वोटों के अंतर से हारने के बाद भी वे भाजपा नेतृत्व की नजर में आ गए. इसके बाद 1998 में ठाकुर ने इसी सीट से चुनाव लड़ा और यह क्रम पांचवी बार भी जारी है. छात्र जीवन में ठाकुर एबीवीपी के समर्पित कार्यकर्ता थे. उसके बाद से वे संघ के करीब आते गए.

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संघ के ‘सिपहसलार’ कुर्सी पर बैठे

इससे पहले भी पर्दे के पीछे रहते हुए संघ ने भाजपा की जीत के बाद अपने ‘सिपहसलारों’ को कुर्सी पर बैठाया है. वो चाहें हरियाणा हो या महाराष्ट्र या उत्तराखंड, यहां तक कि यूपी में भी संघ की ही चली. हरियाणा में जीत के बाद संघ ने अपने भरोसेमंद मनोहर लाल खट्टर को कुर्सी सौंपी. महाराष्ट्र में कई पुराने चेहरों को नजरअंदाज करते हुए भाजपा ने सलाह-मशविरा के बाद देवेंद्र फडणवीस के नाम का ऐलान किया. उत्तराखंड में भी संघ फैक्टर ही हावी रहा. यहां भी विजयश्री का वरण करने के बाद मुख्यमंत्री की कुर्सी पर त्रिवेंद्र सिंह रावत को बैठाया गया.

योगी के पीछे दिनेश शर्मा

यूपी में जीत के बाद मुख्यमंत्री ने नाम को लेकर सबसे लंबी मंत्रणा की गई. कई समीकरणों को फिट करने की कोशिश की गई. राजनाथ से लेकर मनोज सिन्हा तक का नाम चर्चा में रहा, लेकिन बाजी मारी हिन्दुत्व के झंदाबरदार रहे योगी आदित्यनाथ. योगी संघ से न होकर मठ से जुड़े थे. ऐसे में यहां उप मुख्यमंत्री दिनेश शर्मा को बनाया गया, जो संघ के लंबे समय तक प्रचारक रहे हैं. प्रोफेसर दिनेश शर्मा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, भाजपा अध्यक्ष अमित शाह के साथ-साथ आरएसएस के भी पसंसदीदा नेता हैं. यानि यहां भी संघ का फैक्टर चला.

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मोदी-शाह ने दिए कई नए चेहरे

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने भी कई नए चेहरों को बड़े मौके दिए हैं. इस सुपरहिट जोड़ी ने झारखंड के लिए पहला गैर आदिवासी मुख्यमंत्री के रूप में रघुबर दास को चुना. इसी तरह में जीत मिलने पर केंद्र में मंत्री रहे सर्वानंद सोनवाल को मुख्यमंत्री बनाकर भेजा. गुजरात में आनंदीबेन की जगह विजय रूपाणी के रूप में मोदी-शाह की जोड़ी ने एक ऐसा चेहरा चुना जिससे कई निशाने एक साथ साधे जा सकते थे. इसी के चलते रूपाणी को पार्टी ने दूसरा मौका भी दिया है.

19 राज्यों में भाजपा सत्ता में काबिज

गुजरात और हिमाचल प्रदेश में जीत के बाद भाजपा के अब देश के 14 राज्यों में अपने मुख्यमंत्री होंगे. वहीं 5 राज्यों में उसकी गठबंधन सरकारें हैं. कुछ राज्य ऐसे हैं जहां लंबे समय से भाजपा की ही सरकार है. यहां मुख्यमंत्री भी पार्टी के पुराने चेहरे ही हैं. मध्य प्रदेश में शिवराज सिंह, राजस्थान में वसुंधरा राजे और छत्तीसगढ़ में रमन सिंह पार्टी के भरोसेमंद चेहरे रहे हैं. वहीं गोवा में जीत मिलने पर केंद्र से मनोहर पर्रिकर को वापस उनके गृहराज्य भेजा गया. 

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