
नागरिकता संशोधन बिल (CAB) को लेकर एक ओर जहां देश भर में विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं, वहीं जेडीयू में भी तकरार शुरू हो गई है. जेडीयू के इस बिल का समर्थन करने को लेकर पार्टी के कुछ नेता धर्मनिरपेक्षता की दुहाई देकर सवाल उठा रहे हैं लेकिन जेडीयू का एक बड़ा तबका पार्टी के इस निर्णय का समर्थन कर रहा है.
जेडीयू के बारे में माना जाता है कि वो अपने मुद्दे को लेकर समझौता नहीं करती है. हालांकि हाल के दिनों में पार्टी ने ट्रिपल तलाक या धारा 370 हटाने के फैसलों का अपने तरीके से विरोध किया लेकिन वो कहीं नजर नहीं आया. लेकिन नागरिकता संशोधन बिल पर पहली बार जेडीयू ने लोकसभा में खुलकर इसका समर्थन किया है.
जेडीयू के इस कदम के बाद क्या यह माना जाए कि नीतीश कुमार अपनी पार्टी की रणनीति में व्यापक बदलाव करने जा रहे हैं. यहां गौर करने वाली सबसे बड़ी बात यह है कि जेडीयू में रणनीतिकार के तौर पर काम करने वाले राष्ट्रीय उपाध्यक्ष प्रशांत किशोर भी पार्टी के इस फैसले से झटके में हैं.
गौरतलब है कि जेडीयू बीजेपी के साथ रहकर भी अपने सेकुलर छवि को लेकर काफी सजग रहती है. 1996 से दोनों दलों में गठबंधन होने के बाद भी कई ऐसे मुद्दे थे, जिस पर जेडीयू ने साफ तौर पर बीजेपी का समर्थन करने से इनकार कर दिया था चाहे वो राममंदिर निर्माण का मुद्दा क्यों न हो.
बिहार में भी पिछले 15 सालों से चल रही नीतीश कुमार की सरकार ने कभी बीजेपी के एजेंडे को लागू नहीं होने दिया और अल्पसंख्यकों के लिए बढ़-चढ़ कर योजनाएं बनाईं. चाहे वह उनकी शिक्षा में छात्रवृति का मामला हो या स्वरोजगार का, कब्रगाहों की घेराबंदी का मामला हो या फिर मदरसों की स्थिति में सुधार का. कई बार बीजेपी के नेताओं ने कुछ आवाज भी उठाई लेकिन नीतीश कुमार पर इसका कोई फर्क नहीं पड़ा.
नीतीश कुमार ने जब 2005 में बिहार की गद्दी संभाली उसके बाद से अपनी सेकुलर छवि को बरकरार रखने के लिए कई फैसले किए. जिसमें एक फैसला यह भी था कि गुजरात दंगों को लेकर तब के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी को प्रचार के लिए बिहार आने से रोकना. यही नहीं 1989 में भागलपुर में हुए दंगे के केस को दोबारा खुलवाकर दोषियों को सजा दिलाई. इसका नतीजा यह हुआ कि 2010 में हुए विधानसभा चुनाव में बिहार में एनडीए को 206 सीटें आईं तब यह माना गया कि इस बार बीजेपी के साथ रहने के बावजूद नीतीश कुमार को मुस्लिमों का वोट मिला.
लेकिन मुस्लिम वोटर नीतीश कुमार से कितने जुड़े हुए हैं इस बात का असली रियलिटी चेक 2014 के लोकसभा चुनाव में हुआ. जब 2013 में बीजेपी से अलग होने के बाद उन्होंने अकेले दम पर 2014 का लोकसभा चुनाव लड़ा. पार्टी को मुस्लिम वोटरों से तगड़ा झटका लगा और जेडीयू 2 सीटों पर सिमट कर रह गई. उसके बाद भी नीतीश सरकार मुस्लिम हितों की बात करती रही है लेकिन पार्टी को यह जरूर समझ में आ गया कि चाहे जितना भी सेकुलर बने राज्य के 16 फीसदी मुस्लिमों का वोट उन्हें नहीं मिलने वाला है. इसी वजह से पार्टी ने वर्तमान राजनीतिक परिस्थिति देखते हुए नागरिकता संशोधन बिल का समर्थन करने का फैसला किया. हालांकि जेडीयू ने यह स्पष्ट किया है कि नागरिक संशोधन बिल धर्मनिरपेक्षता के खिलाफ नहीं है.
नीतीश कुमार के इस फैसले से उनके सेकुलर छवि को जरूर धक्का लगा है लेकिन इससे एनडीए को मजबूती भी मिली है. इसके साथ ही यह बात भी साफ हो गई कि अब नीतीश कुमार महागठबंधन में शामिल नहीं होंगे. जैसे कि कयास लगाये जा रहे थे. हालांकि यह फैसला नीतीश कुमार के लिए इतना आसान नहीं रहा होगा लेकिन वो ऐसे मुद्दों का विरोध कर बीजेपी आलाकमान से नाराजगी लेने की स्थिति में भी नहीं होंगे. क्योंकि 2020 में बिहार में विधानसभा का चुनाव भी है.