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आसाराम बापू का 10,000 करोड़ का अपवित्र साम्राज्य

जब्त दस्तावेजों से पता चला है कि आसाराम ने बेनामी सौदे किए, करोड़ों के कर्ज दिए, अमेरिकी कंपनियों में पैसा लगाया और यह सब कुछ छुपाने के लिए अधिकारियों को घूस देने की कोशिश की. इनसे आसाराम और उसके बेटे की अनुयायियों को अबाध निर्वाण का झांसा देकर जुटाई गई संपित्त में भारी काला कारोबार और धोखाधड़ी का पता चलता है. यह गोरखधंधा करीब 10,000 करोड़ रु. का होने का अनुमान है.

उदय माहूरकर
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  • 10 अगस्त 2015,
  • अपडेटेड 3:52 PM IST

अजीबोगरीब  लेनदेन और सूद-ब्याज का ऐसा तंत्र जिससे बड़े से बड़ा सूरमा भी शरमा जाए. जमीन सौदों की धोखाधड़ी और पुलिस अधिकारियों को खरीदने तथा अदालती प्रक्रिया को मनमाफिक तोड़ने-मरोड़ने के लिए साजिशें. सैकड़ों करोड़ रुपए का लेनदेन, अनजान-सी अमेरिकी कंपनियों में निवेश. लाखों डॉलर की विदेशी मुद्रा में संदिग्ध कारोबार. यह सब देखकर तो ऐसा लगता है कि स्वयंभू धर्मगुरु आसाराम बापू और उसके बेटे नारायण साईं पर बलात्कार और गवाहों को धमकाने-मारने के आरोप ही भर नहीं हैं. यह फेहरिस्त काफी लंबी है.

आसाराम और नारायण साईं जोधपुर और सूरत जेलों की हवा काट रहे हैं. आसाराम के खिलाफ बलात्कार के मामले की सुनवाई एक अदालत में शुरू होने वाली है. इस बीच गुजरात पुलिस का दावा है कि उसके हाथ भारी गैर-कानूनी कारोबार और गोरखधंधे के सुराग लग गए हैं जो लाखों आस्थावान अनुयायियों के दम पर चल रहा है. पुलिस के मुताबिक, आसाराम के एक सहयोगी के अपार्टमेंट से जब्त दस्तावेजों में इसके ब्योरे कुछ इस तरह दर्ज हैं जैसे किसी छोटे शहर के कारोबारी के लेनदेन की लंबी-चौड़ी फेहरिस्त हो.

  • —-बेनामी जमीन-जायदाद के सौदे और वित्तीय लेनदेन ज्यादातर कथित तौर पर नकदी में-करीब 2,200 करोड़ रु. से अधिक के हैं.  
  • — 500 से अधिक लोगों को मोटी ब्याज दर पर 1,635 करोड़ रु. नकद कर्ज दिए गए.
  • — दो अनजान-सी अमेरिकी कंपनियों&सोहम इंक और कोस्टास इंक में 156 करोड़ रु. निवेश किए गए. संदेह है कि इस मामले में विदेशी मुद्रा विनिमय प्रबंधन कानून (फेमा) का उल्लंघन किया गया, क्योंकि किसी भी निवासी भारतीय के विदेश में सीधे निवेश करने की मनाही है.
  • — कथित तौर पर 8 करोड़ रु. की रकम आसाराम और उसके बेटे साईं के खिलाफ बलात्कार के मामलों की जांच-पड़ताल से जुड़े पुलिस अधिकारियों, न्यायिक अधिकारियों और चिकित्सा अधिकारियों को घूस देने के लिए अलग से रखी गई थी.
कागज पर इन सभी का कुल योग भारी-भरकम 4,500 करोड़ रु. बैठता है. लेकिन जांचकर्ताओं का कहना है कि पुलिस ने पुरानी सर्कल दरों पर ही इस रकम का आकलन किया है, अगर जमीन-जायदाद की कीमत मौजूदा बाजार दरों पर आंकी जाए तो आसाराम का कुल गोरखधंधा 10,000 करोड़ रु. से ज्यादा का होगा.
हालांकि साईं के वकील इन आरोपों को बकवास बताते हैं. रिश्वत के मामले में साईं के वकील कल्पेश देसाई ने इंडिया टुडे से कहा, “नारायण साईं और दूसरों को झूठे मुकदमों में फंसाया जा रहा है ताकि आसाराम बापू और साईं को और गहरे फंसाया जा सके.” वे कहते हैं कि कथित तौर पर पुलिस जिसे “संगीन दस्तावेज” मान रही है, वह कुछ खास नहीं है. हालांकि देसाई उसके ब्यौरे बताने से यह कहकर इनकार कर देते हैं कि मामला अदालत में है.

