
महिला सशक्तिकरण और महिला विकास के तमाम वादे एनसीआरबी की इस रिपोर्ट के आगे झूठे नजर आते हैं. नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो की रिपोर्ट के अनुसार, बीते चार सालों में महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराधों में 34 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है. जिसमें से सबसे ज्यादा मामले घरेलू हिंसा के हैं.
महिलाओं के साथ होने वाले अपराधों का प्रतिशत रिपोर्ट किए गए अपराधों को महिलाओं की कुल संख्या से भाग देकर निकाला गया है. इस गणना के अनुसार, 2012 से 2015 के बीच में ये अपराध 41.7 से 53.9 फीसदी तक बढ़े हैं.
जनवरी 2016 में इंडियन एक्सप्रेस में प्रकाशित एक खबर के मुताबिक, एक ओर जहां ये आंकड़े बढ़ते अपराध को दिखाते हैं, वहीं ये महिलाओं में आ रही जागरूकता का सबूत भी हैं. पहले जहां ज्यादातर औरतें अपने ऊपर हुए जुल्म और अत्याचारों को चुपचाप सह लेती थीं वहीं अब वे इसके खिलाफ अपनी आवाज उठाने लगी हैं. वे अपने कानूनी हक के बारे में जानने-समझने लगी हैं और उसके लिए लड़ने भी लगी हैं.
आंकड़ों के अनुसार, 2015 में पति और रिश्तेदारों द्वारा दी जाने वाली प्रताड़ना के मामले रिपोर्ट किए गए केसेज में से 34 प्रतिशत रहे जोकि पिछले चार सालों से 6 फीसदी तक बढ़ गए हैं.
2014 में बीबीसी ने दिल्ली पुलिस की एक वरिष्ठ अधिकारी वर्षा शर्मा के हवाले से लिखा था कि जिस संख्या में अापराधिक मामले दर्ज हो रहे हैं उनका एक मतलब ये भी है कि अब औरतों ने चुपचाप सबकुछ सहना छोड़ दिया है.
एनसीआरबी की रिपोर्ट के अनुसार, 2015 में उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र और पश्चिम बंगाल में महिलाओं के खिलाफ हुए अत्याचार के सबसे ज्यादा मामले दर्ज हुए. उत्तर प्रदेश में जहां 35 हजार 527 मामले सामने आए, वहीं महाराष्ट्र में 31 हजार 126 और पश्चिम बंगाल में 33 हजार 218.