
भारत में अनलॉक-1 के बीच तेल कंपनियों के द्वारा पेट्रोल और डीजल के दामों में बढ़त का सिलसिला लगातार जारी है. शुक्रवार को भी पेट्रोल के दाम में 57 पैसे प्रति लीटर और डीजल के दाम में 59 पैसे प्रति लीटर की बढ़ोतरी की गई है. इस तरह पिछले 6 दिनों के अंदर पेट्रोल के दाम 3.31 रुपये प्रति लीटर और डीजल के दाम 3.42 रुपये प्रति लीटर की बढ़त हो चुकी है. आइए जानते हैं कि इसकी वजह क्या है.
शुक्रवार को हुई बढ़ोतरी के बाद देश की राजधानी दिल्ली में पेट्रोल की कीमत 74.57 रुपये प्रति लीटर और डीजल की कीमत 72.81 रुपये प्रति लीटर हो गई है.
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असल में कई देशों में लॉकडाउन खुलते ही कच्चे तेल की कीमतें मजबूत होने लगी हैं और डॉलर के मुकाबले रुपये में गिरावट का सिलसिला जारी है. इसकी वजह है कि भारत में पेट्रोलियम कंपनियां अपने को नुकसान से बचाते हुए इसका बोझ ग्राहकों पर डालने लगी हैं. जानकारों का मानना है कि अगले महीनों में पेट्रोल और डीजल के दाम में और बढ़त हो सकती है, क्योंकि तेल कंपनियां अपने नुकसान की भरपाई करने की कोशिश करेंगी. लॉकडाउन के बीच ट्रांसपोर्टेशन पूरी तरह से ठप हो जाने की वजह से पेट्रोल-डीजल की बिक्री लगभग ठप रही और इस वजह से तेल कंपनियों को काफी नुकसान हुआ है.
गौरतलब है कि पेट्रोल-डीजल की कीमत तय करने में कच्चे तेल की अंतरराष्ट्रीय कीमतें और रुपया-डॉलर विनिमय रेट काफी महत्वपूर्ण होते हैं. हाल में कच्चे तेल की बढ़ती कीमतों और डॉलर के मुकाबले रुपये में गिरावट आने की वजह से तेल कंपनियों ने लॉकडाउन के खुलते ही पेट्रोल-डीजल के रेट बढ़ाने शुरू कर दिए.
गिरावट का फायदा ग्राहकों को नहीं
हालांकि तेल कंपनियों पर लगातार यह आरोप लगता रहा है कि जब कच्चे तेल की कीमतों में भारी गिरावट आई तो उन्होंने इसका फायदा ग्राहकों तक नहीं पहुंचाया, जबकि कोरोना संकट और सऊदी अरब-रूस के बीच होड़ की वजह से कच्चे तेल की कीमतों में ऐतिहासिक गिरावटें आईं थी.
वायदा बाजार में तो कच्चे तेल का सौदा नेगेटिव में चला गया था. यही नहीं, लॉकडाउन के बीच सरकार ने भी टैक्स में भारी बढ़त करते हुए इस दौरान पैसा बनाने की कोशिश की और पेट्रोल-डीजल की कीमतों को नीचे नहीं गिरने दिया. तेल कंपनियां अगर दाम घटाने को तैयार भी होती हैं तो सरकारें टैक्स बढ़ाकर उसको बराबर कर देती हैं.
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एक महीने में 50 फीसदी बढ़ गई लागत
पिछले कुछ दिनों में अमेरिकी क्रूड बढ़कर 35 डॉलर प्रति बैरल से ऊपर और ब्रेंट क्रूड 38 डॉलर से ऊपर चला गया. हालांकि कोरोना संकट बढ़ने की आशंका की वजह से पिछले दो दिनों में इनमें कुछ नरमी देखी गई है. इसके पहले अमेरिकी क्रूड अप्रैल में तो 13 डॉलर प्रति बैरल के करीब पहुंच गया था. इसी तरह अप्रैल महीने में ब्रेंट क्रूड की कीमत 20 डॉलर के आसपास पहुंच गई थी.
शुक्रवार को अमेरिकी क्रूड 1.87 फीसदी टूटकर 35.66 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंचा और ब्रेंट क्रूड 1.43 फीसदी घटकर 38 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंच गया.
इंडियन क्रूड बॉस्केट यानी भारत के लिए कच्चे तेल की जो लागत होती है वह अप्रैल के 19.90 डॉलर प्रति बैरल के मुकाबले मई में 30.60 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंच गया. यानी एक महीने में इसमें करीब 50 फीसदी की बढ़त हो गई.
रुपया लगातार गिर रहा है
डॉलर के मुकाबले रुपये में लगातार गिरावट आ रही है. डॉलर के मुकाबले रुपया 76 के करीब पहुंच गया है, जबकि मई में यह 75 के करीब था. रुपये में गिरावट से तेल कंपनियों की चिंता बढ़ी है, क्योंकि इसका मतलब यह है कि अब उन्हें कच्चा तेल खरीदने के लिए ज्यादा रकम खर्च करनी पड़ेगी. इसलिए तेल कंपनियां लगातार इसका बोझ ग्राहकों पर डाल रही हैं.
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हालांकि आगे चलकर कच्चे तेल की कीमतों में तेजी आएगी या नरमी बनी रहेगी, इसके लेकर कुछ निश्चित नहीं कहा जा सकता. यह काफी हद तक कोरोना के हालात पर भी निर्भर करेगा. दुनिया की सभी अर्थव्यवस्थाओं में काम बढ़ेगा, सभी देश खुल जाएंगे तो कच्चे तेल की मांग बढ़ेगी और इसमें मजबूती आ सकती है.
कच्चे तेल की कीमतें इसी तरह बढ़ती रहीं और रुपये में गिरावट आती गई तो पेट्रोल-डीजल की कीमतों में और बढ़त हो सकती है.