
खानदानी शफाखाना में काम करने से पहले आपको अपने करियर को लेकर डर नहीं लगा?
जब मुझे फिल्म की वन लाइन स्टोरी सुनाई गई थी तो मेरी पहली प्रतिक्रिया यही थी कि मेरे पास यह फिल्म लेकर क्यों आए हैं. लेकिन जब मैंने स्क्रिप्ट पढ़ी तो तय किया कि मुझे यह फिल्म करनी है. क्योंकि इसका विषय बहुत ही दिलचस्प और बोल्ड है. मजे की बात यह है कि आज के जमाने में भी लोग ऐसे विषय पर बात करने से हिचकिचाते हैं.
घरवालों ने ऐसी फिल्म करने से रोका नहीं?
मेरी मॉम ने भी कहा था कि तुम कैसे यह फिल्म कर सकती हो? मगर जब उन्होंने पूरी स्क्रिप्ट पढ़ी तो मुझे यह फिल्म करने की इजाजत दे दी. अगर उनकी इजाजत नहीं मिलती तो शायद मैं यह फिल्म नहीं कर पाती.
मॉम से इजाजत लेने का मतलब?
मैं भी आम भारतीय लड़कियों में से एक हूं. आज भी मैं अपने पैरेंट्स से सेक्स पर बात नहीं करती हूं. बचपन से हमारी परवरिश ही ऐसी हुई है. लोग मानते हैं कि सेक्स का मतलब गंदी बात है.
आप भी मानती हैं कि सेक्स गंदी बात है?
नहीं. मैं आज इस दुनिया में हूं किसकी वजह से. उसी टॉपिक की वजह से. तो फिर यह टॉपिक कैसे गंदा हो गया. फिल्म यह बताती है कि सेक्स गंदा नहीं है.
सेक्स को लेकर लोगों की मानसिकता को बदलने में यह फिल्म कितनी सहायक साबित होगी?
इस फिल्म से पहले 'विकी डोनर', 'शुभ मंगल सावधान' और 'बधाई हो' जैसी फिल्में आई हैं और दर्शकों ने उसे स्वीकार किया है. मुझे लगता है कि खानदानी शफाखाना को देखकर लोग थोड़े जागरूक होंगे. क्योंकि फिल्म में दिखाया गया है कि गुप्त रोगों का इलाज करने वाला डाक्टर सिर्फ पुरूष नहीं हो सकता बल्कि सेक्स क्लीनिक एक लड़की भी चला सकती है यानी एक लड़की भी सेक्स गुरु बन सकती है.
फिल्म की महिला निर्देशक होने से ऐक्टिंग में आप ज्यादा सहज थीं?
बिल्कुल. फिल्म की शूटिंग के दौरान शिल्पी दासगुप्ता मेरी बड़ी बहन ज्यादा और निर्देशक कम थीं. अगर कोई पुरुष निर्देशक होता तो शायद मैं असहज हो जाती.
क्या कॉमेडी के सहारे सेक्स पर बात करना ज्यादा आसान है?
गुप्त ज्ञान बांटने के लिए कॉमेडी सचुमच आसान रास्ता है. यह फिल्म बच्चों और परिवार के साथ देखने वाली है. इसे देखते हुए कोई शर्मसार नहीं होगा.
सेक्स शिक्षा तो कई राज्यों में बैन है. आप क्या कहेंगी?
यह तो गलत है. मेरा मानना है कि बचपन से ही सेक्स शिक्षा दिया जाना चाहिए. इससे बच्चे गलत रास्ते पर नहीं जाएंगे.
कलंक की असफलता को आप अपने करियर में किस तरह से देखती हैं?
कलंक में मैंने अपने किरदार के साथ न्याय किया और दर्शकों ने मेरे काम की वाहवाही की. इसे मैं अपने करियर के लिए अच्छा मानती हूं. जहां तक कलंक की असफलता की बात है तो दर्शकों को पसंद नहीं आई तो नहीं आई. सफलता और असफलता फिल्मों और ऐक्टरों के करियर में रहेगा ही. लेकिन ऐक्टर के तौर हम सकारात्मक रूप से आगे देखते हैं.
हालिया कुछ विवादों वाली फिल्मों की वजह से ऐसा माना जा रहा है कि हमारा सिनेमा समाज के प्रति उत्तरदायी नहीं है?
मैं इससे सहमत नहीं हूं. सिनेमा समाज का आईना है. समाज में जो कुछ होता है वो सिनेमा में दिखता है. सिनेमा मनोरंजन करने वाला माध्यम है और हर तरह की फिल्मों से दर्शकों को मनोरंजन हो रहा है.
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