चोर की दाढ़ी में तिनका

यह मामला बलात्कार कांड में इंदौर में आसाराम की गिरफ्तारी के काफी बाद 2013 में खुला. सूरत पुलिस नारायण साईं की तलाश देशभर में कर रही थी. साईं सूरत आश्रम के एक पूर्व श्रद्धालु के साथ बलात्कार के आरोप के बाद फरार हो गया था. आखिर में उसे उसी साल दिसंबर में पकड़ लिया गया. इसी दौरान 26 अक्तूबर को एक पुलिस टीम ने एक मुखबिर की सूचना के आधार पर अहमदाबाद के महंगे इलाके सी.जी. रोड पर एक अपार्टमेंट में छापा मारा. यह अपार्टमेंट एक बिल्डर और आसाराम के लंबे समय के अनुयायी प्रह्लाद किशनलाल सेवानी का था. अनजाने में ही पुलिस को वह खजाना हाथ लग गया जिसके बारे में किसी ने सोचा ही नहीं था. उसे 42 बड़े बक्सों और कंप्यूटर तथा हार्ड डिस्क में अनेक दस्तावेज मिले.

सूरत के पुलिस आयुक्त राकेश अस्थाना और अधिकारियों की टीम ने कागज के अनगिनत बंडलों और कंप्यूटर फाइलों से जानकारी जुटाने और उसका मिलान करने में महीनों लगाए. आखिरकार इससे आसाराम और उसके आश्रमों से जुड़े धोखाधड़ी और अपराध के विशाल नेटवर्क का पता चला. ऐसा पुलिस का दावा है. अस्थाना ने 2014 के शुरू में इस मामले को प्रवर्तन निदेशालय और आयकर विभाग को गहन जांच के लिए सौंपते हुए अपनी चिट्ठी में लिखा, “जब्त दस्तावेजों और हार्ड डिस्क में आसाराम और नारायण साईं के बड़े पैमाने पर करचोरी और गोरखधंधे का पता चलता है. इसमें देशभर के व्यापारियों, कारोबारियों और रियल स्टेट डीलरों के बड़े पैमाने पर नाम भी दर्ज हैं. ये लोग इस धंधे से काले धन का इस्तेमाल अपने पेशेवर और व्यक्तिगत फायदे के लिए करते थे. मामला राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर का है इसलिए इसकी आयकर कानून के तहत गहन जांच-पड़ताल होनी चाहिए.”

सूरत पुलिस ने मामले को आगे बढ़ाते हुए जिन बारीकियों का जिक्र किया है, उसी से इस विशाल गोरखधंधे का अंदाजा लग जाता है. अस्थाना की चिट्ठी के साथ सात खंडों में दस्तावेज संलग्न हैं जो करीब 900 पन्नों के हैं. लेकिन 18 महीने बाद भी आयकर अधिकारी इसमें मामूली प्रगति ही दिखा पाए हैं. हालांकि सूरत पुलिस से मिले हार्ड डिस्क के ब्यौरों की जांच करने वाले आयकर के सहायक आयुक्त बेंजामिन चेट्टियार का कहना है कि जांच सही दिशा में चल रही है. उन्होंने इंडिया टुडे से कहा, “हमने मामले की काफी पड़ताल कर ली है और जब्ती के आदेश जारी किए गए हैं. इसके नतीजे जल्दी ही सार्वजनिक किए जाएंगे.”

