
जब इस देश में हर कोई नरेंद्र मोदी के पहले साल पर ठोस राय दे रहा हो, मुझे वही काम फिर से करने के लिए माफ किया जाना चाहिए, अलबत्ता मेरा जोर मोदी की बजाए उनके मंत्रियों पर है. एक कप्तान उतना ही अच्छा हो सकता है जितनी अच्छी उसकी टीम होती है, फिर चाहे वह माही हो या मोदी.
अपने काम को सरल बनाने के लिए मैं 66 मंत्रियों की उनकी विशाल कैबिनेट में सिर्फ 10 को चुन रहा हूं. ये दस मंत्री सबसे ज्यादा अहम, सुर्खियों में रहने वाले और सबसे ज्यादा दिखने वाले लोग हैं और हर कोई अपनी-अपनी क्षमता के हिसाब से शीर्ष 10 में जगह रखता है. इनके पद की प्रकृति और अहमियत तथा पार्टी के भीतर वरिष्ठता अहम चीज है लेकिन अनिवार्यतः निर्णायक कारक नहीं है. इसीलिए हम ग्रामीण विकास, कृषि और स्वास्थ्य विभाग के मंत्रियों वीरेंदर सिंह, राधामोहन सिंह और जे.पी. नड्डा के प्रदर्शन का आकलन नहीं कर रहे, जिनके बारे में हम ज्यादा नहीं जानते हैं. हम सिर्फ दस (वास्तव में 12) को चुन रहे हैं इसलिए हम उन्हें बढ़ते क्रम में 1 से 10 की रेटिंग देंगे.
1. मानव संसाधन विकास, स्मृति ईरानी
मंत्रिपरिषद में वे सबसे युवा, सबसे साफ बोलने वाली और मीडियाप्रिय हैं जिनकी उम्र कैबिनेट की औसत उम्र 57 साल से दो दशक पीछे है. ऐसे मंत्रालय के लिए वे उपयुक्त हैं जिसकी बुनियादी जिम्मेदारी यह तय करना है कि देश की युवा और युवतर आबादी इस देश के लिए विनाशकारी नहीं, लाभकारी साबित हो. साल भर के कार्यकाल में इन्हें कई जीत हासिल हुई है. अत्यधिक औपचारिक शिक्षा के कथित अभाव और पावन येल विश्वविद्यालय से मिले प्रमाणपत्र का अपमान करने के नाम पर निशाना बनाए जाने के प्रयासों को इन्होंने सफलतापूर्वक ध्वस्त किया है. इसके पीछे वजह यह है कि हमारे प्रधानमंत्री के बाद अंग्रेजी और हिंदी, दोनों भाषाओं में वे ही सबसे ज्यादा वाकपटु हैं. इनकी जीत का एक चेहरा उत्तरी दिल्ली में दिल्ली विश्वविद्यालय के कुलपति दिनेश सिंह हैं तो दूसरा चेहरा दक्षिणी दिल्ली स्थित आइआइटी के निदेशक आर.के. शेवगांवकर हैं. अफसोस कि दिल्ली के पूरब और पश्चिम में राष्ट्रीय स्तर के ऐसे प्रतिष्ठित संस्थान मौजूद नहीं हैं. प्रतिष्ठित परमाणु वैज्ञानिक और आइआइटी बंबई के चेयरमैन अनिल काकोडकर ने बहुत शालीनता से इस ओर संकेत किया था कि ईरानी आइआइटी के निदेशकों के चयन की तय प्रक्रियाओं को बदल रही हैं. एनसीईआरटी के मुखिया जा चुके हैं. कुछ और की बारी है. उनका वादा है कि वे एचआरडी मंत्रालय को और ज्यादा विवादास्पद बना डालेंगी. इस अर्थ में कहें तो इनके भीतर एनडीए का जयराम रमेश बनने की अदभुत संभावना है जो अच्छे सरोकार को भी विवादास्पद बना दे.
