Advertisement

किसी को जल्दबाजी में और गुपचुप तरीके से नहीं दी जा सकती फांसी: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि दोषी ठहराए गए लोगों की भी गरिमा होती है और उन्हें मनमाने ढंग से, गुपचुप तरीके से या जल्दबाजी में फांसी नहीं दी जा सकती. शीर्ष कोर्ट ने कहा है कि उन्हें हर तरह की कानूनी मदद और परिवार से मिलने की इजाजत दी जानी चाहिए.

Supreme Court Supreme Court
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 28 मई 2015,
  • अपडेटेड 1:49 PM IST

सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि दोषी ठहराए गए लोगों की भी गरिमा होती है और उन्हें मनमाने ढंग से, गुपचुप तरीके से या जल्दबाजी में फांसी नहीं दी जा सकती. शीर्ष कोर्ट ने कहा है कि उन्हें हर तरह की कानूनी मदद और परिवार से मिलने की इजाजत दी जानी चाहिए.

अंग्रेजी अखबार 'टाइम्स ऑफ इंडिया' ने यह खबर दी है. उत्तर प्रदेश में 2008 में परिवार के सात लोगों की हत्या की दोषी एक महिला और उसके प्रेमी की फांसी पर रोक लगाते हुए जस्टिस एके सीकरी और यूयू ललित ने यह टिप्पणी की. उन्होंने कहा, 'किसी को फांसी की सजा सुनाए जाने के साथ ही अनुच्छेद 21 के तहत प्रदत्त जीवन का अधिकार समाप्त नहीं हो जाता है. फांसी के सजा के मामले में भी दोषियों के जीवन की गरिमा का ख्याल रखा जाना चाहिए.'

Advertisement

उत्तर प्रदेश के इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा, 'सेशंस जज ने दोनों के खिलाफ जल्दबाजी में फैसला सुनाया और डेथ वारंट पर साइन किए. जजों ने आरोपियों को कानूनी उपचार का पर्याप्त समय नहीं दिया. इन सब तथ्यों को ध्यान में रखते हुए कोर्ट ने कहा कि दोषियों को पुनर्विचार याचिका और दया याचिका दाखिल करने का समय मिलना चाहिए.'

सुप्रीम कोर्ट की यह टिप्पणी अफजल गुरू की फांसी के संदर्भ में ज्यादा अहम हो जाती है. गौरतलब है कि संसद पर हमले के दोषी अफजल गुरु को 2013 में गुपचुप तरीके से फांसी दे दी गई थी. फांसी से पहले उसके परिवार को भी सूचित नहीं किया गया था. अफजल को फांसी दिए जाने के तौर-तरीकों पर मानवाधिकार कार्यकर्ता ने सवाल उठाए थे.

 

Read more!
Advertisement

RECOMMENDED

Advertisement