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न्यूक्लियर्स सप्लायर्स ग्रुप (NSG) में भारत की सदस्यता को अमेरिकी समर्थन के संकेत मिल रहे हैं. लेकिन चीन ने सोमवार को इस बारे में ठंडे और नकारात्मक संकेत दिए. चीन के विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता हुआ चुनाइंग ने कहा कि ऐसे किसी कदम से पहले सभी सदस्य देशों को बहुत सावधानी से विचार करने की जरूरत है.
चीन ने सांकेतिक लहजे में कहा कि एनएसजी की सदस्यता पर दावा करने से पहले भारत को परमाणु अप्रसार संधि पर हस्ताक्षर करने चाहिए. हुआ चुनाइंग ने कहा, 'हम नए सदस्यों को जोड़ने पर विचार कर रहे ग्रुप का समर्थन करते हैं. लेकिन इसी के साथ हम भारत को प्रोत्साहित करते हैं कि वह ग्रुप (NSG) के प्रासंगिक मानकों को पूरा करने के लिए कदम उठाए.'
गौरतलब है कि एनएसजी अंतरराष्ट्रीय परमाणु व्यापार को नियंत्रित करता है. इसकी सदस्यता मिलने के बाद कोई देश दूसरे देश से तकनीक और न्यूक्लियर सामग्री लेकर उसका इस्तेमाल स्वतंत्र रूप से कर सकता है. फिलहाल 48 देश एनएसजी के सदस्य हैं.
चीन के विदेश मंत्रालय का बयान अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा से कहीं अलग है. ओबामा ने अपने दिल्ली दौरे के दौरान एनएसजी में भारत की दावेदारी पर सकारात्मक संकेत दिए हैं. जानकारों का मानना है कि पाकिस्तान को दो न्यूक्लियर पावर प्लांट बनाने में मदद करने वाला चीन एनएसजी में इस्लामाबाद की सदस्यता के लिए माहौल बना सकता है.
चीन का विरोध एनएसजी में भारत की दावेदारी के खिलाफ जा सकता है. एनएसजी के कई सदस्य यह मानते हैं कि परमाणु अप्रसार संधि पर हस्ताक्षर करने जरूरी हैं. हालांकि इससे अलग ब्रिटेन और अमेरिका भारत की दावेदारी का बिना शर्त समर्थन कर चुके हैं.
हुआ ने कहा कि इस तरह का फैसला समूह में आम सहमति के आधार पर किया जाना चाहिए. गौरतलब है कि चीन न्यूक्लियर तकनीक के सबसे बड़े निर्यातकों में से एक है और वह एनएसजी की सदस्यता पर अपना नियंत्रण बनाना चाहेगा. आम सहमति की बात कहकर उसने साफ कर दिया है कि भारत की दावेदारी के मामले में उसकी भूमिका अहम रहने वाली है.