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हत्या की कोशिश करने वाले पर लगती है IPC की धारा 307

किसी इंसान की हत्या की कोशिश का मामला अगर सामने आता है, तो ऐसा करने वाले शख्स पर भारतीय कानून यानी भारतीय दंड संहिता की धारा 307 लगाए जाने का प्रावधान है. लेकिन इस धारा 307 के बारे में बहुत से लोगों को जानकारी नहीं है. आइए संक्षेप में जानने की कोशिश करते हैं कि क्या है भारतीय दण्ड संहिता यानी इंडियन पैनल कोड और उसकी धारा 307.

IPC की इस धारा के तहत मुजरिम को उम्रकैद भी हो सकती है IPC की इस धारा के तहत मुजरिम को उम्रकैद भी हो सकती है
परवेज़ सागर
  • नई दिल्ली,
  • 18 जनवरी 2016,
  • अपडेटेड 12:26 PM IST

किसी इंसान की हत्या की कोशिश का मामला अगर सामने आता है, तो ऐसा करने वाले शख्स पर भारतीय कानून यानी भारतीय दंड संहिता की धारा 307 लगाए जाने का प्रावधान है. लेकिन इस धारा 307 के बारे में बहुत से लोगों को जानकारी नहीं है. आइए संक्षेप में जानने की कोशिश करते हैं कि क्या है भारतीय दण्ड संहिता यानी इंडियन पैनल कोड और उसकी धारा 307.

भारतीय दंड सहिंता की धारा 307
जब कोई इंसान किसी दूसरे इंसान की हत्या की कोशिश करता है. और वह हत्या करने में नाकाम रहता है. तो ऐसा अपराध करने वाले को धारा 307 आईपीसी की धारा 307 के तहत सजा दिए जाने का प्रावधान है. आसान लफ्जों में कहें तो अगर कोई किसी की हत्या की कोशिश करता है, लेकिन जिस शख्स पर हमला हुआ है, उसकी जान नहीं जाती तो इस तरह के मामले में हमला करने वाले शख्स पर धारा 307 के अधीन मुकदमा चलता है.

क्या होती सजा
हत्या की कोशिश करने वाले आरोपी को आईपीसी की धारा 307 में दोषी पाए जाने पर कठोर सजा का प्रावधान है. आम तौर पर ऐसे मामलों में दोषी को 10 साल तक की सजा और जुर्माना दोनों हो सकते हैं. जिस आदमी की हत्या की कोशिश की गई है अगर उसे गंभीर चोट लगती है, तो दोषी को उम्रकैद तक की सजा हो सकती है.

ज़रूर पढ़ेंः किसी इंसान की जान लेने वाले पर लगती है आईपीसी के ये धारा

क्या है भारतीय दंड संहिता
भारतीय दण्ड संहिता यानी Indian Penal Code, IPC भारत में यहां के किसी भी नागरिक द्वारा किये गये कुछ अपराधों की परिभाषा औ दण्ड का प्राविधान करती है. लेकिन यह जम्मू एवं कश्मीर और भारत की सेना पर लागू नहीं होती है. जम्मू एवं कश्मीर में इसके स्थान पर रणबीर दंड संहिता (RPC) लागू होती है.

अंग्रेजों की देन है आईपीसी
भारतीय दण्ड संहिता यानी आईपीसी सन् 1862 में ब्रिटिश काल के दौरान लागू हुई थी. इसके बाद समय-समय पर इसमें संशोधन होते रहे. विशेषकर भारत के स्वतन्त्र होने के बाद इसमें बड़ा बदलाव किया गया. पाकिस्तान और बांग्लादेश ने भी भारतीय दण्ड संहिता को ही अपनाया. लगभग इसी रूप में यह विधान तत्कालीन ब्रिटिश सत्ता के अधीन आने वाले बर्मा, श्रीलंका, मलेशिया, सिंगापुर, ब्रुनेई आदि में भी लागू कर दिया गया था.

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