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जम्मू-कश्मीर में पाकिस्तानी आतंकवाद से निपटने के लिए सुरक्षाबलों की नई रणनीति

कश्मीर-पुलिस के सुरक्षा बलों ने बुधवार को एक बड़ी सफलता हासिल की जब उन्होंने दक्षिण कश्मीर के शोपियां जिले के मेलहोरा में अंसार गजवत उल हिंद (एजीएच) के बुरहान कोका और उसके दो सहयोगियों को मार गिराया.

आतंकवाद से निपटने के लिए नई रणनीति आतंकवाद से निपटने के लिए नई रणनीति
कमलजीत संधू
  • श्रीनगर,
  • 01 मई 2020,
  • अपडेटेड 12:29 AM IST

  • सिक्योरिटी ग्रिड में नया स्टैंडर्ड ऑपरेटिंग प्रोसीजर
  • रणनीति को अब तक नहीं किया गया सार्वजनिक

कोरोना महामारी के बीच जम्मू-कश्मीर में पाकिस्तान समर्थित आतंकवाद से निपटने के लिए नई रणनीति बनाते हुए सिक्योरिटी ग्रिड में नया स्टैंडर्ड ऑपरेटिंग प्रोसीजर (SOP) लाया गया है. हालांकि नई रणनीति को अब तक सार्वजनिक नहीं किया गया है, लेकिन हाल के दिनों में जमीनी एक्शन से लगता है कि इसे लागू कर दिया गया है.

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1. आतंकवादियों का महिमामंडन बंद

एक रणनीतिक कदम यह है कि आतंकवादियों की भर्ती रोकने के उनके संगठनों के नाम का प्रचार न किया जाए और उनकी पहचान जाहिर न की जाए. जम्मू कश्मीर पुलिस ने भी पेंच कस दिए हैं कि स्थानीय स्तर पर सूचना लीक न हो. सेना और सीआरपीएफ के सुरक्षा बल भी यह रणनीति अपना रहे हैं.

कश्मीर-पुलिस के सुरक्षा बलों ने बुधवार को एक बड़ी सफलता हासिल की जब उन्होंने दक्षिण कश्मीर के शोपियां जिले के मेलहोरा में अंसार गजवत उल हिंद (एजीएच) के बुरहान कोका और उसके दो सहयोगियों को मार गिराया. प्रेस कॉन्फ्रेंस करके 'जीत' या 'सफलता' का दावा करने के सामान्य अभ्यास के बजाय जम्मू-कश्मीर पुलिस ने एक बयान जारी किया जिसमें सिर्फ बुनियादी जानकारी साझा की गई कि "मुठभेड़ में 3 आतंकवादी मारे गए, जिनकी पहचान का पता लगाया जा रहा है.”

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जम्मू-कश्मीर पुलिस के एक वरिष्ठ अधिकारी ने इंडिया टुडे को बताया, "हमारे सामने आतंकी संगठनों में नये आतंकवादियों की भर्ती रोकने की चुनौती है. इसलिए हमें नई रणनीति अपनानी है. किसी भी सामान्य आतंकवादी के लिए कोर कमांडर या डीजीपी को एक प्रेस कॉन्फ्रेंस क्यों करनी चाहिए? हमारा प्रभावशाली हथियार है कि प्रचार के भूखे आतंकी संगठनों को भूखा ही रखा जाए और उनका प्रचार न किया जाए."

सुरक्षा ग्रिड टॉप 10 या 20 "मोस्ट वांटेड टेरेटिस्ट" का विवरण देकर इससे होने वाले नुकसान से बच रहा है. सूत्रों का कहना है कि इससे आतंकवाद का महिमामंडन होगा.

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2. सार्वजनिक जनाजे की अनुमति नहीं

आतंकवादियों के अंतिम संस्कार में हजारों स्थानीय लोग एकत्र होते हैं, बंदूकों के साथ भारत विरोधी नारेबाजी करते हैं. सुरक्षा बलों ने समय-समय पर सुझाव दिया है कि जनाजे में ऐसी सभाओं की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए.

8 अप्रैल को, लॉकडाउन के मानदंडों का उल्लंघन करके 500 से अधिक लोग जैश के आतंकी कमांडर सज्जाद नवाब डार के जनाजे में एकत्र हुए. गृह मंत्रालय की ओर से इस घटना का संज्ञान लेने के बाद प्राथमिकी दर्ज की गई और दो लोगों को हिरासत में लिया गया. आधिकारिक तौर पर कई दौर के विचार-विमर्श के बाद निर्णय लिया गया कि मारे गए आतंकवादियों को स्थानीय कब्रगाह में दफनाने या जनाजे के साथ जुलूस की अनुमति नहीं दी जाएगी. बाद में निर्णय को बदल दिया गया और कहा गया कि पुलिस की मौजूदगी में परिवार को अंतिम संस्कार की अनुमति होगी.