वैसे, जब्त दस्तावेजों के आधार पर इंडिया टुडे की पड़ताल से पता चलता है कि आसाराम और उसके बेटे के दशकों से खड़े किए गए विशाल साम्राज्य का लंबा-चौड़ा काला अध्याय है. मोटे तौर पर अनुयायियों के चंदे से इकट्ठा किए गए पैसों और आश्रमों की बिक्री से कमाए मुनाफे से सूद-ब्याज का एक बड़ा तंत्र जैसा बनाने का काम चल रहा था.

सूद-ब्याज के इस धंधे के अलावा जब्त दस्तावेजों से संदिग्ध जमीन सौदों का भी पता चलता है. गुजरात, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश के साथ-साथ कई मध्य और उत्तर भारतीय राज्यों में जमीन-जायदाद का अधिग्रहण किया गया. लगभग हर जगह आसाराम और उसके अनुयायियों ने करीब 400 आश्रम और धार्मिक केंद्र खोले हैं. जांचकर्ताओं के मुताबिक, पैसे के संदिग्ध लेनदेन के लिए करीब 800 बैंक खातों का इस्तेमाल किया जाता था.    
 
धर्म और दौलत
सूरत पुलिस के सहायक आयुक्त मुकेश पटेल का आरोप है कि आसाराम की मिल्किलत वाली काफी जमीन गैर-कानूनी हैं. नारायण साईं के खिलाफ बलात्कार के मामले की जांच की अगुआई पटेल ही कर रहे हैं. वे कहते हैं, “ये जमीन गलत दस्तावेज रखने वाले भक्तों को फुसलाकर और अतिक्रमण के जरिए हासिल की गई हैं.” अकेले गुजरात में साबरकांठा जिले के पेढमल आश्रम और मोटेरा (अहमदाबाद) तथा सूरत के आसाराम केंद्रों पर प्रशासनिक और पुलिस कार्रवाई के बाद आश्रम को गैर-कानूनी ढंग से कब्जाई गई जमीन को खाली करने पर मजबूर किया गया.

बरसों से आसाराम के खिलाफ मुकदमा लड़ रहे 54 वर्षीय नैनेश शाह आसाराम के कथित तौर-तरीकों को बताने वाला सटीक उदाहरण हैं. उनके आरोपों के मुताबिक, बरसों पहले 1978 में आसाराम ने शाह के पिता रजनीकांत शाह को, जो उस वक्त उनके अनुयायी थे, अहमदाबाद आश्रम के नजदीक अपनी मिल्कियत की 15,300 गज जमीन “तोहफे में देने” के लिए राजी कर लिया. उस वक्त इस जमीन की कीमत 20 लाख रुपए थी. कुछ साल बाद शाह के पिता को एहसास हुआ कि उन्हें तो झांसा देकर लूट लिया गया है, क्योंकि जमीन का राजस्व अब भी वही चुका रहे थे जबकि जमीन पर कब्जा आसाराम का था. लिहाजा, उन्होंने जमीन वापस मांगी. इस मामले के आज सैंतीस साल हो चुके हैं. शाह के पिता का काफी पहले निधन हो चुका है. जमीन के उस टुकड़े की कीमत अब 100 करोड़ रुपए आंकी जाती है और उस पर आश्रम की महिला इकाई काबिज है. शाह कहते हैं, “उन्होंने मेरे पिताजी की भावनाओं के साथ खेलकर वह जमीन गिफ्ट डीड के जरिए अपने नाम करवा ली. जमीन का राजस्व और कर आज भी हम चुका रहे हैं और जमीन वापस लेने के लिए मुकदमा लड़ रहे हैं सो अलग.”

