
जैसे ही दिल्ली चुनाव नतीजों में तस्वीर साफ हुई, नीतीश कुमार तैयारियों में जुट गए. और शाम तक समर्थक विधायकों को दो हवाई जहाजों में भर कर दिल्ली पहुंच गए. बिहार की कुर्सी पर वापस कब्जा जमाने के लिए नीतीश ने दिल्ली में राजनीतिक मोर्चेबंदी तो कर ली थी लेकिन पटना हाई कोर्ट के आदेश ने उन्हें बड़ा झटका दे दिया. जेडीयू विधायक दल के नये नेता के रूप में उनका चुनाव असंवैधानिक बताकर. ऐसे में मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी का दावा मजबूत हो गया है. मांझी पहले से ही नीतीश को गुरिल्ला वॉर में उलझाकर लगातार नई नई चुनौतियां पेश कर रहे हैं. हाई कोर्ट के आदेश से उन्हें नया बल मिला है जबकि नीतीश के सारे दांव-पेच अब तक बेअसर साबित हो चुके हैं. नीतीश ने बिहार के गवर्नर केसरीनाथ त्रिपाठी की भूमिका पर ये कहते हुए सवाल उठाया कि उनकी तरफ से की जा रही देरी विधायकों के खरीद फरोख्त को बढ़ावा देगी. फिर उन्होंने राष्ट्रपति भवन का दरवाजा खटखटाने का फैसला किया. नीतीश को यकीन था कि राष्ट्रपति से मुलाकात के बाद उन्हें मांझी से मुक्ति और कम से कम सात महीने के लिए बिहार का राज-पाठ फिर से हासिल हो जाएगा. बिहार में इसी साल अक्टूबर-नवंबर में विधान सभा के लिए चुनाव होने हैं.
क्या है नीतीश के पक्ष में?
नीतीश कुमार कैंप में 130 विधायक बताए जा रहे हैं. इनमें जेडीयू के 99, आरजेडी के 24, कांग्रेस के 5, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के एक और एक निर्दलीय विधायक शामिल हैं. 243 सदस्यों वाली बिहार विधानसभा में इस वक्त 10 सीटें खाली हैं. ऐसे में बहुमत साबित करने के लिए 117 विधायकों की जरूरत है.
नीतीश के साथ जेडीयू अध्यक्ष शरद यादव दीवार बन कर खड़े हैं जिन्होंने विधायकों की बैठक बुलाकर नीतीश को विधायक दल का नया नेता बनवाया और मांझी को पार्टी से बर्खास्त कर बाहर का रास्ता दिखा दिया. स्पीकर उदय नारायण चौधरी ने नीतीश को विधायक दल के नये नेता के तौर पर पहले ही मान्यता दे रखी है. हालांकि विधानसभा में पूर्व मंत्री विजय चौधरी जेडीयू के नेता होंगे जिन्हें स्पीकर की मान्यता भी मिल गई है. नीतीश चूंकि विधान परिषद सदस्य हैं इसलिए उन्हें विधान सभा में नेता के तौर पर मान्यता नहीं दी जा सकती है. स्पीकर ने विधानमंडल दल के नेता की मान्यता दी है. अपनी पार्टी के अलावा नीतीश को राष्ट्रीय जनता दल अध्यक्ष लालू प्रसाद और समाजवादी पार्टी अध्यक्ष मुलायम सिंह का भी मजबूत सपोर्ट मिल रहा है.
क्या है नीतीश के खिलाफ?
जेडीयू ने भले ही जीतन राम मांझी को बाहर का रास्ता दिखा दिया था, पर बतौर मुख्यमंत्री वो लगातार हर संभव कदम उठा रहे थे. मांझी ने इस दौरान ऐसे फैसले लिये जो उन्हें सत्ता में बनाए रखने में मददगार साबित हो सकते हैं. कैबिनेट की ताजा बैठक में जिन 23 प्रस्तावों को मंजूरी दी गई वे मांझी के एजेंडे को आगे बढ़ाएंगे. इनमें सबसे अहम रहा निर्माण विभाग की ठेकेदारी में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति को आरक्षण देने की मंजूरी. सरकारी नौकरियों में आर्थिक रूप से कमजोर सवर्णों को आरक्षण देने के मामले में अध्ययन के लिए तीन सदस्यीय विशेषज्ञ समिति के गठन का फैसला भी मांझी ने काफी सोच समझ कर लिया होगा.
इस बीच मांझी समर्थक निर्दलीय विधायक पवन कुमार जायसवाल ने स्पीकर उदय नारायण चौधरी के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव का नोटिस दिया है. जायसवाल का कहना है कि नीतीश खेमे के होने के कारण चौधरी सदन की कार्यवाही ठीक से नहीं होने देंगे. स्पीकर को घेरने के क्रम में मांझी समर्थकों ने हत्या के एक मामले में उनकी गिरफ्तारी तक की मांग कर डाली है.
अब बचा एक मात्र रास्ता
सदन में बहुमत साबित करने का मौका ही वो ऑप्शन है जिस पर अब नीतीश और मांझी दोनों की उम्मीदें टिकी हुई हैं. नीतीश कुमार ने स्पीकर को 130 विधायकों का समर्थन पत्र दिखाकर नये नेता के रूप में मान्यता ले ली थी. सोमवार को नीतीश 130 विधायकों के साथ पैदल मार्च करते हुए राजभवन पहुंचे थे जहां उन्होंने राज्यपाल केशरीनाथ त्रिपाठी से मिलकर सरकार बनाने का दावा पेश किया.
बिहार की कुर्सी की वापसी के संघर्ष में नीतीश सारे सियासी कदम तो उठा ही रहे हैं, दिल्ली में मेहमान बने बिहार के साथियों के आवभगत में कोई कसर बाकी न रह जाए इसलिए खुद इंतजामों की निगरानी कर रहे हैं. जंग में एक छोटी सी चूक भी शिकस्त की वजह बन जाती है. अपनी तरफ से नीतीश ने कोई कसर बाकी नहीं रखी जिससे बाजी हाथ से निकल जाए – लेकिन पटना हाई कोर्ट की ओर से उन्हें काफी जोर का झटका लगा है.