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जबरन लगा दाग धोना चाहते हैं कांग्रेस नेता मनीष तिवारी

पिछले ढाई सालों से मनीष तिवारी बतौर कांग्रेस पार्टी प्रवक्ता अपने काम में जुटे हैं, लेकिन विधानसभा चुनाव उनको अपने जख्मों पर मरहम लगाने का मौका नजर आ रहा है. सूत्रों के मुताबिक जैसे ही उनसे पूछा गया कि विधानसभा चुनाव लड़ना चाहते हैं, तो मनीष ने हामी भर दी.

कांग्रेस नेता मनीष तिवारी कांग्रेस नेता मनीष तिवारी
कुमार विक्रांत/सुरभि गुप्ता
  • नई दिल्ली,
  • 12 दिसंबर 2016,
  • अपडेटेड 2:06 AM IST

यूपीए 2 में सूचना प्रसारण मंत्री रहे मनीष तिवारी आज कल कांग्रेस के प्रवक्ता हैं, लेकिन उनके करीबी सूत्रों की मानें तो वो पंजाब विधानसभा चुनाव लड़ना चाहते हैं. कोई पूर्व सांसद, वो भी पूर्व मंत्री विधानसभा का चुनाव लड़ने से परहेज करता है, पर मनीष ऐसा क्यों चाहते हैं. इसकी एक बड़ी वजह है.

2014 में लुधियाना से नहीं लड़ पाए चुनाव
दरअसल, यूथ कांग्रेस के अध्यक्ष रहे मनीष तिवारी को राजीव गांधी ने 1989 में ही कानपुर से लोकसभा का टिकट दिया था, लेकिन बाहरी होने के चलते उनका तीखा विरोध हुआ और फिर टिकट बदल दिया गया. आखिरकार तिवारी 2009 में लुधियाना से कांग्रेस के सांसद बने. अपनी तीखी बयानबाजी और भाषण कला के लिए पार्टी में पहचान बना चुके मनीष को यूपीए 2 में सूचना प्रसारण मंत्रालय की जिम्मेदारी मिली। लेकिन 2014 लोकसभा चुनाव से ठीक पहले वो बीमार हो गए और लुधियाना से चुनाव लड़ने से मना कर दिया.

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पार्टी के भीतर विरोधियों के निशाने पर आए
इसी के बाद मनीष पार्टी के भीतर विरोधियों के निशाने पर आ गए. उनको भगोड़ा, डरपोक, रणछोड़दास जैसे तमाम तमगों से नवाजा गया. पार्टी में उनके विरोधी नेताओं ने उनको गद्दार तक कह डाला. उस वक्त बीमारी से जूझते मनीष बस तड़प कर रह गए. आखिर परेशान होकर मनीष ने आलाकमान से लुधियाना के बजाए चंडीगढ़ से चुनाव लड़ने की गुज़ारिश की. इस तर्क के साथ कि खराब सेहत के चलते शहर और गांव में बंटी लुधियाना सीट में प्रचार करना संभव नहीं है, जबकि चंडीगढ़ शहरी और छोटी सीट है. मनीष इसके लिए तैयार इसलिए हुए कि उन पर हार के डर से चुनाव नहीं लड़ने का इल्जाम ना लगे, लेकिन मनीष का वो दांव भी उल्टा पड़ गया. विरोधियों ने कहा कि चंडीगढ़ में वो रेल मंत्री से आरोपों के चलते पवन कुमार बंसल की सीट पर इसलिए जाना चाहते हैं क्योंकि वो खुद लुधियाना से जीत नहीं पाएंगे. आखिर में मनीष चुनाव नहीं लड़े, चंडीगढ़ से पवन बंसल ही लड़े और बुरी तरह हार गए.

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मई 2014 से मनीष अभी तक उस दर्द से उबर नहीं पाए. दर्द इस बात का भी कि उनकी जगह उनकी लुधियाना सीट से चुनाव लड़े रवनीत सिंह बिट्टू चुनाव जीत गए. मनीष के करीबी कहते हैं कि वो मोदी लहर में भी लुधियाना से चुनाव लड़ना चाहते थे, लेकिन सेहत ने साथ छोड़ दिया था वर्ना अगर जनता उनके कांग्रेस सांसद रहते नाराज होती तो भला कांग्रेस के टिकट पर मोदी लहर में बिट्टू कैसे जीत जाते.

अब लुधियाना की विधानसभा सीट से लड़ने की चाहत
पिछले ढाई सालों से मनीष बतौर पार्टी प्रवक्ता अपने काम में जुटे हैं, लेकिन विधानसभा चुनाव उनको अपने जख्मों पर मरहम लगाने का मौका नजर आ रहा है. सूत्रों के मुताबिक जैसे ही उनसे पूछा गया कि विधानसभा चुनाव लड़ना चाहते हैं, तो मनीष ने हामी भर दी, लेकिन इस शर्त के साथ कि विधानसभा सीट लुधियाना की ही हो. आखिर अपने ऊपर लगे दाग को धोना जो चाहते हैं, खुद को साबित जो करना चाहते हैं, पर सीट को लेकर पेंच फंसा है. अनंतपुर साहिब से 2009 में सांसद बने बिट्टू, जो अब लुधियाना से सांसद हैं भला एक बड़े नेता की अपने इलाके में एंट्री के लिए क्यों तैयार होंगे. वहीं मनीष खुद को साबित करने के लिए सिर्फ लुधियाना की ही किसी सीट पर लड़ने के लिए कमर कसे हैं. ऐसे में मनीष का मामला फिलहाल आलाकमान पर छोड़ दिया गया है.

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आखिरी फैसला करेगी पार्टी आलाकमान
वहीं मनीष तिवारी इस मुद्दे पर खुद कुछ बोलने को तैयार नहीं हैं. उनका कहना कि जो बातें पार्टी के भीतर की होती हैं, उन पर वो मीडिया में चर्चा नहीं करना चाहते. हालांकि, इस मामले में पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष अमरिंदर सिंह का कहना है कि मनीष के मामले में आखिरी फैसला आलाकमान करेगा.

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