Advertisement

धर्मांतरण बनाम घर वापसी

संघ परिवार के लिए पुनः धर्म परिवर्तन कोई नया विचार नहीं. लेकिन हिंदी प्रदेशों की हवा में असहजता का अर्थ है कि भगवा ब्रिगेड कुछ सोची-समझी नीति पर काम कर रहा है.

रवीश तिवारी
  • ,
  • 23 दिसंबर 2014,
  • अपडेटेड 2:34 PM IST

पश्चिमी उत्तर प्रदेश के ब्रज क्षेत्र में क्रिसमस का दिन आने से काफी पहले से ही आरएसएस के प्रचारक राजेश्वर सिंह काफी व्यस्त थे. वे व्यस्त भी थे और वांछित भी. वास्तव में, इतने व्यस्त और इतने वांछित थे कि इस खास दिन की तैयारी में उन्हें वस्तुतरू ‘भूमिगत’ ही होना पड़ गया था. 25 दिसंबर से हफ्ते भर पहले, आरएसएस ने राजेश्वर सिंह के इस भारी-भरकम काम पर पूर्ण विराम लगा दिया. काम थाः धर्मांतरण करके इस्लाम और ईसाइयत अपना चुके कुछ चुनिंदा परिवारों को वापस हिंदू बनाना. जब नरेंद्र मोदी सरकार को सभी धड़ों से आलोचना का सामना करना पड़ रहा था, तो संघ ने भी, कम-से-कम फिलहाल के लिए, राजेश्वर पर अंकुश लगा दिया.

राजेश्वर को पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मथुरा, एटा, मैनपुरी, आगरा, फिरोजाबाद और हाथरस क्षेत्र में लोगों का पुनः धर्म परिवर्तन करने की जिम्मेदारी सौंपी गई थी, और वे 1996 में इस क्षेत्र में इस तरह का पहला आयोजन करवा चुके हैं. वास्तव में, फिरोजाबाद जिले के पदम कस्बे में 2002 में आयोजित पुनः धर्म परिवर्तन की एक घटना में रामलाल भी मौजूद थे, जो वर्तमान में बीजेपी के महासचिव (संगठन) हैं. फिरोजाबाद की जसराना तहसील के निवासी राजेश यादव, जो राजेश्वर के संयोजकों में से एक थे, और युवा उदय प्रताप सिंह, जो उस समय बीजेपी की युवा शाखा (भारतीय जनता युवा मोर्चा) के फिरोजाबाद क्षेत्र के महासचिव थे, भी इस घटना में शामिल हुए थे.

दस साल बाद, अब 40 वर्ष के उदय प्रताप पद के लिहाज से आगे बढ़ चुके हैं, और फिरोजाबाद जिले के बीजेपी महासचिव हैं. वे 2013 में आयोजित पुनः धर्म परिवर्तन अभियान के संयोजक थे, जिसमें 27 परिवारों का दोबारा धर्म परिवर्तन कराया गया था.

संघ, और धर्म जागरण समिति जैसे जाहिर तौर पर इसके हाशिए पर पड़े लेकिन मजबूत संगठनों के पास इस अभियान के लिए एक शब्द हैः ‘घर वापसी’ या दूसरे शब्दों में अपनों का लौट आना.

अंदरूनी सूत्रों के मुताबिक, जब से पुनः धर्म परिवर्तन का मुद्दा मोदी सरकार के लिए राजनैतिक परेशानी का सबब बना है, तब से आरएसएस भले ही खामोशी साधे हो, लेकिन ‘घर वापसी’ का नारा कोई ताजा गढ़ा हुआ नहीं है. उत्तर प्रदेश के इस हिस्से में तो कतई नहीं है और निश्चित रूप से कई अन्य राज्यों में भी नहीं.

इसी तरह, इन घटनाओं के चरित्र में भी ‘हाशिए पर पड़े होने’ जैसा ज्यादा कुछ नहीं है. उदाहरण के लिए इसे देखिएः राजेश्वर सिंह पिछले साल क्रिसमस के आसपास अपने तहत सौंपे गए 10 जिलों में पुनः धर्म परिवर्तन की 10 घटनाओं का आयोजन कर चुके हैं और उन 10  में से छह (एटा, मैनपुरी, कासगंज, हाथरस, बदायूं और बरेली में) कार्यक्रम आरएसएस से संबद्ध स्कूलों—सरस्वती विद्या मंदिर या सरस्वती शिशु मंदिर के परिसरों में आयोजित किए गए. अलीगढ़ से बीजेपी सांसद सतीश गौतम पुनः धर्म परिवर्तन कार्यक्रमों के साथ अपने जुड़ाव के बारे में कोई आना-कानी नहीं करते. उन्होंने इंडिया टुडे  को बताया, “पिछली बार मैं वहां मौजूद था, और मैं इस बार भी अलीगढ़ में मौजूद रहूंगा. आखिरकार, मैं स्थानीय सांसद हूं.” हालांकि यह कार्यक्रम अब रद्द कर दिया गया है.

