मार्च की 10 तारीख को, यानी उत्तर प्रदेश, पंजाब, उत्तराखंड, गोवा और मणिपुर विधानसभाओं के चुनाव नतीजे आने से ठीक एक दिन पहले, कांग्रेस ने अरुणाचल प्रदेश में नए प्रदेश अध्यक्ष की नियुक्ति की. पूर्वोत्तर के इस राज्य में पिछले साल पार्टी के 44 में से 43 विधायक बीजेपी की सरकार बनाने के लिए पार्टी छोड़कर चले गए थे. यहां अध्यक्ष का चयन इसलिए बेहद अहम था क्योंकि नए अध्यक्ष के कंधों पर पार्टी को बिल्कुल नए सिरे से खड़ा करने की जिम्मेदारी है.
कांग्रेस आलाकमान ने यह मुश्किल काम टकम संजोय को सौंपा, जो 2014 के लोकसभा चुनाव में अरुणाचल पश्चिम से चुनाव हार चुके थे. 2011 में इंडिया टुडे ने उनके खिलाफ बलात्कार के आरोप की रिपोर्ट प्रकाशित की थी.
तिस पर भी, कांग्रेस संगठन के ढांचे में पारदर्शिता और काबिलियत को तरजीह देने की बात करने वाले उपाध्यक्ष राहुल गांधी मानते हैं कि राज्य में पार्टी में नई जान फूंकने के लिए संजोय सबसे अच्छे शख्स हैं. पर ऐसे अबूझ फैसलों से इस पार्टी के भीतर तारी सड़ांध की झलक मिलती है, जो महज 813 विधानसभा सीटों—यानी देश की कुल 4,020 विधानसभा सीटों की महज 20 फीसदी—तक सिकुड़कर रह गई है. बीजेपी की यह सबसे मुख्य प्रतिद्वंद्वी पार्टी कागजों पर सिर्फ सात राज्यों में सत्ता में है—बिहार में यह गठबंधन की भागीदार पार्टी है. जबकि भगवा पार्टी 15 राज्यों में हुकूमत में है.
इससे ज्यादा अहम बात यह कि कांग्रेस देश के आठ बड़े राज्यों—उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, पश्चिम बंगाल, आंध्र्र प्रदेश, तमिलनाडु, गुजरात और राजस्थान में सत्ता से बाहर है. इन आठ राज्यों से लोकसभा में 331 सांसद चुनकर आते हैं. लोकसभा में कांग्रेस के 44 सांसद हैं, जबकि भाजपा के 282 सांसद हैं.
ऐसे मुश्किल आंकड़ों और 11 मार्च की भारी पराजय को दरकिनार करते हुए कांग्रेस के नेता उम्मीदों से लबरेज नजर आते हैं. कांग्रेस के एससी प्रकोष्ठ के मुखिया और राहुल गांधी के विश्वासपात्र के. राजू कहते हैं, ''हमने पंजाब में फतह हासिल की और गोवा और मणिपुर में सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरे. हम यूपी और उत्तराखंड में अपनी हार की वजहों की जांच-पड़ताल करेंगे, पर भूलना नहीं चाहिए कि पांच में से तीन राज्यों में हमने भाजपा से बेहतर प्रदर्शन किया है." पंजाब में नए चुनकर आए कांग्रेस विधायक नवजोत सिंह सिद्धू ने राज्य में पार्टी की शानदार जीत—117 में से 77 सीटें—को परिवर्तनकारी मोड़ तक बता दिया. राहुल गांधी की बजाए कैप्टन अमरिंदर सिंह को जीत का श्रेय देने वाले सिद्धू के बयान ने उस बात को खुलकर जाहिर कर दिया, जो अभी तक दबी जबान से कही जा रही थी.
उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में पार्टी का सफाया 2014 के लोकसभा चुनाव के बाद सातवीं पराजय के तौर पर आया. इसने भाजपा के तेज उभार के आगे राहुल के नेतृत्व पर एक बार फिर सवालिया निशान लगा दिया. अनाधिकारिक तौर पर कांग्रेस के बड़े नेता दावा करते हैं कि शीर्ष पर फेरबदल होना तय है. पार्टी के दिग्गज नेता पी. चिदंबरम कहीं ज्यादा दो-टूक थे. उन्होंने ट्वीट किया, ''उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड की जीत से फिर तस्दीक हो गई कि नरेंद्र मोदी सबसे प्रभावशाली सियासी नेता हैं. पंजाब ने भी अमरिंदर सिंह के हक में दोटूक फैसला दिया." उनका इशारा साफ था कि मोदी को कांग्रेस का जवाब राहुल गांधी नहीं हो सकते.