जांचकर्ता कहते हैं कि यह उन ढेरों उदाहरणों में से महज एक है, जिनका आसाराम और उनके सहयोगियों पर इल्जाम लगाया जाता है.

जांचकर्ताओं के मुताबिक, आसाराम 400 ट्रस्ट या न्यासों के जरिए अपने इस पूरे साम्राज्य पर नियंत्रण रखता है. इनमें से दो सबसे अहम ट्रस्ट&संत श्री आसारामजी आश्रम ट्रस्ट और संत श्री आसारामजी महिला उत्थान ट्रस्ट&अहमदाबाद से चलाए जाते हैं. जांचकर्ताओं और सेवानी अपार्टमेंट से जब्त दस्तावेजों से संकेत मिलता है कि पत्रिकाओं, प्रार्थना पुस्तकों और सीडी जैसी व्यापारिक वस्तुओं तथा साबुन, धूपबत्ती और तेल सरीखे आयुर्वेदिक उत्पादों की बिक्री से, श्रद्धालुओं के चंदे से और अक्सर आश्रम की हड़पी हुई जमीन पर खेती से भी आश्रम के खजाने में मोटी रकम आई है.

नाजायज तरीकों से कमाए गए इस धन का बड़ा हिस्सा आश्रमों में या भक्तों और निवासियों के कल्याण के कामों में दोबारा निवेश करने के लिए था. लेकिन जांचकर्ताओं का आरोप है कि इनमें से बहुत बड़ी धनराशि इसकी बजाए जमीनों के संदिग्ध सौदों में धन लगाने के लिए और साहूकारी का एक जबरदस्त रैकेट चलाने में इस्तेमाल की गई, जिसमें औनी-पौनी ब्याज दरों पर नकद धनराशियां उधार दी जाती थीं.

अंदरूनी सूत्र आरोप लगाते हैं कि आश्रम के कर्ताधर्ताओं ने कर चुकाने से बचने के लिए अभिलेखों में हेरफेर की. सूरत के पुलिस आयुक्त राकेश अस्थाना कहते हैं, “बाजार में बेचे जाने वाले आश्रमों के उत्पादों की पैकेजिंग के लिए अहमदाबाद की एक कंपनी को जो वार्षिक ठेका दिया गया था, वह 350 करोड़ रुपए का था. असली टर्नओवर की कल्पना कर सकते हैं.”

पुलिस बताती है कि 2013 में आसाराम की गिरफ्तारी तक आश्रम से प्रकाशित दो पत्रिकाओं&कई भाषाओं में छपने वाली मासिक पत्रिका ऋषिप्रसाद और एक पाक्षिक पत्रिका लोक कल्याण सेतु&की 14 लाख प्रतियां हर महीने बिकती थीं जिनसे सालाना 10 करोड़ रुपए के आसपास रकम आती थी. लेकिन बताते हैं कि धन बटोरने का सबसे बड़ा जरिया अनुयायियों को प्रवचन देने के लिए करीब 50 की तादाद में आयोजित सत्संग हुआ करते थे&दो या तीन दिनों के इस हरेक प्रवचन में उत्पादों की बिक्री से ही 1 करोड़ रु. जुट जाते थे&और आसाराम को आयोजकों से जो मिलता था, वह अलग. बताया जाता है कि सबसे ज्यादा धन उगलने वाले तीन या चार सालाना गुरुपूर्णिमा के कार्यक्रम हुआ करते थे, जिनके दौरान आसाराम के संगठनों को करोड़ों रुपए का चंदा मिलता है.

