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भारत में पहले कंप्यूटर से दुनिया की सबसे बड़ी बायोमेट्रिक स्कीम आधार तक, 70 साल में यहां पहुंचे हम

1970 में पहली बार भारत में डिपार्टमेंट ऑफ इलेक्ट्रॉनिक्स की शुरुआत हुई जिसका मकसद पब्लिक सेक्टर में कंप्यूटर डिविजन की नीव रखना था.1978 में IBM के अलावा दूसरी प्राइवेट सेक्टर की कंपनियों ने भारत में कंप्यूटर बनाना शुरू किया.

जवाहरलाल नेहरू भारत के पहले डिजिटल कंप्यूटर के साथ जवाहरलाल नेहरू भारत के पहले डिजिटल कंप्यूटर के साथ
Munzir Ahmad
  • नई दिल्ली,
  • 07 अगस्त 2017,
  • अपडेटेड 9:19 AM IST

भारत डिजिटल हो रहा है. आर्थिक लेन देन से लेकर जन्म और मृत्यु का रजिस्ट्रेशन तक तेजी से ऑनलाइन होता जा रहा है. कंप्यूटर और इंटरनेट का इस्तेमाल अब हर सरकारी और गैर सकारी दफ्तरों में हो रहा है. शहरी क्षेत्रों में लोग बिना इंटरनेट कनेक्टिविटी के रह नहीं सकते, क्योंकि अब वो उनकी जरूरतों में शामिल हो गया है. आजादी के 70 साल पूरे हो गए हैं और भारत इस मामले में कहां खड़ा है, यह बड़ा सवाल है. हम आपको कंप्यूटर क्रांति से डिजिटल इंडिया तक के सफर के बारे में बताते हैं.

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भारत को मिला पहला कंप्यूटर

दुनिया को पहला कंप्यूटर 1940 के आखिर में मिला, लेकिन भारत ने पहली बार 1956 में कंप्यूटर खरीदा. तब इसकी कीमत 10 लाख रुपये थी और इसका नाम HEC-2M था. सबसे पहले इसे कोलकाता के इंडियन स्टैटिस्टिकल इंस्टिट्यूट में इंस्टॉल किया गया. तब का कंप्यूटर अभी जैसा नहीं था और यह काफी बड़ा भी था. हालांकि यूजर्स के लिए भारत में कंप्यूटर्स काफी बाद में आए.

1960 तक भारत में कंप्यूटर्स को खास तवज्जो नहीं दी गई. तब भारत में सिर्फ आईबीएम और ब्रिटिश टैब्यूलेटिंग मशीन ये दोनों कंपनियां ही भारत में मैकेनिकल अकाउंटिंग मशीन बेचती थीं. इसके बाद इन दोनों कंपनियों ने भारत में ही कंप्यूटर बनाने के लिए आवेदन किया. बाद में आईबीएम ने भारत में कंप्यूटर निर्माण करना शुरू किया और इसे निर्यात भी किया गया.

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राजीव गांधी को कंप्यूटर क्रांति का श्रेय इसलिए दिया जाता है

राजीव गांधी को भारत में कंप्यूटर क्रांति लाने का श्रेय दिया जाता है. उन्होंने ना सिर्फ कंप्यूटर को भारतीय घर तक लाने का काम किया बल्कि भारत में इनफॉर्मेशन टेक्नॉलॉजी को आगे ले जाने में अहम रोल निभाया. देश की दो बड़ी टेलीकॉम कंपनी एमटीएनएल और वीएसएनल की शुरुआत उनके कार्यकाल के दौरान हुआ.

चूंकि तब कंप्यूटर्स महंगे होते थे. इसलिए सरकार ने कंप्यूटर को अपने कंट्रोल से हटाकर पूरी तरह ऐसेंबल किए हुए कंप्यूटर्स का आयात शुरू किया जिसमें मदरबोर्ड और प्रोसेसर थे. यहीं से कंप्यूटर्स की कीमते कम होनी शुरू हुई. क्योंकि इससे पहले तक कंप्यूटर्स सिर्फ चुनिंदा संस्थानों में इंस्टॉल किए गए थे.

