
गंगा नदी के पुनरुद्धार और स्वच्छता के लिए काम करने वाली संसथा नेशनल मिशन फॉर क्लीन गंगा (एनएमसीजी) ने इंडियन काउंसिल फॉर मेडिकल रिसर्च को गंगा को तीन प्रस्ताव भेजे थे. यह प्रस्ताव दरअसल गंगा जल को कोरोना इलाज में इस्तेमाल करने के लिए आइसीएमआर द्वारा क्लीनिकल स्टडीज कराने के लिए भेजे गए थे. लेकिन आइसीएमआर में आने वाले शोध प्रस्तवों का मूल्यांकन करने वाली कमेटी ने क्लीनिक स्टडी करने से यह कहते हुए मना कर दिया की फिलहाल अभी तक गंगा जल को लेकर जो आंकड़े और तथ्य मौजूद हैं वह क्लीनिक स्टडीज करने के लिए नाकाफी हैं.
आइसीएमआर के डॉ. रजनीकांत के मुताबिक हमारे पास 28 अप्रैल को ही प्रस्ताव आ गए थे. शोध प्रस्तावों का मूल्यांकन करने के लिए अलग से एक कमेटी है. डॉ. वाइ.के गुप्ता इस कमेटी के अध्यक्ष हैं. कमेटी ने मूल्यांकन के बाद पाया कि क्लीनिक स्टडीज के चरण तक पहुंचने के लिए नेशनल मिशन फॉर क्लीन गंगा (NMCG)के पास अभी पार्यप्त आंकड़े और तथ्य मौजूद नहीं.
कमेटी ने जल शक्ति मंत्रालय की इस संस्था से और वैज्ञानिक प्रमाण और आंकड़े जुटाने के लिए कहा है. अगर एनएमसीजी पर्याप्त वैज्ञानिक आंकड़ों और तथ्यों के साथ दोबारा आती है तो प्रस्तावों का मूल्यांकन फिर किया जाएगा. उनका कहना है कि कोरोना क्राइसिस की वजह से संस्था कई और तरह के कामों में व्यस्त है. ऐसे में बिना पर्याप्त वैज्ञानिक आधार और आंकड़ों के किसी प्रस्ताव का क्लीनिक ट्रायल शुरू करने का मतलब होगा पहले इस महामारी से निपटने के लिए अलग-अलग मोर्चों पर तैनात स्टाफ की कटौती करना.
क्या थे प्रस्ताव ?
उधर एनएमसीजी के अधिकारियों का कहना है कि प्रस्तावों को नेशनल एनवायरनमेंटल इंजीनियरिंग रिसर्च इंस्टीट्यूट (NEERI)के वैज्ञानिकों के साथ चर्चा करने के बाद ही आइसीएमआर को भेजा गया है. नीरी ने ''असेसमेंट ऑफ वॉटर क्वालिटी ऐंड सेडिमेंट टू अंडरस्टैंड द स्पेशल प्रॉपर्टीज ऑफ रीवर गंगा'' नाम से एक स्टडी भी की थी.
इसके नतीजे बेहद सकारात्मक थे. इस अध्ययन के मुताबिक गंगा जल में बैक्टीरियोफेज एक बड़ी तादाद में पाए जाते हैं. यह बैक्टीरियोफेज दूसरे कई माइक्रोब्स से लड़ने की क्षमता रखते हैं. हालांकि नीरी के वैज्ञानिकों ने यह भी कहा था कि अभी तक उनके पास गंगा नदी में मौजूद एंटी वायरस गुणों के होने के पुख्ता प्रमाण नहीं है. इस पर और शोध की जरूरत है. इसीलिए हमने इसे आइसीएमआर के पास भेजा है.
-दूसरा प्रस्ताव भी कुछ इसी तरह का एनएमसीजी को मिला था. इसके मुताबिक गंगा जल में निंजा वायरस होता है. इसे वैज्ञानिक वैक्टीरियोफेज कहते हैं.
-एक और प्रस्ताव में गंगा जल में प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने की क्षमता की बात कही गई है. प्रतिरोधक क्षमता के बढ़ने से वायरस से लड़ने में व्यक्ति को मदद मिलती है.
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