कभी आसाराम के प्रमुख सहयोगी रहे और एक दशक पहले “गुरु” से अलग होकर आज आसाराम बलात्कार मुकदमे के एक गवाह राहुल सचान कहते हैं, “उनके लिए हर काम धन-बटोरू काम होता था&चाहे गरीबों को निःशुल्क खाना बांटने के भंडारे हों, बाढ़ सरीखी प्राकृतिक आपदाओं के दौरान राहत के काम हों या यहां तक कि गो सेवा ही क्यों न हो. असल में 1,650 करोड़ रुपए (कर्ज में दी गई धनराशि) की रकम तो मामूली नजर आती है; अगर यह 5,000 करोड़ रु. होती तो भी मुझे जरा ताज्जुब नहीं होता.”
आसाराम के करीबी लोग बताते हैं कि हर साल 10 से 20 भंडारे किए जाते थे, जिनके लिए 150 करोड़ रु. से लेकर 200 करोड़ रु. तक चंदा लिया जाता था. इसकी तुलना में खाना बनाने और बांटने में खर्च की गई रकम नाममात्र की हुआ करती थी. इस पेचीदा ढंग से जुड़े बिजनेस मॉडल को समझने के लिए, इन कार्यक्रमों के लिए चंदा उन 11,000 योग वेदांत सेवा समितियों के जरिए इकट्ठा किया जाता था जिन्हें आसाराम ने देश भर में स्थापित किया था और चंदा इकट्ठा करने के लिए प्रचार-प्रसार उनकी पत्रिकाओं के जरिए किया जाता था.

भीतरी घेरा
हालांकि प्रह्लाद सेवानी अब भी जांच के दायरे में हैं लेकिन उनका कहना है कि आसाराम के आश्रम के संदिग्ध धंधों में वे व्यक्तिगत रूप से शामिल नहीं थे. इस बिल्डर ने पुलिस को बताया कि नारायण साईं जब भागा हुआ था तो अहमदाबाद के बाहरी इलाके में स्थित मोटेरा में आसाराम के आश्रम की ओर से “अर्जेंट बुलावों के बाद उन्होंने फ्लैट की सिर्फ चाबियां ही सौंपी थीं. सेवानी का दावा है कि आसाराम के करीबी अनुयायियों की मंडली ने बड़े स्तर पर पकड़-धकड़ के डर से दस्तावेजों, हार्ड डिस्कों और कंप्यूटर के सीपीयू को उसके सीजी रोड अपार्टमेंट में पहुंचा दिया ताकि वे पुलिस के हाथ न लग सकें. छापे के दौरान दस्तावेजों के जब्त होने पर अफरा-तफरी मच गई. आश्रम के कर्मचारियों ने कथित रूप से पुलिस के अधिकारियों को रिश्वत देने की कोशिश की.

2014 के शुरू में सूरत पुलिस के एक वरिष्ठ अधिकारी को कथित रूप से 100 करोड़ रु. रिश्वत देने का वादा किया गया था ताकि वह पुलिस के कब्जे में पड़े दस्तावेजों को कहीं गायब कर दे. लेकिन जब यह कोशिश बेकार गई तो बताया जाता है कि आसाराम के सहयोगी जांच में शामिल सी. कुंभानी नाम के एक इंस्पेक्टर को अंदर तक पहुंच बनाने के लिए लालच देने में कामयाब रहे. सूरत पुलिस कमिशनर अस्थाना के रीडर अब्दुल रहमान जाभा, जो अपनी ईमानदारी के कारण काफी सम्मानित अधिकारी माने जाते हैं, को भी इसी तरह का लालच दिया गया. इसके बाद पुलिस ने जाभा को चारे के तौर पर इस्तेमाल किया. आसाराम के पुराने सहयोगी रहे कुंभानी और उदय संघानी को पहले से बिछाए जाल में फंसाकर रिश्वत का पैसा जाभा को पहुंचाने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया. संघानी कथित रूप से पुलिस अधिकारियों को रिश्वत देने की साजिश में मुख्य भूमिका निभा रहा था.