वास्तव में, अगर आप देश के राजनैतिक मानचित्र पर मध्य से होते हुए बाएं से दाएं एक रेखा खींचें, तो जिसे आप मोटे तौर पर ‘मध्य भारत’ कह सकते हैं, उसमें गुजरात, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखंड और ओडिसा शामिल हैं. यहां घर वापसी संघ परिवार के मन के बेहद नजदीक की बात रही है. संघ परिवार और उससे संबद्ध वनवासी कल्याण आश्रम जैसे संगठन हमेशा से ईसाई मिशनरियों के कथित धर्मांतरण कराने के खिलाफ रहे हैं, लेकिन 1996 में धर्म जागरण समिति का गठन करके आरएसएस ने घर वापसी का कार्य सुव्यवस्थित ढंग से अपने हाथों में ले लिया.

हालांकि दिवंगत बीजेपी नेता दिलीप सिंह जूदेव ने वनवासी कल्याण आश्रम के जरिए अपने ‘घर वापसी’ अभियानों से छत्तीसगढ़ और झारखंड के आदिवासी क्षेत्रों में बीजेपी और आरएसएस की जड़ें और गहरी कर दीं, ओडिसा के जनजातीय क्षेत्रों में दशकों से ज्यादा समय से चल रहे पुनः धर्म परिवर्तन के प्रयास कालाहांडी में एक दुखती रग की तरह हैं, जहां 2008 में बजरंग दल के कथित पुनः धर्म परिवर्तन की कोशिशों पर हिंसा भड़क उठी थी.
छत्तीसगढ़ और झारखंड की ही तरह गुजरात में, विशेष रूप से राज्य के दक्षिणी भाग में स्थित डांग जिले में, वनवासी कल्याण आश्रम और हिंदू जागरण समिति पर बड़े पैमाने पर पुनः धर्म परिवर्तन की घटनाओं के आयोजन का आरोप लगता रहा है, इसमें शबरी कुंभ नाम के आयोजन भी शामिल हैं.
और इस तरह के पुनः धर्म परिवर्तन को अंजाम देने के लिए, संघ राजेश्वर सिंह जैसे प्रचारकों का लंबे समय से समर्थन करता आ रहा है. उन्होंने अपनी शुरुआत अलीगढ़ के खैर में तहसील प्रचारक के तौर पर की थी. वहां उन्होंने आरएसएस के सह सरकार्यवाह कृष्ण गोपाल के सान्निध्य में काम किया, जो उस समय अलीगढ़ में आरएसएस के जिला प्रचारक थे. अब मोदी सरकार के कामकाज संभालने के बाद गोपाल आरएसएस की ओर से पार्टी के मामलों की देख-रेख करते हैं. एक-एक सीढ़ी बढ़ते हुए, राजेश्वर सिंह मैनपुरी में और उसके बाद शाहजहांपुर में जिला प्रचारक रहे,  जहां उन्होंने स्वामी चिन्मयानंद के साथ काम किया. स्वामी चिन्मयानंद वाजपेयी सरकार में राज्यमंत्री रहे हैं, जिन्होंने साध्वी निरंजन ज्योति की बहुनिंदित ‘हरामजादों’ टिप्पणी का हाल ही में समर्थन किया था.

अंदरूनी सूत्र कहते हैं कि अब जब मोदी सरकार सत्ता में है, संघ परिवार ने उन लोगों का पुनः धर्म परिवर्तन कराने के प्रयास नए सिरे से शुरू कर दिए हैं, जो ‘भटक गए’ थे. इसी वजह से धर्म जागरण समिति के राजेश्वर सिंह जैसे दर्जनों पदाधिकारी नवंबर में नागपुर में एकत्रित हुए और आरएसएस मुख्यालय में उनका तीन दिवसीय प्रशिक्षण सत्र हुआ. इस सत्र का विषय यह सुनिश्चित करना था कि ‘घर वापसी’ के अभियानों को ‘अधिक तेजी से’ आयोजित किया जाए, ताकि वे ‘व्यापक और ज्यादा से ज्यादा नतीजे देने वाले’ हों. इस वर्कशॉप में आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत और कृष्ण गोपाल ने भाग लिया था.

मोदी सरकार के लिए समस्या तब शुरू हुई जब राजेश्वर सिंह जैसे आरएसएस के चेले ज्यादा शक्तिशाली और अति उत्साही हो गए. एक वरिष्ठ आरएसएस प्रचारक ने टिप्पणी की कि हालांकि राजेश्वर सिंह बिना शोर-शराबे के ‘घर वापसी’ अभियान कई वर्ष से आयोजित करते आ रहे थे, उनके “इसे प्रचारित करने के अति उत्साह ने विवाद पैदा कर दिया.” प्रचारक ने यह भी कहा कि इस तरह के प्रयास “राजनैतिक विवाद पैदा किए बिना, और जनता की निगाह में आए बिना” जारी रखे जाने चाहिए.

