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नालंदा विश्वविद्यालय में आज से पढ़ाई शुरू हो गई. पहले दिन के 9 स्टूडेंट और महज 7 फैकल्टी मेंबर मौजूद रहे. हालांकि, 15 स्टूडेंट्स ने यूनिवर्सिटी में दाखिला लिया है और 11 फैकल्टी मेंबर हैं. यूनिवर्सिटी में पीजी कोर्स की सालाना फीस 3 लाख रुपये है. इसके अलावा एडमिशन फीस 75 हजार रुपये है. हालांकि, पहले बैच के लिए स्टूडेंट्स को आधी ट्यूशन फीस ही देनी है.
यूनिवर्सिटी में फिलहाल दो कोर्स शुरू किए गए हैं- इकोलॉजी और इतिहास. इससे पहले माना जा रहा था कि हर कोर्स में 20 स्टूडेंट्स दाखिला लेंगे लेकिन केवल 15 स्टूडेंट्स को ही एडमिशन मिला है. 15 में से केवल 3 स्टूडेंट बिहार से हैं. एडमिशन के लिए करीब 1000 स्टूडेंट्स ने अप्लाई किया था. दो स्टूडेंट जापान और भूटान से हैं. दो फैकल्टी मेंबर भी बाहर (अमेरिका और सिंगापुर) से हैं.
करीब 800 साल पहले विदेशी आक्रमणकारियों के हमले में तबाह हो गए नालंदा विश्वविद्यालय को अब नए रंग-रूप में शुरू किया गया है. पढ़ाई शुरू कराने के लिए राजगीर स्थित इंटरनेशनल कन्वेंशन सेंटर के दो कमरे लिए गए हैं. स्टूडेंट्स और टीचरों के रहने के लिए 40 कमरों वाला तथागत होटल किराये पर लिया गया है.
यूनिवर्सिटी के लिए प्रस्तावित 446 एकड़ के स्थायी परिसर में फिलहाल एक दीवार बन पाई है, जबकि क्लास, ऑफिस और फैकल्टी मेंबर्स के लिए एक अस्थायी कैंपस बनाया जा रहा है. मौजूदा हालत में यूनिवर्सिटी की मेन बिल्डिंग का काम 2020 से पहले पूरा नहीं हो सकता है.
नालंदा अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालय को फिर से शुरू करने का विचार सबसे पहले 2006 में तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम के दिमाग में आया था. पुराने विश्वविद्यालय के खंडहर से करीब 10 किलोमीटर दूर राजगीर में बनाए जा रहे इस विश्वविद्यालय के निर्माण की योजना की घोषणा उसी साल भारत, चीन, सिंगापुर, जापान और थाईलैंड ने संयुक्त रूप से की और बाद में यूरोपीय संघ के देशों ने भी इसमें दिलचस्पी दिखाई.
पांचवीं सदी में बने प्राचीन विश्वविद्यालय में करीब 10 हजार छात्र पढ़ते थे, जिनके लिए 1500 अध्यापक हुआ करते थे. छात्रों में अधिकांश एशियाई देशों चीन, कोरिया और जापान से आने वाले बौद्ध भिक्षु होते थे. इतिहासकारों के मुताबिक, चीनी भिक्षु ह्वेनसांग ने भी सातवीं सदी में नालंदा में शिक्षा ग्रहण की थी. उन्होंने अपनी किताबों में नालंदा विश्वविद्यालय की भव्यता का जिक्र किया है.