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मध्य प्रदेश की सत्ता से पिछले 15 सालों से बाहर कांग्रेस इस बार कोई कसर नहीं छोड़ना चाहती, इसलिए वो गठबंधन के जरिये शिवराज सरकार के सामने अपना दम-खम ठोकने की तैयारी में है. बुन्देलखण्ड, ग्वालियर-चंबल संभाग और महाकौशल इलाके में बेहतर तरीके से अलग-अलग पार्टियों से गठजोड़ करने की दिशा में आगे बढ़ रही है. कैराना लोकसभा में विपक्ष की जीत से उत्साहित कांग्रेस मध्य प्रदेश में बड़े भाई की भूमिका में आगे बढ़ रही है.
बुन्देलखण्ड और ग्वालियर में पहली प्राथमिकता बसपा
बुन्देलखण्ड और ग्वालियर चंबल संभाग में कांग्रेस की पहली प्राथमिकता बसपा है. यूपी से सटे इस इलाके में सपा का भी प्रभाव है, लेकिन पार्टी का मानना है कि बसपा का प्रभाव सपा के मुकाबले ज्यादा है. बसपा और सपा के विधायक भी इस इलाके से जीतते आये हैं. ऐसे में कांग्रेस बसपा को 12 और सपा को 5 सीटें देने को तैयार है. जबकि, बसपा ने 30 और सपा ने 10 सीटों की मांग की है. सीटों को लेकर चर्चा जारी है और सूत्रों का मानना है कि बातचीत सही दिशा में चल रही है.
महाकौशल और विंध्य में गोंडवाना गणतंत्र पार्टी
इसके साथ ही कांग्रेस की महाकौशल और विंध्य इलाके में गोंड आदिवासियों पर भी निगाहें हैं. इस इलाके में गोंडवाना गणतंत्र पार्टी (गोंगपा) की भूमिका है, गोंड जनजाति 6 लोकसभा क्षेत्रों और करीब 60 विधानसभा सीटों पर प्रभाव डालती है. 2003 में गोंगपा के 3 विधायक जीते भी थे. कांग्रेस इस पार्टी के साथ गठजोड़ करके गोंड जनजाति के साथ ही आदिवासियों को अपने साथ जोड़ना चाहती है.
मध्य प्रदेश में कुल 23 फीसदी आदिवासी हैं, जिनमें करीब 7 फीसदी गोंड हैं. कांग्रेस गोंगपा को 3-5 सीटें देने के मूड में है. तीनों दलों के साथ गठजोड़ को अंजाम देने की जिम्मेदारी प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ के कंधों पर है, जो लगातार तीनों दलों से संपर्क में हैं और बातचीत को अंतिम रूप दे रहे हैं.
इस मुद्दे पर मध्य प्रदेश कांग्रेस की समन्वय समिति के मुखिया दिग्विजय सिंह का कहना है कि बीजेपी की गलत और तानाशाही नीतियों के खिलाफ सभी सेक्युलर ताकतों को जनता के हित में इकट्ठा होना चाहिए और मध्य प्रदेश में इसी के लिए प्रयासरत हैं.