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असम: CAA के विरोध में सिख, मारवाड़ी, मुस्लिम, बिहार से आए लोग भी शामिल

विरोध प्रदर्शनों में वो सिख, मारवाड़ी, बिहारी और मुस्लिम भी हिस्सा ले रहे हैं, जिन्होंने पीढ़ियों से असम को अपना घर बना रखा है. इनका भी कहना है कि असमिया संस्कृति, भाषा और पहचान का संरक्षण किया जाना चाहिए.

नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ प्रदर्शन नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ प्रदर्शन
aajtak.in
  • गुवाहाटी,
  • 19 दिसंबर 2019,
  • अपडेटेड 1:47 PM IST

  • नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ देशभर में प्रदर्शन
  • प्रदर्शनकारियों ने CAA को धर्मनिरपेक्षता के खिलाफ बताया

नागरिकता संशोधन एक्ट (CAA) के खिलाफ असम में सिर्फ मूल असमी लोगों का ही नहीं बल्कि और समाज के अन्य वर्गों और समुदायों से भी समर्थन मिल रहा है.

विरोध प्रदर्शनों में वो सिख, मारवाड़ी, बिहारी और मुस्लिम भी हिस्सा ले रहे हैं, जिन्होंने पीढ़ियों से असम को अपना घर बना रखा है. इनका भी कहना है कि असमिया संस्कृति, भाषा और पहचान का संरक्षण किया जाना चाहिए. इनके मुताबिक असम उनका घर है और असम के लोगों ने उन्हें स्वीकार किया है.

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असम में नागरिकता संशोधन एक्ट के पास होने के बाद हिंसक प्रदर्शन, अराजकता, आगजनी की घटनाएं हुईं लेकिन बीते चार दिन से शांतिपूर्ण ढंग से विरोध किया जा रहा है. इस एक्ट के तहत पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान में उत्पीड़न के शिकार गैर मुस्लिम अल्पसंख्यकों को भारतीय नागरिकता का देने का प्रावधान है.  

असम के लोगों को आशंका है कि इस एक्ट के बाद असम में बांग्लादेशी हिन्दू बड़ी संख्या में आएंगे जिससे ना सिर्फ असम की भाषा और संस्कृति पर असर पड़ेगा बल्कि राज्य में बेरोजगारी की समस्या भी बढ़ेगी.

गुवाहाटी में कारोबारी मंजीत सिंह कहते हैं- “हम समान भाषा बोलते हैं और असमियों जैसे ही हैं. हमारे पूर्वज यहां 200 साल पहले आकर बसे थे. हमारी भाषा असमी है. हम सिख ज़रूर हैं लेकिन यहां की संस्कृति का पालन करते हैं. हम नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ हैं क्योंकि ये राज्य की संस्कृति और भाषा से समझौता करेगा.”  

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एक और सिख एलपी सिंह ने कहा, “हम असम से जुड़े मुद्दे पर पूरी तरह असम के लोगों के साथ हैं. हम इस क़ानून का विरोध करते रहेंगे.” प्रदर्शन करने वाले एक ग्रुप में शामिल शबीना खान ने कहा, हम यहां असम में धर्मनिरपेक्षता की रक्षा के लिए हैं. ये क़ानून सिर्फ़ लोगों को बांटेगा. धर्म के आधार पर नागरिकता देने का क्या मतलब है. क्या ये बांटो और राज करो नहीं है.”

शबीना ख़ान जैसे ही विचार कविता रहमान ने भी व्यक्त किए. एक मुस्लिम शख्स से शादी करने वाली कविता ने कहा, “मैं सही मायने में दोनों समुदायों की नुमाइंदगी करती हूं. ये वो मुहिम है जिसमें धर्मनिरपेक्षता को बचाने के लिए पूरा असम एकजुट है.”

बिहार के समस्तीपुर से 25 साल पहले असम में आने वाले राजू साहनी एनजीओ चलाते हैं. उनका मानना है कि बांग्लादेश से हिन्दुओं को आने की अनुमति देना असम की समस्याओं को बढ़ाएगा. राजू ने कहा, “सरकार का फैसला भ्रामक है. भारतीय के नाते हम देश में कहीं भी यात्रा कर सकते हैं, कहीं भी बस सकते हैं. जब आपके पास खुद के लोगों को देने के लिए रोज़गार नहीं हैं तो दूसरे देश के लोगों को यहां आने की इजाज़त क्यों दी जाए?”

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अब असम सरकार ने एलान किया है वो राज्य के लोगों की चिंताएं दूर करने के लिए ऐसा कानून और नीति लाएगी जिससे कि असम के मूल नागरिकों के जमीन से जुड़े अधिकारों, भाषाई और सांस्कृतिक पहचान से जुड़े हितों की रक्षा की जा सकेगी.

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