भारत में टेलीकॉम और कंप्यूटर क्रांति में सैम पिटोदा ने अहम भुमिका निभाई है. उन्होंने लगभग दशकों तक राजीव गांधी के साथ मिलकर भारतीय इनफॉर्मेशन इंडस्ट्री बनाने में मदद की.

डिपार्टमेंट ऑफ इलेक्ट्रॉनिक्स की हुई शुरुआत

1970 में पहली बार भारत में डिपार्टमेंट ऑफ इलेक्ट्रॉनिक्स की शुरुआत हुई जिसका मकसद पब्लिक सेक्टर में कंप्यूटर डिविजन की नीव रखना था.1978 में IBM के अलावा दूसरी प्राइवेट सेक्टर की कंपनियों ने भारत में कंप्यूटर बनाना शुरू किया.

राजीव गांधी के सलाहकार सैम पिटोदा ने C-DoT की शुरुआत की

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गौरतलब है कि राजीव गांधी के एडवाइजर सैम पिटोदा ने सेंटर फॉर दी डेवेलपमेंट ऑफ टेलीमैटिक्स C-DOT लॉन्च किया.  इसकी शुरुआत 1984 में की गई जिसका मकसद डिजिटल एक्सचेंज का डिजाइन और डेवलपमेंट करना था. बाद में इसका विस्तार किया गया और अब यह सरकार की एक बॉडी है जो इंटेलिजेंट कंप्यूटर सॉफ्टवेयर ऐप्लिकेशन बनाने का काम करती है. आपको बता दें कि यह डिपार्टमेंट डिजिटल इंडिया के तहत लॉन्च होने वाले अहम प्रोडक्ट्स में मुख्य रोल अदा करता है.

भारत में कंप्यूटर लाने पर दूसरी पार्टियों ने किया था विरोध

1985 में राजीव गांधी ने देश में यूजर्स के लिए कंप्यूटर का ऐलान किया तब दूसरी राजनीतिक पार्टियों ने जमकर इसका विरोध किया. इसके खिलाफ कैंपेन शुरू किए गए जिसमें लोगों को बताया गया कि कंप्यूटर आने के बाद लोगों की जगह रोबोट ले लेंगे और लोग बेरोजगार हो जाएंगे.

राजीव गांधी ने प्रधानमंत्री बनते ही 1984 में माइक्रो कंप्यूटर्स पॉलिसी की नीव रखी. इसके तहत प्राइवेट सेक्टर की कंपनियों को 32 बिट कंप्यूटर्स बनाने का अधिकार मिला. यानी अब कंपनियां कंप्यूटर्स को ऐसेंबल कर सकती थीं. इससे इंपोर्ट ड्यूटी में कमी आई और कंप्यूटर की कीमतें पहले के मुकाबले थोड़े कम हुईं.

1984 की पॉलिसी की वजह से दो साल के अदर कंप्यूटर का ग्रोथ 100 फीसदी हो गया और कंप्यूटर्स की कीमतों में 50 फीसदी कमी दर्ज की गई.

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1985 में माइक्रोसॉफ्ट का Windows 1.0 लॉन्च हुआ

1985 में ही माइक्रोसॉफ्ट ने Windows 1.0 ऑपरेटिंग सिस्टम की शुरुआत की. इसके अलावा कंपनी ने पहली बार MS Excel को Apple Macintosh कंप्यूटर के लिए जारी किया. यह बताना इसलिए अहम है, क्योंकि 1985 भारत ही नहीं बल्कि दुनिया में भी पर्सनल कंप्यूटर के विस्तार में एक माइल स्टोन की तरह है.

1998 से 1990 का बीच का अरसा देश में कंप्यूटर क्रांति के लिए जाना जाता है. इस दौना देश भर की कई संस्थानों ने कंप्यूटर्स को लेकर कई स्कीम की शुरुआत की. इतना ही नहीं 1984 से 1986 के बीच रेलवे सीट रिजर्वेशन सिस्टम को कंप्यूटराइज्ड किया गया. 1986 में रिजर्वेशन सिस्टम बन कर तैयार था और इसके लिए किसी दूसरे देश की मदद भी नहीं ली गई.