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3. सोशल मीडिया पर पुलिस सर्विलांस

कश्मीर के साइबर पुलिस स्टेशन ने सोशल मीडिया पर सरकारी आदेशों की अवहेलना के लिए कुछ लोगों के खिलाफ 17 फरवरी, 2020 को अपनी पहली प्राथमिकी दर्ज की. साइबर सेल के अस्तित्व में आने के कुछ दिन बाद ही यह एफआईआर दर्ज की गई.

साइबर पुलिस ने सोशल मीडिया पर सतर्कता बढ़ा दी है, क्योंकि जम्मू-कश्मीर सरकार ने इसके कई आदेशों में कश्मीर में राजनीतिक अशांति के लिए सोशल मीडिया को जिम्मेदार ठहराया है. हाईस्पीड 4जी मोबाइल इंटरनेट पर प्रतिबंध जारी है. सरकार का मानना है कि इंटरनेट और सोशल मीडिया के दुरुपयोग के खिलाफ यह एक निवारक कदम है. हाल ही में पुलिस ने तीन पत्रकारों के खिलाफ भी केस दर्ज किया था. हाल में कई ऐसी घटनाएं सामने आई हैं जब फर्जी सूचनाएं फैलाकर अशांति फैलाने की कोशिशें हुई हैं. सरकार की कोशिश है कि फर्जी खबरें न फैलने दी जाएं.

4. आतंकवादियों की धरपकड़

जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा खत्म करने और राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों में बांटने के निर्णय के बाद वहां पर संचार व्यवस्था ठप हो गई थी. इससे ह्युमन इंटेलीजेंस पर काफी असर पड़ा था. लेकिन 2020 की शुरुआत से ही लश्कर-ए-तैयबा की मदद से घाटी में पाकिस्तान समर्थित आतंकी समूहों से निपटने के लिए ऑपरेशन तेज कर दिए गए हैं.

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पाकिस्तानी आईएसआई की मदद से द रजिस्टेंस फ्रंट (TRF) और तहरीकी-मिलात-ए-इस्लामी (TMI) हाल में बने संगठन हैं. ये दोनों ग्रुप पिछले एक साल से घाटी में सक्रिय हैं. हिज्बुल मुजाहिद्दीन के सक्रिय न होने के बावजूद पाकिस्तान के आतंकी प्रोजेक्ट बंद नहीं हुए हैं. इस साल की शुरुआत से अब तक 60 टेरर ऑपरेटिव ​को निष्क्रिय किया जा चुका है और 28 मारे गए हैं. इन 60 में से ज्यादातर हिज्बुल से जुड़े थे.

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सबसे बड़ी चिंता विदेशी आतंकवादी हैं. सेना और बीएसएफ लगातार शिकंजा कस रही हैं. घाटी में फिलहाल 250 से 300 आतंकवादी सक्रिय होने का अनुमान है. सुरक्षाबलों का कहना है कि चिंता का विषय संख्या नहीं है, बल्कि असली चिंता जैश-ए-मोहम्मद जैसे आतंकी समूहों के आत्मघाती दस्तों की है.

5. खेल में दो कदम आगे

चूंकि घाटी में संचार व्यवस्था बहाल हो गई है, इसलिए अब पाकिस्तान स्थित आतंकी समूह भी घाटी में सक्रिय हो गए हैं और अशांति फैलाने की कोशिश कर रहे हैं. लेकिन भारतीय सुरक्षा बल उन्हें मुंहतोड़ जवाब दे रहे हैं. इसके चलते आतंकी समूह अब अपनी "कट आउट" मॉडस ऑपरेंडी बदलने पर मजबूर कर रहे हैं.

इंटेलीजेंस की भाषा में "कट आउट" का मतलब है कि सूचना ले जाने वाला केवल सूचना के सोर्स और गंतव्य को जानता है, वह इस खुफिया प्रक्रिया में शामिल किसी अन्य व्यक्ति को नहीं जानता. "कट आउट" का उपयोग एक जासूसी सेल के सदस्यों की पहचान करने के लिए नहीं किया जा सकता. "कट आउट" सूचना के सोर्स और गंतव्य दोनों को अलग रखता है.

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सूत्रों के मुताबिक, आईएसआई अब जेहादियों को पहले से नहीं बता रहा है कि जम्मू-कश्मीर में क्या किया जा रहा है. 5 अगस्त के बाद के परिदृश्य में अलगाववादियों पर दबाव बढ़ गया है. आईएसआई अब आतंकवादियों के घर जाने के लिए निचले पायदान के अलगाववादियों को प्रेरित करने की कोशिश कर रही है. लेकिन कोविड-19 के समय यह भी असंभव है.

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सुरक्षा बल अब "तकनीक" और ह्युमन इंटेलीजेंस का उपयोग करके जमीनी तौर पर नजर रख रहे हैं और आतंकरोधी अभियानों को बढ़ा दिया गया है.

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