
हालांकि कोरोना वायरस के प्रसार को रोकने के लिए किया गया लॉकडाउन मार्च के अंत में अपने शुरुआती दिनों में ही था, लेकिन देश में आने वाले आप्रवासी भारतीयों से किस तरह निबटना है, इसका एक प्रोटोकॉल तैयार था. इसलिए जब जयपुर के एक शहरी प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र के वरिष्ठ स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ. अब्दुल रऊफ को एक साथी डॉक्टर ने बताया कि उन्होंने बांग्लादेश से लौटे अपने दो बेटों और उनके 10 दोस्तों को शहर में एक रिश्तेदार के घर पर ठहराया है, तो वे चौंक गए. रऊफ बताते हैं, ''मैंने उन्हें अधिकारियों को सूचित करने और अपने बेटों तथा संपर्क में आए रिश्तेदारों को क्वारंटीन करने को राजी किया.'' फिर रऊफ को ओमान से लौटकर जयपुर के भीड़भाड़ वाले रामगंज में रह रहे 52 वर्षीय मुबारक अली के बारे में जानकारी मिली.
अली में कोविड-19 के लक्षण दिख रहे थे लेकिन उनके परिवार के दो डॉक्टरों ने उन्हें क्लीन चिट दे दी थी. बमुश्किल जांच करवाने पर वे संक्रमित निकले. इस प्रकार संक्रमितों की खोज शुरू हुई. अली के दोस्त हनीफ के 28 परिजनों में से 20 संक्रमित निकले. अली कई दफा पास की मस्जिद में गए थे और दोस्तों, रिश्तेदारों के घर जाकर भी मुलाकात की थी.
रऊफ और पुलिस की टीम लगभग हर उस व्यक्ति से मिली जिससे अगले कुछ दिनों में वायरस फैलने का अंदेशा था. क्वारंटीन में रखे गए हजारों लोगों में से 700 संक्रमित निकले. राजस्थान में इसी बीच संक्रमण की एक और शृंखला शुरू हो गई. तब्लीगी जमात की छह महिला सदस्य रामगंज के घरों में और जमात में शामिल कई पुरुष मस्जिदों में रह रहे थे और इस तरह वे बहुतों को संक्रमित करते गए.
रामगंज के सम्मानित चिकित्सक डॉ. रऊफ 4,00,000 की आबादी के लिए एक बड़े रहनुमा साबित हुए हैं. वे कहते हैं, ''मैं ऐसे लोगों के साथ काम कर रहा हूं जिन्हें पता ही नहीं कि क्वारंटीन क्या है. वे नहीं समझते कि बिना लक्षण वाले एक व्यक्ति या परिवार को 14-28 दिनों के लिए एकांत में क्यों रहना होगा. वे अपने दरवाजे पर ताले लगा दे रहे हैं, जबकि वे अभी भी अपने घरों में रह रहे हैं और यहां तक कि वे कितने लोगों से मिले या किस कार्यक्रम में गए जैसी बुनियादी जानकारी साझा करने से भी इनकार कर रहे हैं.''
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