
दुनियाभर में 3,000 लोगों की जान लेने वाला कोरोना वायरस (COVID-19) अब भारत में भी पहुंच गया है. अब तक देश में कम से कम 6 पॉजिटिव केस की पुष्टि हो चुकी है. कई लोग अब भी निगरानी में हैं.
अब सभी नजरें भारत के जन स्वास्थ्य सुरक्षा सिस्टम पर टिक गई हैं. बड़ा सवाल है कि क्या सिस्टम आपातकालीन स्थिति से निपटने में सक्षम है?
इंडिया टुडे डेटा इंटेलिजेंस यूनिट (DIU) ने स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय की ओर से उपलब्ध कराए गए स्वास्थ्य के बुनियादी ढांचे से जुड़े आंकड़ों का विश्लेषण किया. ये डेटा मंत्रालय ने राष्ट्रीय स्वास्थ्य प्रोफाइल रिपोर्ट्स में मुहैया कराया है. विश्लेषण से निकली तस्वीर अधिक आश्वस्त करने वाली नहीं है.
विश्लेषण के लिए हमने चार बुनियादी पैमानों को चुना.
1. अस्पतालों और पब्लिक हेल्थकेयर सेंटर्स की संख्या
2. एलोपैथिक डॉक्टर्स की संख्या
3. नर्स और मिडवाइव्स की संख्या
4. अस्पताल बिस्तरों की संख्या
अस्पताल और डॉक्टर्स
राष्ट्रीय स्वास्थ्य प्रोफाइल 2019 के मुताबिक भारत में करीब 26,000 सरकारी अस्पताल हैं. ये अस्पताल केंद्र, राज्य सरकार या स्थानीय प्रशासन की ओर से चलाए जाते हैं.
अगर हम इस आंकड़े को देश की 1.25 अरब आबादी से भाग करें तो करीब हर एक लाख लोगों पर महज दो अस्पताल आते हैं (47,000 लोगों के लिए एक अस्पताल). हमने 2011 की जनगणना के आधार पर राज्यवार अस्पतालों की उपलब्धता का आकलन किया.
राज्यवार विश्लेषण बताता है कि सरकारी अस्पतालों की संख्या पर गौर किया जाए तो कम आबादी वाले छोटे राज्य बेहतर प्रदर्शन वाले हैं क्योंकि डिनॉमिनेटर छोटा है. अरुणाचल प्रदेश और हिमाचल प्रदेश में हर एक लाख आबादी पर क्रमश: 16 और 12 अस्पताल हैं.
दिल्ली में 1.54 लाख पर 1 अस्पताल
जहां तक बड़ी आबादी वाले बड़े राज्यों का सवाल है तो उनका एक लाख लोगों पर अस्पतालों की संख्या राष्ट्रीय औसत से कम है. आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, दिल्ली, गुजरात और छत्तीसगढ़ में देश की 21% आबादी रहती है. लेकिन इन राज्यों में अस्पतालों की संख्या प्रति लाख लोगों पर एक भी नहीं बैठती.
आंध्र प्रदेश में हर दो लाख लोगों पर एक अस्पताल है. महाराष्ट्र में हर 1.6 लाख लोगों पर 1 अस्पताल का औसत है. मध्य प्रदेश में 1.56 लाख, दिल्ली में 1.54 लाख, गुजरात में 1.37 लाख और छत्तीसगढ़ में 1.19 लाख लोगों पर 1-1 अस्पताल उपलब्ध है. वहीं राष्ट्रीय औसत 47,000 लोगों पर एक अस्पताल का है.
अरुणाचल प्रदेश और हिमाचल प्रदेश में क्रमश: 6,300 और 8,570 लोगों पर एक-एक अस्पताल उपलब्ध हैं.
डॉक्टर्स की संख्या देखी जाए तो भी ऐसी ही तस्वीर सामने आती है. आंकड़े बताते हैं कि देश में कुल 1,16,757 एलोपैथिक डॉक्टर्स हैं. यानी 10,700 लोगों पर 1 डॉक्टर का औसत बैठता है.
नर्स, बिस्तर की संख्या
अस्पतालों और डॉक्टर्स की संख्या से अलग अगर बुनियादी अस्पताल इंफ्रास्ट्रक्चर जैसे कि नर्स, मिडवाइव्स और अस्पताल बिस्तरों की बात की जाए तो ये संख्या भी कम है. DIU ने पाया कि सरकारी अस्पतालों में स्किल्ड प्रोफेशनल्स पर इस मामले में भी काफी दबाव है.
सरकारी अस्पतालों में रजिस्टर्ड नर्स और मिडवाइव्स की संख्या करीब 20.5 लाख है. इसके मायने हर 610 लोगों पर एक नर्स का औसत बैठता है.
अगर अस्पताल बिस्तरों की संख्या देखी जाए तो भारत की विशाल आबादी की तुलना में ये बहुत कम है. देश के 25,778 सरकारी अस्पतालों में 7.13 लाख बिस्तर उपलब्ध हैं. इसके मायने हैं कि हर 10,000 लोगों पर मुश्किल से 6 बिस्तर ही उपलब्ध हैं. इस मामले में बिहार की हालत सबसे दयनीय है.
बिहार में हर 9,000 लोगों पर सिर्फ एक बिस्तर उपलब्ध है. झारखंड, गुजरात, छत्तीगढ़, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, ओडिशा, हरियाणा, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश और मणिपुर में करीब 2,000 लोगों पर एक सरकारी अस्पताल बिस्तर उपलब्ध है.
क्या कहता है पुराना अनुभव
पिछले 10 साल में स्वाइन फ्लू या H1N1 इंफ्लुएंजा भारत में सबसे घातक संक्रामक बीमारी साबित हुई हैं. 2015 में इसका संक्रमण फैलने से 42,592 मामले सामने आए जिनमें 2,990 मौतें हुईं.
इसे भी पढ़ें--- Live Updates: दिल्ली में कोरोना के 18 मामले पॉजिटिव, महाराष्ट्र में 2 संदिग्ध मामलों के बाद अलर्ट
इसमें मृत्यु दर 7.02 फीसदी रही. 2015-18 में कुल 6,600 लोगों की जान H1N1 इंफ्लुएंजा की वजह से गई.
इसे भी पढ़ें--- कोरोना का असर, होली मिलन में नहीं शामिल होंगे PM मोदी, एक्सपर्ट्स की सलाह के बाद फैसला
सरकार का क्या कहना है?
भारत में कोरोना वायरस मामलों की संख्या चीन के अन्य पड़ोसियों जैसे कि दक्षिण कोरिया और जापान से कम है. भारत सरकार हालांकि संक्रमण फैलने से रोकने के लिए हर मुमकिन कदम उठा रही है.
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन ने कहा कि यात्रा संबंधी पाबंदियां और बढ़ाई जा सकती हैं क्योंकि एयरपोर्ट्स और बंदरगाहों पर स्क्रीनिंग को और कड़ा बनाया जा रहा है.