हालांकि ज्यादातर बड़े नेता आधिकारिक तौर पर यह बात कहने से कतराते हैं, पर इसे लेकर सर्वानुमति है कि कांग्रेस में नई जान फूंकने का काम राज्यों को फतह करने से ही शुरू होना चाहिए और इसके लिए संगठन के ढांचे को मजबूत करने और चुनाव जीतने में समर्थ क्षेत्रीय नेताओं को खड़ा करने की जरूरत है. नाम जाहिर न करने की शर्त पर कांग्रेस के एक महासचिव कहते हैं, ''राहुल गांधी जब नरेंद्र मोदी के तेजी से बढ़ते ताकतवर कारवां को असरदार चुनौती देने में नाकाम रहे हैं, ऐसे में राज्यों में मजबूत नेताओं की जरूरत है जो प्रधानमंत्री का सीधे मुकाबला कर सकें. नीतीश कुमार, ममता बनर्जी, अरविंद केजरीवाल और नवीन पटनायक के खिलाफ मोदी की कामयाबी (नहीं मिलने) पर नजर डालिए."
मगर राहुल के साथ इंसाफ करते हुए इतना तो कहना ही होगा कि उन्होंने संगठन को बिल्कुल जमीन से नए सिरे से खड़ा करने को लेकर पार्टी नेताओं और कार्यकर्ताओं के साथ कई दौर की बातचीत की है. उन्होंने बूथ कमेटियों को मजबूत बनाने की अहमियत पर जोर दिया है जिसमें चुनावी कामयाबी की चाबी छिपी है. मगर कुछेक नियुक्तियों को छोड़ दें तो राज्य इकाइयों को सक्रिय और प्रेरित करने की कोई कोशिश नहीं की गई है. कर्नाटक में मुख्यमंत्री सिद्धरमैया मांग कर रहे हैं कि राज्य के गृह मंत्री जी. परमेश्वर को राज्य इकाई अध्यक्ष के दूसरे पद पर नहीं रहना चाहिए, पर कांग्रेस आलाकमान के कानों पर जूं तक नहीं रेंगी.
अरुणाचल प्रदेश, असम और केरल में पार्टी को अंतर्कलह और भीतरी उठापटक पर काबू पाने में राहुल की नाकाबिलियत की अच्छी-खासी कीमत चुकानी पड़ी. कांग्रेस के एक प्रवक्ता कहते हैं, ''पार्टी जब राज्यों में लहूलुहान थी, तब या तो उन्होंने गलत घोड़े पर दांव लगाया या फिर मुंह फेर लिया. पंजाब में उन्होंने सही वक्त पर अमरिंदर सिंह की पीठ पर हाथ रखा और इसके नतीजे भी मिले. दूसरे राज्यों में भी पंजाब मॉडल पर ही चलना चाहिए."
2019 के लोकसभा चुनावों से पहले दस राज्यों में चुनाव होने हैं. ये राज्य हैं—गुजरात, हिमाचल प्रदेश, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, मेघालय, मिजोरम, त्रिपुरा और नगालैंड. हिमाचल प्रदेश, कर्नाटक, मेघालय और मिजोरम में कांग्रेस सत्ता में है. त्रिपुरा और नगालैंड को छोड़कर बाकी राज्यों में पार्टी और भाजपा के बीच सीधा मुकाबला होगा.
लांकि कई बड़े नेता दावा करते हैं कि सबसे पहले तो ध्यान गुजरात के चुनाव पर है जो इस साल के आखिर में होने हैं और वहां ''पंजाब मॉडल" काम नहीं भी आ सकता है. राज्य में पिछले साल हुए नगर निकायों के चुनाव इशारा करते हैं कि कांग्रेस को अच्छी-खासी तादाद में खोई जमीन दोबारा हासिल करने की दरकार है. राज्य के 16 जिलों की 123 नगरपालिका और जिला पंचायत सीटों पर जहां नवंबर में उपचुनाव हुए थे, कांग्रेस ने महज 16 सीटें जीती थीं. बाकी 107 सीटों पर भाजपा ने कब्जा किया था. पाटीदार समुदाय के आरक्षण आंदोलन और दलितों के खिलाफ अत्याचारों के मुद्दे पर तीखी आलोचनाओं का सामना कर रही भाजपा ने आनंदीबेन पटेल की जगह विजय रूपानी को मुख्यमंत्री बनाकर अधबीच सुधार करने की कोशिश की. उधर, कांग्रेस को अपने मुख्यमंत्री के चेहरे का ऐलान अभी करना है.
हिमाचल प्रदेश में इस साल के आखिर में होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले ही कांग्रेस के आगे दोहरी चुनौती मुंह बाए खड़ी हैः अप्रैल में भोरंज का उपचुनाव और मई में शिमला नगर निगम का चुनाव. राज्य से भाजपा के सांसद अनुराग ठाकुर दावा करते हैं, ''यूपी-उत्तराखंड का रुझान हिमाचल प्रदेश में भी जारी रहेगा और भाजपा 60 सीटें (68 में से) जीतेगी. भोरंज उपचुनाव कांग्रेस-मुक्त हिमाचल प्रदेश की शुरुआत होगा."