संघानी से पूछताछ के बाद शहर भर में की गई छापेमारी में 8 करोड़ रु. पाए गए. अधिकारियों के मुताबिक, संघानी ने खुलासा किया कि वह पैसा उन जूनियर पुलिस, न्यायिक और मेडिकल अधिकारियों को रिश्वत देने के लिए इस्तेमाल किया जाना था, जो नारायण साईं  और उसके पिता के खिलाफ जांच में शामिल थे.
आसाराम की संपत्ति का पता लगा रहे आयकर अधिकारियों का कहना है कि कौशिक पोपटलाल वानी के अचानक गायब हो जाने से जांच का काम कुछ हद तक रुक गया है. आसाराम के तेजी से फैलते आर्थिक साम्राज्य के पीछे नागपुर के इसी 45 वर्षीय आदमी का दिमाग माना जाता है. अपनी जवानी का ज्यादातर जीवन आसाराम के साथ बिता चुका यह आदमी नवंबर 2013 से लापता है. सेवानी के अपार्टमेंट पर छापे के कुछ समय बाद ही वह कहीं गायब हो गया था.

जांचकर्ताओं का कहना है कि जांच के लिए वानी काफी महत्वपूर्ण शख्स है. बताया जाता है कि आसाराम के वित्तीय सौदों में वानी की बात ही मानी जाती थी. उसे लाजवाब याददाश्त के लिए जाना जाता है. रहमान जाबा का मानना है कि उसके पास “उन सौदों की विस्तृत जानकारी है, जो शायद आसाराम को भी ठीक से न पता हो.” अधिकारियों का कहना है कि आसाराम आंख मूंदकर वानी पर भरोसा करता था&इतना ज्यादा कि उनके बीच नजदीकी संबंधों के कारण नारायण साईं और उसके पिता के बीच कई बार मतभेद पैदा हो गए थे.

जब्त किए गए दस्तावेजों से पता चलता है कि वानी ने अचल संपत्तियों में निवेश करने में मदद की थी. उसके काम करने का तरीका एक ही थाः वह अनुयायियों के साथ संयुक्त सौदों की तलाश में रहता और फिर किसी खास संपत्ति को खरीदने के लिए उन्हें कर्ज देता. इसके बाद कथित रूप से वह जमीन को बेचने और पहले से तय कीमत लाने के लिए एक समय सीमा तय कर देता था. अगर कीमत में उतार-चढ़ाव के कारण उतना पैसा नहीं मिल पाता तो वह अनुयायी से सिर्फ बैंक का ब्याज ले लेता था. लेकिन तय कीमत या उससे ज्यादा कीमत पर अगर वह जमीन बिक जाती तो अनुयायी को मुनाफे का 50 फीसदी हिस्सा बांटना होता था.

दिसंबर 2013 में नारायण साईं की गिरफ्तारी के कुछ ही समय बाद वानी ने कथित रूप से संघानी को हाथ से लिखा एक नोट सौंपा था. बताया जाता है कि उस नोट में उसने सूरत आश्रम के मैनेजर रूपाभाई को निर्देश दिया था कि वह सूरत पुलिस, मेडिकल और न्यायिक अधिकारियों को घूस देने के लिए पैसों का इंतजाम करे. पुलिस का कहना है कि सूरत स्थित किराने की दुकानों की एक शृंखला सहज के मालिक केतन पटेल के जरिए पैसों का प्रबंध किया गया था. पुलिस ने जहां रूपाभाई और पटेल को पकड़ लिया है, वहीं आइटी व ईडी अधिकारी भी लंबे समय से कडिय़ों को जोडऩे में लगे हैं. आसाराम को सिर्फ बलात्कार के आरोप का सामना ही नहीं करना पड़ेगा, बल्कि वित्तीय साम्राज्य के सौदों में गड़बड़ी के आरोपों से भी खुद का बचाव करना पड़ेगा.

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