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पीएनबी की लूट के बाद खुली आंख, इन 12 बड़े गबनकर्ताओं पर चलेगा कानूनी डंडा

सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के डूबत कर्ज का बड़ा हिस्सा तो कॉर्पोरेट क्षेत्र के पास है जो करीब 7.34 लाख करोड़ रु. का बैठता है. नए इन्सॉलवेंसी ऐंड बैंकरप्सी कोड को डूबत कर्ज के मामले की पूरी तरह सफाई के लिए लाया गया.

हीरा कारोबारी, नीरव मोदी हीरा कारोबारी, नीरव मोदी
श्वेता पुंज
  • नई दिल्ली,
  • 27 फरवरी 2018,
  • अपडेटेड 2:24 PM IST

पहली बार भारतीय कंपनियों पर अपना हिसाब-किताब दुरुस्त करके बैंकों का कर्ज चुकाने के लिए दबाव बनाया जा रहा है. 12 बड़े गबनकर्ताओं (डिफॉल्टर) को कर्ज चुकाने की दी गई मियाद कुछ समय में पूरी हो जाएगी. तब इन्सॉलवेंसी ऐंड बैंकरप्सी कोड (आइबीसी) की मदद से कर्ज के इस खेल का पासा पलटता दिखेगा.  

सार्वजनिक क्षेत्रों के बैकों के सामने खड़ा गैर-निष्पादित संपत्तियों (एनपीए) का पहाड़, भारत के कॉर्पोरेट क्षेत्र की कुरूप छवि की झलक दिखाता है. चालू वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही की समाप्ति पर बैंकों के खाते में 7.34 लाख करोड़ रु. का डूबत कर्ज खड़ा था.

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रिजर्व बैंक के मुताबिक, इस डूबत कर्ज का बड़ा हिस्सा कॉर्पोरेट क्षेत्र को दिए गए ऋण का है. आरबीआइ ने 12 गबनकर्ताओं की पहली सूची जारी करते हुए उन्हें आगाह किया कि वे या तो 180 दिनों के अंदर कर्ज के निपटारे का प्रस्ताव लेकर आएं, या फिर आइबीसी के अंतर्गत सख्त कार्रवाई के लिए तैयार रहें.

12 बकायदारों की लिस्ट, जिन्हें अप्रैल 2018 के बाद या तो कर्ज अदा करना पड़ेगा या फिर इन्सॉल्वेंसी ऐंड बैंकरप्सी कोड के तहत इनके खिलाफ कार्रवाई होगी

इनमें से ज्यादातर कंपनियों को दी गई मियाद अप्रैल में खत्म हो रही है. उसके बाद कर्जदाता—इस मामले में बैंक—कंपनियों को दिवालिया घोषित करने की प्रक्रिया शुरू करके दिवालिएपन की प्रक्रिया संपन्न करने वाले पेशेवरों की नियुक्ति करेंगे.

ये पेशेवर इन कंपनियों का प्रबंधन और इनकी संपत्तियों को अपने नियंत्रण में ले लेंगे.

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बैंक अपने डूबत कर्जे को एनपीए घोषित करें, इसके लिए आरबीआइ को बैंकों पर दबाव बनाना पड़ा.

ऋण-पुनर्गठन प्रक्रिया की आड़ में बैंक अपने खराब कर्ज को एनपीए घोषित होने से बचाए रखने की फिराक में रहते हैं ताकि वे अपनी बैलेंस शीट को साफ-सुथरा दिखा सकें.

डिफॉल्ट करने के बाद कंपनियां ऋण पुनर्गठन की प्रक्रिया में चली जाती हैं और मामला कई वर्षों के लिए खटाई में पड़ जाता है.

1993 में जब त्वरित निर्णय और वसूली के लिए 'ऋण वसूली अधिकरण तथा अपीलीय प्राधिकरण' का गठन किया गया था, तब बैंक बड़े पैमाने पर कर्ज वसूलने में सफल हुए थे. 

लेकिन एक कॉर्पोरेट वकील नए कोड को 'बहुत ज्यादा सख्त' बताती हैं. वे कहती हैं, ''ऐसी कंपनियां भी हो सकती हैं जो बुरे दौर से गुजर रही हों और उनके साथ सच में धन की किल्लत की स्थिति बन गई हो."

आरबीआइ ने कॉर्पोरेट ऋण पुनर्गठन (सीडीआर), रणनीतिक ऋण पुनर्गठन (एसडीआर) जैसी स्ट्रेस्ड संपत्तियों के समाधान की कई योजनाएं खत्म कर दी हैं. 

लेकिन इसकी सफलता इस पर निर्भर करेगी कि क्या कदम उठाए जा रहे हैं. इसकी परीक्षा 13 अप्रैल से शुरू होगी जब मोनेट इस्पात ऐंड एनर्जी लिमिटेड को दी गई समय सीमा समाप्त हो रही है. करदाताओं का तीन लाख करोड़ रु. से ज्यादा दांव पर है जिसे बैंकों से कर्ज के रूप में इन बारह बड़े कर्जदारों ने दबा रखा है.

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