साल 1991 में सरकार की मदद से प्राइवेट सेक्टर की कंपनियों ने सॉफ्टवेयर डेवलप करना शुरू किया और इसमें काफी ग्रोथ भी दर्ज की गई. 1998 में भारत सरकार ने इनफॉर्मेशन टेक्नॉलॉजी को भारत का भविष्य घोषित कर दिया.

1991 में दूसरे देशों में कंप्यूटर निर्यात करने पर लगाए जाने वाले इम्पोर्ट ड्यूटी को हटा दिया गया. इतना ही नहीं तब सॉफ्टवेयर कंपनियों को निर्यात से हुए फायदे को 10 साल तक के लिए टैक्स फ्री कर दिया गया. अब देश में सौ फीसदी इक्विटी के साथ मल्टीनेशनल कंपनियों आने की इजाजत मिल गई थी.

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रेलवे रिजर्वेशन सिस्टम की सफलता को देखते हुए लोगों का रूझान इस तरफ बढ़ा. 1978 में आईबीएम कंप्यूटर की मोनोपॉली खत्म हुई यानी इसमें यहां कंप्यूटर बनाना बंद कर दिया. यहां से कई प्राइवेट कंपनियां का जन्म हुआ जिन्होंने कंप्यूटर बनाना शुरू किया. इनमें मुख्य रूप से विप्रो और एचसीएल जैसी कंपनियां हैं जो आज देश की टॉप आईटी कंपनी हैं.

आंकड़ो की बात करें तो 1997 से 1998 के बीच भारतीय सॉफ्टवेयर कंपनियों ने निर्यात करके 1.76 बिलियन डॉलर का मुनाफा कमाया. इससे पहले यानी 1990 से 1991 मे यह आंकड़ा काफी कम था. इस दौरान इन कंपनियों ने हर 45 फीसदी ग्रोथ किया. इसके बाद  से लगातार कंप्यूटर का इस्तेमाल बढ़ने लगा और भारत अब दुनिया भर में सॉफ्टवेयर एक्सपोर्ट करने के लिए जाना जाता है. 

दुनिया का सबसे बड़ा बायोमेट्रिक आईडी सिस्टम है आधार

2009 से 2014 आधार के लिए अहम रहा. 28 जनवरी 2009 को यूनिक आइडेंटिफिकेशन अथॉरिटी ऑफ इंडिया यानी UIDAI की शुरुआत हुई. 23 जून 2009 को इनफोसिस के को फाउंडर नंदन निलेकनी को कांग्रेस की सरकार ने तब इस प्रोजेक्ट का हेड बनाया. उन्हें कैबिनेट मिनिस्टर का दर्जा दिया गया. अप्रैल 2010 में नंदन निलेकनी ने इस प्रोजेक्ट का नाम आधार रखा और लोगो लॉन्च किया. इसके तहत 12 डिजिट का यूनिक आइडेंटिफिकेशन नंबर देश के नागरिकों को देने का प्लान बनाया गया.

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2 जुलाई 2015 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने डिजिटल इंडिया कैंपेन की शुरुआत की. इस कैंपेन के तहत रूरल इंडिया को हाई स्पीड इंटरनेट नेटवर्क से जोड़ना से लेकर तमाम तरह की परियोजनाओं को डिजिटल करना है.

नरेंद्र मोदी सरकार ने 12 जुलाई 2016 को इसे इलेक्ट्रॉनिक्स एंड इनफॉर्मेशन टेक्नॉलॉजी मंत्रालय के तहत विस्तार का ऐलान किया गया. फिलहाल आधार दुनिया का सबसे बड़ा बायोमेट्रिक आईडी सिस्टम है और इसके लिए अब तक लगभग 1.167 बिलियन लोगों ने रजिस्ट्रेशन कराया है.

 

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