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मनमोहन के मुकाबले मोदी राज में पांच गुना बढ़ा चीन से FDI, मगर अंकुश भी जारी

चीन से भारत में निवेश के कई रास्ते हैं और इसलिए निवेश का बहुत बड़ा आंकड़ा छिपा रह जाता है. अगर सरकारी आंकड़ों पर ही भरोसा करें तो भी मनमोहन सिंह की यूपीए सरकार के मुकाबले पिछले 6 साल की मोदी सरकार में चीन से आने वाला एफडीआई पांच गुना बढ़ गया है.

मोदी सरकार में बढ़ा है चीनी निवेश (फाइल फोटो) मोदी सरकार में बढ़ा है चीनी निवेश (फाइल फोटो)
दिनेश अग्रहरि
  • नई दिल्ली,
  • 03 जुलाई 2020,
  • अपडेटेड 2:47 PM IST

  • मनमोहन सरकार के कार्यकाल में चीनी FDI करीब 40 करोड़ डॉलर था
  • मोदी सरकार के 6 साल में चीनी FDI करीब 2 अरब डॉलर का आया
  • दोनों सरकारों में पहले चीन से आने वाले निवेश पर सख्ती नहीं थी

सरकार की तरफ से आए आंकड़ों के मुताबिक वित्त वर्ष 2019-20 में चीन से भारत आने वाले प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) में भारी गिरावट आई है. लेकिन यह बात गौर करने की है कि चीन से भारत में निवेश के कई रास्ते हैं और इसलिए निवेश का बहुत बड़ा आंकड़ा छिपा रह जाता है. अगर सरकारी आंकड़ों पर ही भरोसा करें तो भी मनमोहन सिंह की यूपीए सरकार के मुकाबले पिछले 6 साल की मोदी सरकार में चीन से आने वाला एफडीआई पांच गुना बढ़ गया है.

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यह भी कहा जा रहा है कि भारत में होने वाले कुल एफडीआई निवेश में चीन का हिस्सा महज आधा फीसदी है.जानकार कहते हैं ​कि सिंगापुर और हांगकांग के बढ़ते एफडीआई निवेश में बड़ा हिस्सा चीनी निवेश का ही हो सकता है.

चीनी FDI में दो साल में 50% से ज्यादा की गिरावट

सरकार के मुताबिक वित्त वर्ष 2019-20 में चीन से भारत आने वाले प्रत्यक्ष विदेशी निवेश में भारी गिरावट आई है. पिछले साल चीन से महज 16.3 करोड़ डॉलर (करीब 1220 करोड़ रुपये) का एफडीआई भारत आया था. इसके पहले 2018-19 में चीन से आने वाले एफडीआई 22.9 करोड़ डॉलर और 2017-18 में 35 करोड़ डॉलर था. यानी पिछले दो साल में चीन से आने वाला एफडीआई करीब आधा हो गया है.

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चीनी एफडीआई महज आधा फीसदी

एक अनुमान के अनुसार देश के कुल एफडीआई में चीन का हिस्सा करीब आधा फीसदी ही है. चीन भारत में एफडीआई के मामले में 18वें स्थान पर है. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक पिछले 20 साल में चीन से करीब 2.4 अरब डॉलर का एफडीआई भारत आया है, जिसमें से करीब 1 अरब डॉलर ऑटो सेक्टर में गया है.

साल 2019-20 में भारत में कुल एफडीआई 49.97 अरब डॉलर (उस समय के मुताबिक करीब 3,53,558 करोड़ रुपये का) था. यानी चीन का एफडीआई कुल एफडीआई का महज आधा फीसदी है. भारत में एफडीआई के मामले में शीर्ष देश मॉरीशस और सिंगापुर हैं.

कुल एफडीआई में चीनी निवेश का हिस्सा भी बढ़ा

यूपीए सरकार के कार्यकाल में 2004 से 2014 के बीच देश में कुल एफडीआई करीब 304 अरब डॉलर का आया था. वहीं मोदी राज के पांच साल में देश में कुल एफडीआई करीब 357 अरब डॉलर का रहा. तो कुल एफडीआई की तुलना चीनी एफडीआई से करें तो मनमोहन राज में जहां इसका हिस्सा 0.13 फीसदी था, वहीं यह मोदी सरकार के कार्यकाल में बढ़कर करीब 0.56 फीसदी हो गया.

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अलग-अलग आंकड़े

चीन से भारत में आने वाले एफडीआई को लेकर भारत सरकार, चीन सरकार और कई थिंक टैंकों के आंकड़े अलग-अलग हैं. बिजनेस टुडे के मैनेजिंग एडिटर राजीव दुबे बताते हैं, 'चीन से आने वाले एफडीआई में समस्या यह है कि सरकार सिर्फ मेनलैंड चीन के आंकड़े देती है, जबकि काफी चीनी एफडीआई हांगकांग या सिंगापुर होकर आता है. चीन से भारत में कुल एफडीआई 18 से 28 अरब डॉलर का हो सकता है.'

