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भारत और चीन के बीच चले डोकलाम विवाद का स्थाई समाधान अभी नहीं निकला है. चीन ने डोकलाम में सड़क बनाना तो रोक दिया है, लेकिन वहां चीनी सैनिकों की संख्या पहले की तुलना में बढ़ा दी है. ऐसे में ये सवाल उठ रहा है कि क्या चीन डोकलाम विवाद का हल नहीं चाहता. क्या विवादित क्षेत्र से दोनों देशों के सैनिकों का पीछे हटना अस्थाई कदम था?
डोकलाम पर चीन का रुख अभी भी स्पष्ट नजर नहीं आ रहा है. 72 दिनों तक चली तनातनी के बाद जब इस विवादित क्षेत्र से भारत और चीन के सैनिक कुछ पीछे हटे, तो संभावना जताई जाने लगी कि इस मसले का हल हो जाएगा. लेकिन चीन डोकलाम को लेकर किसी तरह की जल्दबाजी में नहीं है. 28 अगस्त को चीनी सेना का कदम अब मात्र एक सामरिक विराम नजर आ रहा है. क्योंकि उस दौरान चीन का मकसद ब्रिक्स सम्मेलन का सफल आयोजन करना था.
क्या विवाद खत्म नहीं करना चाहता चीन?
बीते दिनों चीन की ओर से कुछ ऐसे संकेत दिए गए हैं, जिससे लगता है कि वो अभी विवाद खत्म करने को तैयार नहीं है. बीजिंग ने 3 अक्टूबर को तीसरी ट्रैवल एडवाइजरी जारी की और अपने नागरिकों को भारत में सुरक्षा को लेकर सतर्क किया. चीन ने अपने नागरिकों को अंडमान और निकोबार द्वीप समूह की यात्रा बिना परमिट या फोटोग्राफिक बॉर्डर सुविधा के करने पर चेतावनी दी है.
जब चीनी सैनिकों से मिलीं रक्षा मंत्री
वहीं 9 अक्टूबर को भारत की रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण के नाथूला दौरे पर बीजिंग ने प्रतिक्रिया देते हुए काफी सावधानी बरती. बता दें कि इस दौरे पर रक्षामंत्री ने चीनी सैनिकों से बात की और उन्हें नमस्ते का मतलब समझाया. ये वीडियो सोशल मीडिया पर काफी वायरल भी हुआ.
चीनी विदेश मंत्रालय ने इस वीडियो के वायरल होने पर भारत को याद दिलाया कि नाथूला भारत-चीन सीमा के सिक्किम सेक्टर पर 1890 में हुए ऐतिहासिक संधि का गवाह रहा है. इसी संधि के तहत ही चीन डोकलाम में सड़क बनाने को सही ठहराता है.
डोकलाम में चीनी सैनिकों की तादाद बढ़ी
चीन ने डोकलाम में सड़क बनाना फिर से शुरू नहीं किया है, लेकिन उसने वहां सैनिकों की संख्या बढ़ा दी है. भारत के विदेश मंत्रालय ने 6 अक्टूबर को जानकारी दी कि विवादित क्षेत्र पर आगे कोई कार्रवाई नहीं हुई है.