‘घर वापसी’ कार्यक्रम को लेकर संसद के दोनों सदनों में कई दिनों तक हंगामा होने के अलावा, सरकार एक ऐसे मुद्दे पर शर्मसार हुई है, जो अतीत में देश भर में कभी-कभार ही चिंता का विषय बना है, वह भी तब जब ऐसी घटनाएं हिंसक हुई हैं. एक शीर्ष सरकारी पदाधिकारी ने नाम न बताने की शर्त पर कहा, “कांग्रेस के पास सरकार को धूल चटाने के लिए शायद ही कोई मुद्दा हो. लेकिन इन बड़बोले लोगों ने विपक्ष को एक साथ आने और सरकार को घेरने का मौका दे दिया है.”

(आगरा में मुसलमानों के धर्म परिवर्तन समारोह में हिंदू संगठन के सदस्य)

एक अन्य वरिष्ठ सरकारी पदाधिकारी ने कहा, “इन लोगों को लगता है कि उनके उत्साह से नागपुर (आरएसएस मुख्यालय) खुश होगा. लेकिन सच यह है कि नागपुर भी इस व्यवहार से दुखी है.” एक अधिकारी ने कहा, “हमें ऐसे तत्वों को पहचान निकालना होगा और उन्हें इस तरह के दुस्साहस करने के खिलाफ चेतावनी देनी होगी. अगर जरूरत पड़ी, तो हम उन पर लगाम लगाने के लिए नागपुर की भी मदद ले सकते हैं.” ये ‘हाशिए पर पड़े लोग्य मोदी के विकास के वादे से राष्ट्रीय ध्यान बांट रहे हैं.

जब सरकार की फजीहत हो रही है, तब बताया जाता है कि आरएसएस के सह सरकार्यवाह कृष्ण गोपाल और दत्तात्रेय होसबोले ने ब्रज के प्रांत प्रचारक को बुलाकर राजेश्वर को चेतावनी देने को कहा, जिन्हें, सूत्रों के अनुसार, आगरा में आरएसएस कार्यालय माधव भवन से भी अपनी जगह खाली करने के लिए कहा गया है.

जहां आरएसएस ने पुनः धर्म परिवर्तन विवाद को एक स्थानीय घटना के रूप में छोड़ दिया है, वहीं केंद्र सरकार ने शानदार जवाबी हमले की कोशिश की. संसदीय कार्य मंत्री एम. वेंकैया नायडू ने पहले तो विपक्षी दलों की इस बात के लिए कड़ी निंदा की कि वे कथित जबरन पुनरू धर्म परिवर्तन पर हंगामा कर रहे हैं, जबकि वे अन्य धर्मों के धर्मांतरण कराए जाने पर शांत बने रहे. बाद में उन्होंने विपक्ष से एक धर्म परिवर्तन विरोधी कानून का समर्थन करने की मांग करके बाजी पलटने की कोशिश की.

नायडू ने लोकसभा में कहा, “सरकार धर्म परिवर्तन पर इस बहस का स्वागत करती है (लेकिन) यह एक सतत समस्या है.” संघ परिवार में कई लोग महसूस करते हैं कि इस मुद्दे पर हमेशा एक विषम ढंग से चर्चा की गई है, जिसमें ईसाई मिशनरियों के धर्मांतरण पर कभी आपत्ति नहीं उठाई गई. उनका आरोप है कि यह सरासर ‘वोट-बैंक’ राजनीति है. वे यह भी इशारा करते हैं कि पहले धर्मांतरण विरोधी कानून संघ नहीं, बल्कि 1960 के दशक में ओडिसा और मध्य प्रदेश में कांग्रेस सरकारें लेकर आई थीं.

इस बीच आरएसएस के अंदरूनी सूत्र इस बात पर जोर देना चाहते हैं कि स्वैच्छिक पुनः धर्म परिवर्तनों को वर्जित नहीं किया जाना चाहिए, और केवल ‘बलपूर्वक, लालच या धोखाधड़ी’ के माध्यम से होने वाले धर्मांतरण को प्रतिबंधित किया जाना चाहिए.

आरएसएस के राष्ट्रीय मीडिया प्रमुख मनमोहन वैद्य ने इंडिया टुडे से कहा, “घर वापसी धर्मांतरण से अलग है. अगर लोग अपनी जड़ों के साथ दोबारा जुडऩा चाहते हैं, तो हिंदू समाज को उनका स्वागत करना चाहिए.”
ऐसा लगता है कि ऐसी घर वापसी फिर किसी दिन ही हो सकेगी.

Read more!
Advertisement

RECOMMENDED

Advertisement