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कभी घी खाने को नहीं थे पैसे, बजरंग ने एेसे तय किया सुनहरा सफर

बजरंग ने पुरुषों की 65 किलोग्राम वर्ग स्पर्धा के फाइनल में वेल्स के केन चैरिग को एकतरफा मुकाबले में 10-0 से शिकस्त दी.

बजरंग पूनिया का दांव बजरंग पूनिया का दांव
अमित रायकवार
  • नई दिल्ली,
  • 13 अप्रैल 2018,
  • अपडेटेड 3:01 PM IST

पहलवान बजरंग पूनिया ने भारत को 17वां गोल्ड मेडल दिलाया. पुरुषों के 65 किलोग्राम भार वर्ग में उन्होंने जबरदस्त प्रदर्शन करते हुए यह स्वर्णिम जीत दर्ज की. बजरंग का यह दूसरा कॉमनवेल्थ पदक है, इससे पहले उन्होंने 2014 ग्लास्गो कॉमनवेल्थ खेलों में सिल्वर मेडल जीता था.

ऐसे जीता गोल्ड का मुकाबला

बजरंग ने पुरुषों की 65 किलोग्राम वर्ग स्पर्धा के फाइनल में वेल्स के केन चैरिग को एकतरफा मुकाबले में 10-0 से शिकस्त दी. बजरंग ने यह जीत रियो ओलंपिक के कांस्य पदक विजेता को शिकस्त देकर हासिल की. भारतीय पहलवान ने शुरुआत से ही अपने प्रतिद्वंद्वी पर शिकंजा कसना शुरू कर दिया.

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उन्होंने चैरिग को हाथों से जकड़कर पटका और दो अंक लिए. इसी अवस्था में उन्होंने वेल्स के पहलवान को रोल कर दो अंक और लेते हुए 4-0 की बढ़त बना ली. इसी शैली और तरीके से बजरंग ने चार अंक और लिए. अंत में बजरंग ने चैरिग को चित करते हुए 10 अंक के साथ सोना जीता.

मुश्किल हालात से गुजरे हैं बजरंग

बजरंग को कुश्ती विरासत में मिली. उनके पिता बलवान पूनिया अपने समय के नामी पहलवान रहे. लेकिन गरीबी ने उनके करियर को आगे नहीं बढ़ने दिया. कुछ ऐसा ही बजरंग के साथ हुआ. बजरंग के पिता के पास भी अपने बेटे को घी खिलाने के पैसे नहीं होते थे. इसके लिए वो बस का किराया बचाकर साइकिल से चलने लगे.  जो पैसे बचते, उसे वो अपने बेटे के खाने पर खर्च करते थे. ऐसे हालातों से गुजरते हुए बजरंग ने पहलवानी की दुनिया में देश का नाम रोशन किया.

छत्रसाल स्टेडियम में सीखे कुश्ती के गुर

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24 साल के बजरंग पूनिया ने दिल्ली के छत्रसाल स्टेडियम में कुश्ती के गुर सीखे और अब वो देश का परचम लहरा रहे हैं. हरियाणा के बजरंग ने 2014 में कॉमनवेल्थ खेलों में 61 किलोग्राम वर्ग में रजत जीता था और इस बार वह इन खेलों में अपने पदक के रंग को बदलने में कामयाब रहे.

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