2. जल संसाधन, नदी विकास और गंगा संरक्षण, उमा भारती
इन्होंने अपने मंत्रालय के साथ कुछ भी नहीं किया है, बावजूद इसके स्मृति ईरानी से दोहरी रेटिंग इन्हें इसलिए दी जा रही है क्योंकि इन्होंने वास्तव में मंत्रालय का कोई नुक्सान नहीं किया है और कोई नया विवाद नहीं खड़ा किया है. वास्तव में, इनके बरदाश्त की दाद दी जानी चाहिए कि इन्होंने विश्व हिंदू परिषद द्वारा गंगा पर राफ्टिंग को रोकने के लिए चलाए गए अभियान से किनारा कर लिया जिसे पुरानी हिंदी फिल्मों की तर्ज पर कम कपड़े पहने अधभीगे, लिपटे और चिल्लाते हुए राफ्टिंग करते युवाओं से दिक्कत थी. बेशक, दस में दो अंक तो बनते हैं.
3. अल्पसंख्यक मामले, नजमा हेपतुल्ला
हमारी राजनीति में सर्वाधिक अनुभवी शख्सियतों में एक नजमा जी देर से भगवावादी हुई हैं और अपने पद को एक से ज्यादा तरीकों से गरिमा प्रदान करती दिखती हैं. वे अल्पसंख्यक समुदाय से आने वाले उन चार या पांच मंत्रियों में हैं जो इस कैबिनेट का हिस्सा हैं (यह इस पर निर्भर करता है कि आप अल्पसंख्यक को कैसे परिभाषित करते हैं). यह संख्या अब तक की सबसे कम है. इन्होंने भी बहुत कम काम किया है और यहां उन्हें उतने ही अंक दिए जा रहे हैं जितने में पुराने जमाने में लोग पास हो जाया करते थे, क्योंकि वे खबरों से दूर रही हैं. इन्होंने न तो अल्पसंख्यकों की सुविधा के लिए कोई काम किया है और न ही किसी पुराने उपाय जैसे कि हज सब्सिडी, मदरसों के कंप्यूटरीकरण, वगैरह के साथ छेड़छाड़ की है.
4. पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस (राज्यमंत्री, स्वतंत्र प्रभार), धर्मेंद्र प्रधान
पिछले दो दशकों के दौरान सर्वाधिक विवादास्पद मंत्रालय के भीतर वे तकरीबन अनजान चेहरा हैं. इन्हें वह काम दिया गया जो यूपीए में वीरप्पा मोइली, जयपाल रेड्डी, मुरली देवड़ा और मणिशंकर अय्यर के जिम्मे था. ऐसा इसलिए किया गया क्योंकि इन पर भरोसा था कि ये भ्रष्ट नहीं होंगे. इस मंत्रालय में कायम कॉर्पोरेट लॉबियों और दलालों के जाल को तोड़ दिया गया है और कई के खिलाफ तो कॉर्पोरेट जासूसी के मामले में मुकदमा तक चल रहा है. इन्होंने तेल कीमतों में यूपीए के दौर में लाए गए सुधार को जारी रखने में प्रधानमंत्री की मदद की है और एलपीजी सब्सिडी को नकदी हस्तांतरण की ओर सहजता से प्रवृत्त किया है, जो मोदी सरकार की सबसे बड़ी कामयाबियों में एक है.
समस्या यह है कि पेट्रोलियम मंत्रालय में भ्रष्टाचार को रोकने का इनका तरीका वैसा ही है जैसा रक्षा मंत्रालय में ए.के. एंटनी का हुआ करता था. खुद को सुरक्षा कवच में लपेट लो और चुपचाप पड़े रहो ताकि कुछ भी गलत न हो पाए. थोड़ी छूट लेते हुए कहें तो नए निवेशों, शेल गैस, ताजा अन्वेषण, इस मंत्रालय में सब कुछ का एंटनीकरण हो गया है.
5. गृह, राजनाथ सिंह; सड़क परिवहन, राजमार्ग और जहाजरानी, नितिन गडकरी
गृह मंत्री राजनाथ सिंह अपने मंत्रालय में मोटे तौर पर सुर्खियों से दूर ही बने रहे हैं. यहां महाराणा प्रताप बनाम अकबर की उनकी इतिहास की समझ से हमें कोई मतलब नहीं है लेकिन सबसे ज्यादा सियासी मंत्रालय में उनका नेतृत्व काफी महीन रहा है. जम्मू-कश्मीर में पीडीपी और बीजेपी के बेमेल गठबंधन के सहारे उन्होंने इम्तिहान पास कर लिया है. अब दिल्ली में उनकी परीक्षा होनी है.