कर्नाटक में पांच साल सत्ता में रहने के बाद सिद्धरमैया की पहली अड़चन सत्ता-विरोधी रुझान होगी. उन्होंने 2013 में कांग्रेस की जीत की अगुआई की थी और पिछड़े वर्गों तथा अल्पसंख्यक वोटों को चतुराई से संभाला था. मगर यूपी के चुनाव नतीजे गवाह हैं कि अल्पसंख्यकों का तुष्टीकरण अब और काम नहीं भी आ सकता है. यही नहीं, पूर्व मुख्यमंत्री बी.एस. येदियुरप्पा की वापसी ने भाजपा में नई जान फूंक दी है, जिन्हें चुनाव जीतने के लिए शायद मोदी लहर या धार्मिक ध्रुवीकरण की दरकार नहीं है.
छत्तीसगढ़ में पिछले साल पूर्व मुख्यमंत्री अजित जोगी की विदाई की वजह से 2018 के चुनाव में पार्टी की संभावनाओं को धक्का लग सकता है. 2013 में कांग्रेस ने 39 सीटें जीती थीं और 40 फीसदी वोट हासिल किए थे. वहीं 41 फीसदी वोट हासिल करके भाजपा ने 49 सीटें जीती थीं. जोगी की पार्टी जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ और कांग्रेस दोनों मुख्य विपक्ष बनने की होड़ में हैं. बीजेपी विरोधी वोटों में किसी भी किस्म के बंटवारे का मतलब होगा कांग्रेस का और भी नीचे खिसक जाना.
मध्य प्रदेश में कांग्रेस की तीन बड़ी शख्सियतों—कमलनाथ, दिग्विजय सिंह और ज्योतिरादित्य सिंधिया—का ध्यान राष्ट्रीय राजनीति पर ज्यादा है. ऐसे में पार्टी व्यापम सरीखे विशाल घोटालों के बावजूद शिवराज सिंह चैहान को घेरने में नाकाम रही है. कमलनाथ और दिग्विजय सिंह ने वकालत की है कि सिंधिया को चौहान के खिलाफ मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार के तौर पर पेश करना चाहिए, पर केंद्रीय नेतृत्व की राय पता नहीं है. सिंधिया कहते हैं, ''मैं कभी किसी पद की गुजारिश नहीं करूंगा; मैं केवल तभी जवाब दूंगा जब मेरे नेता मुझे ऐसा करने का निर्देश देंगे."
2013 के मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव के नतीजे बताते हैं कि इस राज्य में चुनाव प्रबंधन करना कांग्रेस के लिए किस कदर अहम होगा. पार्टी ने 36 फीसदी वोट और राज्य के कुल 230 में से 58 निर्वाचन क्षेत्र जीते थे. 9 फीसदी ज्यादा वोटों के दम पर भाजपा ने 165 सीटों पर कब्जा कर लिया था. कांग्रेस के एक महासचिव कहते हैं, ''दो ध्रुवीय चुनाव में 9 फीसदी स्विंग का मतलब था 100 सीटें. थोड़ा-सा जोर लगाएं और एक मजबूत नेता हो तो हम मध्य प्रदेश आसानी से जीत सकते हैं, पर राहुल गांधी को इस गणित को समझना होगा."
क्षेत्रीय नेता को तैयार करने की अहमियत सबसे ज्यादा राजस्थान में जाहिर होती है, जहां कांग्रेस 39 वर्षीय सचिन पायलट की अगुआई में फिर से जी उठने के शुरुआती संकेत दिखा रही है. उन्हें फरवरी 2014 में राज्य इकाई का अध्यक्ष बनाया गया था. 2013 के चुनाव में कांग्रेस ने 200 में से महज 21 विधानसभा सीटें जीती थीं और अगले साल हुए लोकसभा चुनाव में उसका खाता तक नहीं खुल सका था. लेकिन पिछले साल हुए 37 स्थानीय निकायों के चुनाव में पार्टी ने बीजेपी की 19 सीटों के बरअक्स 14 सीटों पर कब्जा कर लिया. अगस्त 2016 में हुए नगर निकाय और पंचायत के उपचुनावों में उसने 24 में से 13 पंचायत समितियां, छह में चार जिला परिषदें और सात में से दो नगर पालिकाएं फतह कीं. पायलट को मुख्यमंत्री उम्मीदवार के तौर पर पेश किया जा रहा है, पर पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत कहते हैं कि मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार को लेकर अभी कोई फैसला नहीं किया गया है.
असम, अरुणाचल प्रदेश और मणिपुर में प्रभावशाली प्रदर्शन करने के बाद भाजपा का अगला निशाना मेघालय है. भाजपा की अगुआई में गैर-कांग्रेसी पार्टियों के समूह पूर्वोत्तर जनतांत्रिक गठबंधन के संयोजक हेमंत बिस्व सरमा दावा करते हैं, ''हम मेघालय पक्के तौर पर जीतेंगे." कांग्रेस के लिए पूर्वोत्तर में कोई अकेला सुरक्षित राज्य बचता है तो वह है मिजोरम, क्योंकि बीजेपी की यहां मौजूदगी नहीं है. मगर मणिपुर में भी पहली दफा बीजेपी के 21 विधायक जीते हैं.