खुद चीन सरकार के आंकड़े में यह दावा किया गया था कि चीनी कारोबारियों ने भारत में 8 अरब डॉलर (करीब 60,000 करोड़ रुपये) का निवेश किया है. कई संस्थाएं सिर्फ चीन के आंकड़े देती हैं तो कई इसमें हांगकांग को भी शामिल करती हैं. चाइना ग्लोबल इनवेस्टमेंट ट्रैकर के मुताबिक चीनी कंपनियों ने 2005 से 2020 तक भारत में कुल 30.67 अरब डॉलर (करीब 2.29 लाख करोड़ रुपये) का निवेश किया है.

ब्रुकिंग्स इंडिया रिपोर्ट के अनुसार, चीन की कंपनियों द्वारा भारत में कुल निवेश (मौजूदा और नियोजित) करीब 1.98 लाख करोड़ रुपये का है. चीन की कंपनियों ने बड़े पैमाने पर भारतीय स्टार्टअप में निवेश कर रखा है. इंडियन काउंसिल ऑन ग्लोबल रिलेशंस से जुड़े थिंक टैंक ‘गेटवे हाउस’ की ओर से प्रकाशित एक रिपोर्ट में भारतीय स्टार्टअप्स में 4 अरब डॉलर (करीब 30,000 करोड़ रुपये) के चीनी तकनीकी निवेश का अनुमान लगाया गया है. गेटवे हाउस के मुताबिक भारत में कुल चीनी एफडीआई करीब 6.2 अरब डॉलर है और भारतीय टेक कंपनियों में उनका निवेश करीब 4 अरब डॉलर है.

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भारत के टॉप 30 यूनिकॉर्न्स (1 अरब डॉलर से ज्यादा मूल्य के स्टार्टअप्स) में से 18 चीनी फंड से पोषित हैं और तकनीक संचालित हैं. भारत के कई सेक्टर में चीन की करीब 100 कंपनियां कारोबार कर रही हैं.

मनमोहन बनाम मोदी राज में FDI

मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार हो या नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार, दोनों ने चीनी निवेश के आने में हाल तक कोई सख्ती नहीं बरती थी. उद्योग संवर्द्धन और आंतरिक व्यापार विभाग (DIPP) के आंकड़ों के मुताबिक 2000 से मार्च 2014 के बीच चीन से भारत आने वाला एफडीआई महज 40.2 करोड़ डॉलर था (2004 तक यह करीब 20 लाख डॉलर ही था). यानी मनमोहन सरकार के 10 साल के कार्यकाल में चीन से आने वाला एफडीआई करीब 40 करोड़ डॉलर था. तो 2019-20 के 2.4 अरब डॉलर के आंकड़े को देखें तो मोदी सरकार में इसमें करीब 2 अरब डॉलर यानी करीब 15 हजार करोड़ रुपये की बढ़ोतरी हुई है.

मनमोहन सरकार ने भी चीनी निवेश को प्रोत्साहित किया था

चीन से एफडीआई पर सख्ती

इसी साल अप्रैल में सरकार ने एफडीआई नियमों में बदलाव करते हुए चीन से आने वाले एफडीआई पर सख्ती लगा दी है. सीमा से सटे देशों से आने वाले प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को गहराई से छानबीन के बाद इजाजत देने की बात कही है. नए नियमों के तहत, अब भारत की सीमा से जुड़े किसी भी देश के नागरिक या कंपनी को निवेश से पहले सरकार की मंजूरी लेनी होगी. पहले सिर्फ पाकिस्तान और बांग्लादेश के नागरिकों/कंपनियों को ही मंजूरी की जरूरत होती थी.

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इसके बाद से चीन से कोई भी प्रत्यक्ष विदेशी निवेश भारत में नहीं आया है. सरकार इस बात पर भी सख्त नजर रखे हुए है कि चीनी निवेशक किसी तीसरे देश के माध्यम से भारत न आने पाएं. हालांकि चीन की सरकारी मीडिया का कहना है कि कोरोना और सीमा पर जारी तनाव की वजह से एफडीआई भारत में नहीं आ पा रहा.

महत्वपूर्ण चीनी निवेश

रणनीतिक निवेश के जरिए भारतीय कारोबारों में शामिल प्रमुख चीनी फर्मों में अलीबाबा, टेनसेंट और बाइटडांस हैं. अकेले अलीबाबा ग्रुप ने ही बिग बास्केट (25 करोड़ डॉलर),पेटीएम डॉट कॉम (40 करोड़ डॉलर), पेटीएम मॉल (15 करोड़ डॉलर), जोमेटो (20 करोड़ डॉलर) और स्नैपडील(70 करोड़ डॉलर) में रणनीतिक निवेश किया है.

इसी तरह एक अन्य चीनी समूह टेनसेंट होल्डिंग्स ने भारतीय कंपनियों जैसे कि बायजू (5 करोड़ डॉलर), ड्रीम 11 (15 करोड़ ड़ॉलर), फ्लिपकार्ट (30 करोड़ डॉलर), हाइक मैसेंजर (15 करोड़ डॉलर), ओला (50 करोड़ डॉलर) और स्विगी (50 करोड़ डॉलर) में अपना निवेश किया है.

निवेश के अनेक रास्ते

गेटवे हाउस की रिपोर्ट में कहा गया है कि कुछ चीनी फंड भारत में अपने निवेश को सिंगापुर, हांगकांग, मॉरीशस आदि में स्थित कार्यालयों के माध्यम से करते हैं. मिसाल के लिए, पेटीएम में अलीबाबा का निवेश अलीबाबा सिंगापुर होल्डिंग्स प्राइवेट लिमिटेड की ओर से किया गया है. ये भारत के सरकारी डेटा में चीनी निवेश के तौर पर दर्ज नहीं है.

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शाओमी जैसे कई चीनी निवेशक सिंगापुर के द्वारा भारत में निवेश कर रहे हैं, जिसकी वजह से यह चीनी एफडीआई के आंकड़े में आने से बच जाते हैं. शाओमी ने करीब 3500 करोड़ रुपये का निवेश इसी रूट से किया है.

जानकार कहते हैं ​कि सिंगापुर और हांकांग के बढ़ते एफडीआई निवेश में बड़ा हिस्सा चीनी निवेश का ही हो सकता है. पिछले 20 साल में सिंगापुर से भारत में करीब 94.6 अरब डॉलर का निवेश आया है जो कि भारत के कुल एफडीआई का करीब 20 फीसदी है. इसी दौरान हांगकांग से करीब 4.2 अरब डॉलर का निवेश आया.

क्या होता है प्रत्यक्ष विदेशी निवेश

जब कोई कंपनी या व्यक्ति किसी दूसरे देश के कारोबार में निवेश करता है तो यह प्रत्यक्ष विदेशी निवेश कहलाता है. इसके तहत किसी दूसरे देश में निवेशक अपना कारोबार स्थापित करता है, फैक्ट्री लगाता है या उस देश की किसी कंपनी में निवेश करता है. एफडीआई के अलावा किसी देश में निवेश एक तरीका पोर्टफोलियो इनवेस्टमेंट, या विदेशी संस्थागत निवेश का होता है. इसमें कोई निवेशक किसी दूसरे देश की शेयर बाजार में सूचीबद्ध कंपनियों में निवेश करता है. एफडीआई को पोर्टफोलियो निवेश से ज्यादा बेहतर माना जाता है, क्योंकि यह स्थायी होता है और इससे लोगों को रोजगार मिलता है. जबकि पोर्टफोलियो इनवेस्टर जब मर्जी अपना निवेश निकालकर बाहर हो जाता है.

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शेयर बाजार में चीनी निवेश पर भी नजर

पोर्टफोलियो निवेश के द्वारा चीनी संस्थागत निवेशकों ने भारतीय शेयर बाजार में 1 अरब डॉलर से ज्यादा का निवेश कर रखा है. ​चीन के विदेशी संस्थागत निवेशक भी भारतीय शेयर बाजार में निवेश कर सकते हैं.

नियम के मुताबिक चीनी कंपनियां भारतीय शेयर बाजार की लिस्टेड किसी कंपनी में 10 फीसदी तक निवेश कर सकती हैं. एफडीआई का रेगुलेशन तो वित्त मंत्रालय करता है, लेकिन विदेशी पोर्टफोलियो निवेश का रेगुलेशन सेबी के द्वारा किया जाता है. एक अनुमान के अनुसार 16 चीनी पोर्टफोलियो निवेशकों ने भारतीय शेयर बाजार में करीब 1.1 अरब डॉलर (करीब 8000 करोड़ रुपये) का निवेश कर रखा है.

हाल में बाजार नियामक सेबी ने शेयर बाजार के कस्टोडियन से इस बात पर नजर रखने को कहा था कि कहीं चीनी कंपनियां भारतीय कंपनियों के शेयर दबे हुए वैल्यू पर तो नहीं खरीद रहीं. सेबी ने सिर्फ चीन ही नहीं बल्कि हांगकांग सहित 11 एशियाई देशों से आने वाले निवेश पर नजर रखने को कहा. सेबी ने यह जानकारी मांगी कि कहीं ऐसा तो नहीं कि इन 13 देशों के जो फंड भारतीय शेयर बाजार में निवेश कर रहे हैं उनमें से ज्यादातर में चीनी निवेशकों का पैसा लगा हो.

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